राज्यसभा चुनाव में इस बार उत्तर प्रदेश में 10 सीटों के लिए हुए मतदान के दौरान समाजवादी पार्टी में जमकर उथल-पुथल मच गई। पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की राजनीति कर रहे अखिलेश यादव अपनी ही सियासत में फंसे नजर आए। टीम मैनेजेंट में भाजपा उनसे कहीं आगे निकल गई। स्थिति ये हुई कि कई करीबी साथी अखिलेश का हाथ छुड़ाकर एनडीए के साथ चले गए। एक विधायक तो ऐसी रहीं कि जिन्होंने भले ही सपा से किनारा न किया हो लेकिन अपने नेता अखिलेश की इच्छा की बजाए अपनी पसंद के नेता को वोट किया। इस चुनाव में भाजपा 8 सीटें जीतने में कामयाब रही, वहीं समाजवादी पार्टी को सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा। पूरे चुनाव में अकेले हारने वाले नेता सपा प्रत्याशी रिटायर्ड ब्यूरोक्रैट आलोक रंजन रहे।दरअसल राज्यसभा के लिए प्रत्याशियों का ऐलान हुआ तो माना जा रहा था कि अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी आसानी से 3 सीटें अपने नाम कर लेगी। लेकिन इसके बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो भूचाल आया, वो अलग ही कहानी लिखता चला गया। पहले अखिलेश के करीबी पुराने साथी और इंडिया गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने किनारा कर लिया। उन्होंने एनडीए जाने का फैसला किया। इसके साथ ही अखिलेश की राज्यसभा चुनाव की गुणा-गणित उलझनी शुरू हो गई। दरअसल जयंत चौधरी की रालोद के पास 9 विधायक थे, इनका समर्थन मिलते ही भाजपा ने ऐन वक्त राज्यसभा के लिए आठवें प्रत्याशी के रूप में संजय सेठ का नाम आगे कर दिया। भाजपा ने पूरी रणनीति के साथ ये दांव खेला। दरअसल संजय सेठ पुराने समाजवादी रहे, उन्होंने सपा से राज्यसभा सदस्य रहते हुए भाजपा का दामन थामा था। भाजपा ने उस समय उन्हें फौरन राज्यसभा भेज दिया था लेकिन कार्यकाल खत्म होने के बाद से ही वह वेटिंग में चल रहे थे।

सपा के मुख्य सचेतक पद से इस्तीफा देकर मनोज पांडेय, विधायक राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, राकेश पांडेय, पूजा पाल, विनोद चतुर्वेदी, आशुतोष मौर्य ने भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ को मतदान किया। जेल में बंद पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की विधायक पत्नी महराजी देवी ने मतदान नहीं किया। सूत्रों का कहना है कि महराजी ने भाजपा नेताओं से कहा था कि वह भाजपा प्रत्याशी को वोट नहीं देंगी लेकिन वह पार्टी की मदद के लिए मतदान ही नहीं करेंगी। उनके मतदान नहीं करने का फायदा भी भाजपा को ही हुआ। पूजा पाल और महराजी देवी पिछड़े वर्ग से हें वहीं वहीं आरक्षित सीट बिसौली से विधायक आशुतोष मौर्य दलित समुदाय से आते हैं। इन सबके अलावा सोशल मीडिया बरेली के विधायक शहजिल इस्‍लामि अंसारी की भी खूब चर्चा हो रही है, जिन्होंने मतपत्र में निशान लगाने की जगह ”पी पी” लिखा और इसलिए उनका मत खारिज हो गया। शहजिल के अलावा दो मुस्लिम विधायकों सहित रालोद के सभी नौ विधायकों ने भी बीजेपी पक्ष में मतदान किया। जितने वैध मतों की गणना हुई उनमें से बीजेपी के प्रत्यातशियों को प्रथम वरीयता के 294 और सपा प्रत्‍याशियों को 100 मत मिले। नतीजतन, भाजपा के आठों उम्‍मीदवार चुनाव जीत गए और सपा के तीसरे प्रत्यालशी के तौर पर उतरे पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन हार गए।

अब तक की सबसे बड़ी बगावत

2017 में सपा की कमान संभालने के बाद अखिलेश यादव के लिए पार्टी में अब तक यह सबसे बड़ी बगावत मानी जा रही है। ऐसे में राज्यसभा चुनाव के जरिए सपा में यह बगावत की फूटी चिंगारी आगे लोकसभा चुनाव में अलग असर पैदा कर सकती है। मतदान कर बाहर निकलने पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने बयान में अंतरात्मा शब्द को तलवार की तरह इस्तेमाल किया। उन्होंने कहा कि किसी की अंतरात्मा में क्या है? मैं नहीं जान सकता है। उम्मीद है कि लोगों ने अंतरात्मा की आवाज पर सपा को वोट किया होगा। हमारे पास तो देने के लिए कुछ नहीं है।

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क्या बागी विधायकों के पीछे पीडीए पॉलिटिक्स?

अगर सपा के बागी विधायकों की बात करें तो इनमें ज्यादातर की जाति को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा रही। इनमें मनोज पांडेय समाजवादी पार्टी का ब्राह्मण चेहरा माने जाते थे। वोटिंग से ऐन पहले उन्होंने चीफ व्हिप पद से इस्तीफा दे दिया। इसी तरह राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, विनोद चतुर्वेदी ने भी क्रॉस वोटिंग की। लेकिन ये अकेले नहीं थे, इनके साथ गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी देवी, पूजा पाल और आशुतोष मौर्य भी एनडीए के पाले में खड़े नजर आए। जानकारों के अनुसार अखिलेश यादव की पीडीए पॉलिटिक्स, राम मंदिर मुद्दे पर उनकी बयानबाजी, स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानबाजी आदि जैसे कई मुद्दे रहे, जिसके कारण पार्टी में असंतोष पनप रहा था। राज्यसभा चुनाव के दौरान इन नेताओं को मौका मिल गया।

लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश की रणनीति फेल

गौर करने वाली बात ये है कि 3 विधायकों की कमी को पूरा करने के लिए अखिलेश यादव की तरफ से जो कवायद की गई, वह भी परवान नहीं चढ़ी। खुद नरेश उत्तम पटेल जनसत्ता दल के राजा भैया के साथ लंच किए, लेकिन राजा का समर्थन सपा को नहीं मिला। उलटे जो कई विधायक बागी हुए हैं, उनकी नजदीकी राजा भैया से है। जाहिर है लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव की ये बड़ी रणनीति हार मानी जाएगी।(एएमएपी)