श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर के लिए भूमि पूजन

आनंद का क्षण है। बहुत प्रकार से आनंद है। एक संकल्प लिया था। और मुझे स्मरण है कि तब के हमारे संघ के सरसंघचालक बाला साहब देवरस जी ने, ये बात हमको कदम आगे बढ़ाने से पहले याद दिलाई थी कि बहुत लग के बीस-तीस साल काम करना पड़ेगा। तब कभी ये काम होगा और बीस-तीस साल हमने काम किया। तीसवें साल के प्रारंभ में हमको संकल्प पूर्ति का आनंद मिल रहा है। प्रयास किये हैं, जी-जान से अनेक लोगों ने बलिदान दिए हैं, वे सूक्ष्म रूप में आज यहां उपस्थित हैं, प्रत्यक्ष रूप से उपस्थित नहीं हो सकते। ऐसे भी हैं जो हैं, लेकिन यहां आ नहीं सकते। रथ यात्रा का नेतृत्व करने वाले आडवाणी जी अपने घर पर बैठ कर इस (भूमिपूजन) कार्यक्रम को देख रहे होंगे। कितने ही लोग जो आ भी सकते हैं, लेकिन बुलाये नहीं जा सकते, परिस्थिति ऐसी है। लेकिन वो भी अपनी-अपनी जगह कार्यक्रम देख रहे होंगे। देख रहा हूं पूरे देश में आनंद की लहर है। सदियों की आस पूरी होने का आनंद है। लेकिन सबसे बड़ा आनंद यह है कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस आत्मविश्वास और आत्मभान की आवश्यकता थी, उसका सगुण-साकार अधिष्ठान बनने का शुभारंभ आज हो रहा है।


 

वो अधिष्ठान है आध्यामिक दृष्टि का- सिया राममय सब जग जानी। सारे जगत को अपने में और अपने में जगत को देखने की भारत की दृष्टि। इसी के कारण भारत के प्रत्येक व्यक्ति का व्यवहार आज भी विश्व में सबसे अधिक सज्जनता का होता है और हमारे देश का सामूहिक व्यवहार सबके साथ वसुधैव कुटुम्बकम का होता है। ऐसे स्वभाव और ऐसे अपने कर्तव्य के निर्वाह से व्यावहारिक जगत की माया के दुविधा में से रास्ते निकालते हुए, जितना हो सके सबको साथ लेकर चलने की जो विधि एक बनती है, उसका अधिष्ठान आज यहां पर बन रहा है। परमवैभव संपन्न और सबका कल्याण करने वाला भारत, उसके निर्माण का शुभारंभ आज ऐसे निर्माण के व्यवस्थागत का नेतृत्व जिनके हाथ से है, उनके हाथ से हो रहा है। ये और आनंद की बात है। इसलिए उन सबका स्मरण होता है। लगता है अशोक जी यहां रहते तो कितना अच्छा होता, महंत परमहंस दास जी आज होते तो कितना अच्छा होता, लेकिन जो इच्छा ‘उस’ की है वैसा होता है। मेरा विश्वास है जो हैं वो मन से और जो नहीं हैं, वो सूक्ष्म रूप से आज यहां उस आनंद को उठा रहे हैं। उस आनंद को शतगुणित भी कर रहे हैं। लेकिन इस आनंद में एक स्फुरण है, एक उत्साह है। हम कर सकते हैं, हमको करना है, वही करना है।

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जीवन जीने की शिक्षा देनी है। अभी कोरोना का दौर चल रहा है, सारा विश्व अंतर्मुख हो गया है। विचार कर रहा है, कहां गलती हुई, कैसे रास्ता निकले। दो रास्तों को देख लिया, तीसरा रास्ता कोई है क्या? हां है। हमारे पास है। हम दे सकते हैं। देने का काम हमको करना है। उसकी तैयारी करने के संकल्प करने का भी आज दिवस है। उसके लिए आवश्यक तप पुरुषार्थ हमने किया है। प्रभु श्रीराम के चरित्र से आज तक हम देखेंगे तो सारा पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरवृत्ति हमारी रग-रग में है। उसको हमने खोया नहीं है। वो हमारे पास है। हम शुरू करें, हो जाएगा। कोई भी अपवाद नहीं है क्योंकि सबके राम हैं और सबमें राम है।

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अब यहां भव्य मंदिर बनेगा, सारी प्रक्रिया शुरू हो गई है। दायित्व बांटे गए हैं, जिनका जो काम है वो करेंगे। हम सब लोगों को अपने मन की अयोध्या को सजाना संवारना है। इस भव्य कार्य के लिए प्रभु श्रीराम जिस धर्म के विग्रह माने जाते हैं, वह जोड़ने वाला, धारण करने वाला, ऊपर उठाने वाला, सबकी उन्नति करने वाला धर्म, सबको अपना मानने वाला धर्म… उसकी ध्वजा को अपने कंधे पर लेकर संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने वाला भारत हम खड़ा कर सकें, इसलिए हमको अपने मन को अयोध्या बनाना है। यहां पर जैसे-जैसे मंदिर बनेगा, वो अयोध्या भी बनती चली जानी चाहिए। और इस मंदिर के पूर्ण होने पहले हमारा मन मंदिर बनकर तैयार रहना चाहिए। इसकी आवश्यकता है।और वह मन मंदिर कैसा रहेगा, बताया है-

काम कोह मद मान न मोहा।
लोभ न छोभ न राग न द्रोहा

जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया।
तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया॥

हमारा हृदय भी राम का बसेरा होना चाहिए। सभी दोषों, विकारों, द्वेषों और शत्रुता से मुक्त। दुनिया की माया कैसी भी हो, उसमें सब प्रकार के व्यवहार करने के लिए समर्थ। हृदय से सब प्रकार के भेदों को तिलांजलि देकर- केवल अपने देशवासी ही क्या, संपूर्ण जगत को अपनाने की क्षमता रखने वाले इस देश का व्यक्ति और समाज गढ़ने का काम है। उस गढ़ने के काम का एक सगुण साकार प्रतीक यहां खड़ा होने वाला है, जो सदैव प्रेरणा देता रहेगा। भव्य राम मंदिर बनाने का काम भारतवर्ष के लाखों मंदिरों में और एक मंदिर बनाने का काम नहीं है। बल्कि उन सारे मंदिरों में मूर्तियों का जो आशय है, उस आशय के पुनर्प्रकटीकरण और पुनर्स्थापन करने का शुभारंभ आज यहां बहुत ही समर्थ हाथों से हुआ है। इस मंगल अवसर पर, इस सब आनंद में मैं आप सबका अभिनन्दन करता हूं और मेरे मन में इस समय जो विचार आए उनको आपके चिंतन के लिए आपके सामने रखता हूं।

(बुधवार 5 अगस्त को अयोध्या में श्रीराम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के उद्बोधन के संपादित अंश)

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