कभी कांग्रेस का गढ़ था अमरोहा, विपक्षी दलों के टिक जाते थे घुटने
राजनीति में कभी भी सब कुछ स्थायी नहीं होता है। सत्ता पर काबिज होने के लिए चली जाने वाली शतरंजी चालों से वक्त और हालात दोनों बदलते रहते हैं। साहित्यकारों की धरती कहे जाने वाले अमरोहा में कांग्रेस के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। देश की आजादी के बाद अमरोहा कई साल तक कांग्रेस का गढ़ रहा। उस वक्त कार्यकर्ताओं की भारी-भरकम फौज के सामने कमोबेश हर चुनाव में विपक्षी पार्टियां कांग्रेस के आगे घुटने टेकने पर मजबूर हो जाया करती थीं।
देश की आजादी के बाद अमरोहा लोकसभा सीट साल 1952 में अपने वजूद में आई और फिर इसके बाद 1971 तक सीधे मुकाबले में इस सीट पर तीन बार कांग्रेस और दो बार सीपीआई का कब्जा रहा। इसी बीच में एक बार निर्दलीय प्रत्याशी ने भी जीत दर्ज की, लेकिन 1971 के बाद से अमरोहा में लगातार खिसकती रही कांग्रेस की सियासी जमीन को साल 1984 में सिर्फ रामपाल सिंह ने ही जीत दर्ज कर उभरने का मौका दिया। हालांकि बावजूद इसके आगे चलकर अमरोहा में कांग्रेस के लिए सियासी हालात फिर कभी साजगार नहीं हो सके। इस चुनाव के बाद अमरोहा की सियासी जमीन पर खड़ा कांग्रेस का किला हर चुनाव में थोड़ा-थोड़ा दरककर जमींदोज होने की दहलीज तक आ पहुंचा है।
सांसद दानिश अली को क्या नया सियासी घर दे पाएगी यात्रा
संसद में भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी के निशाने पर आकर सुर्खियों के साथ चर्चाओं में आए सांसद दानिश अली को लेकर बसपा सुप्रीमो मायावाती की खामोशी से उसी वक्त तस्वीर साफ हो गई थी कि अब उनका अगला सियासी घर कांग्रेस में होगा। इसके अगले ही दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी का खुद उनके घर पहुंचकर मुलाकात करना और फिर दोनों के गले मिलते हुए सोशल मीडिया पर वायरल फोटो ने इन कयासों को और ज्यादा हवा दे दी। बसपा से निष्कासित होने के बाद दानिश अली का राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का समर्थन करना भी उस वक्त सियासी जानकारों की नजर में कांग्रेस से दूसरी पारी शुरू करने की ओर इशारा था। इसके बाद गुरुवार को भारत जोड़ो यात्रा का अपने संसदीय क्षेत्र में स्वागत करने को लेकर एक्स पर की गई उनकी पोस्ट ने अमरोहा के सियासी गलियारों में नई बहस शुरू कर दी।
यूपी में सपा और कांग्रेस साथ आए, जानिए किसको होगा नुकसान और किसको फायदा
बहरहाल, चर्चा यहां तक है कि सपा के साथ सीटों की डील में कांग्रेस आलाकमान मुरादाबाद और अमरोहा सीट पर दानिश अली की वजह से ही अड़ा था, लेकिन सपा ने मुरादाबाद सीट छोड़ने से इनकार कर दिया। कांग्रेस की पहली पसंद मुरादाबाद लोकसभा सीट ही थी, लेकिन फिर ऐन वक्त पर मिले अंजान इशारे के बाद दोनों दलों के बीच अमरोहा लोकसभा सीट पर करार पक्का हो गया। चर्चा है कि कांग्रेस की ओर से न्याय यात्रा में प्रत्याशी की घोषणा भी हो सकती है।(एएमएपी)