क्या कहते हैं आंकड़े?
जदयू इस वन मैन शो के साथ बिहार में दमखम के साथ मौजूद है। लोकसभा चुनाव व विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो एनडीए के साथ रहने पर जदयू के नए रिकॉर्ड बने हैं। बात 2019 के लोकसभा चुनाव की है। उसमें जदयू की जुगलबंदी भाजपा के साथ थी, जिसके लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं। जदयू को 16 सीटों पर जीत मिली थी। भाजपा को 17 पर जदयू के इस आंकड़े ने इसे लोकसभा में देश के सातवें सबसे बड़े दल के रूप में स्थापित किया।
गठबंधन टूटते ही जेडीयू धड़ाम
साल 2014 में जदयू ने भाजपा के साथ 17 साल पुराना रिश्ता तोड़ लिया था। जदयू ने तब भाकपा के साथ मिलकर बिहार में चुनाव लड़ा और परिणाम यह रहा कि 20 से सिर्फ दो सीटों पर सिमट गई। इनमें एक सीट तो नीतीश कुमार के गढ़ नालंदा की थी और दूसरी पूर्णिया की। वहीं भाजपा ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 32 सीटें जीतीं। इस बड़े झटके के बाद नीतीश कुमार ने अपने पद से इस्तीफा तक दे दिया था।
भाजपा के लिए भी काफी महत्व रखता है जदयू का साथ
2015 में जब महागठबंधन में शामिल होकर जदयू ने 101 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा तो 71 पर जीता। 2020 में एनडीए के साथ लड़ा पर वोटकटवा अंदाज में दूसरे दल के खड़े होने पर जदयू को 115 में केवल 44 सीटें ही मिल सकीं। हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने। बाद में नीतीश महागठबंधन में चले गए, फिर उनकी एनडीए में वापसी हुई। अब इस साल का लोकसभा चुनाव जदयू पुनः एनडीए के घटक के रूप में लड़ रहा। जदयू का साथ भाजपा के लिए भी महत्व का रहा है। भाजपा को नीतीश कुमार की विकास से जुड़ी इमेज का लाभ मिलता है।
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बिहार के विधानसभा चुनाव में भी दिखी ताकत
एनडीए के साथ रहने पर जदयू की ताकत विधानसभा चुनाव में भी दिखती रही है। जदयू ने 2005 का चुनाव एनडीए के साथ लड़ा। 139 में उसे 88 पर जीत मिली। भाजपा ने 102 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और जीत 55 पर मिली। इस चुनाव में लालू प्रसाद का राजद 175 में मात्र 54 पर जीता। जदयू की ताकत 2010 के विधानसभा चुनाव में और बढ़ गई। जदयू ने 141 में 115 सीटों पर जीत हासिल की। उसके वोट में 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। तब भाजपा को 102 में 91 सीटें ही मिली थीं। जदयू बिहार में बड़े भाई के रूप में स्थापित हो गया था। (एएमएपी)