(28 फरवरी पर विशेष)
इसे कहते हैं रमन प्रभाव
रमन प्रभाव बताता है कि जब प्रकाश किसी पारदर्शी पदार्थ से गुजरता है तो उस दौरान प्रकाश की तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) में बदलाव दिखता है। यानी जब प्रकाश की एक तरंग एक द्रव्य से निकलती है तो इस प्रकाश तरंग का कुछ भाग एक ऐसी दिशा में फैल जाता है जो कि आने वाली प्रकाश तरंग की दिशा से अलग है।
ऐसे हुई रमन प्रभाव की खोज
सीवी रमन साल 1921 में जहाज से ब्रिटेन जा रहे थे। जहाज की डेक से उन्होंने पानी के सुंदर नीले रंग को देखा। इसके बाद उनके मन में ये सवाल उठा कि आसमान और पानी का रंग नीला क्यों होता है। उसी साल वे भारत वापस आने लगे तो अपने साथ कुछ उपकरण भी लाए। रमन ने उपकरणों के जरिए समुद्र और आकाश पर रिसर्च की। उन्होंने पाया कि समुद्र भी सूर्य के प्रकाश को विभाजित करता है, जिससे समुद्र के पानी का रंग नीला दिखाई देता है। अपनी लैब में वापस आकर रमन और उनके छात्रों ने प्रकाश के बिखरने और कई रंगों में बंटने की प्रकृति पर शोध किया। उन्होंने ठोस, द्रव्य और गैस में प्रकाश के विभाजन पर शोध जारी रखी। इस शोध के परिणाम को ही रमन प्रभाव कहते हैं। (एएमएपी)