(22 मार्च पर विशेष)
सबसे खौफनाक कत्लेआम चांदनी चौक, लाल किला, दरीबा और जामा मस्जिद के आसपास के इलाके में हुआ। यहीं पर सबसे महंगी दुकानें और जौहरियों के घर थे। नादिरशाह के सैनिक घर-घर जाकर लोगों को मार रहे थे। कत्लेआम करते हुए वे लोगों का माल-असबाब लूट रहे थे और उनकी बहू-बेटियों को उठा ले रहे थे। बच्चे, बूढ़े किसी को भी नहीं छोड़ा। सिपाहियों ने घरों में आग लगा दी। उसमें उन्होंने मृतकों को, घायलों को- चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान, सबको जला डाला। यह कत्लेआम सुबह नौ बजे शुरू हुआ और दोपहर 2 बजे तक बेरोकटोक चलता रहा। तब के शहर कोतवाल के मुताबिक, इस कत्लेआम में 8000 लोग मारे गए थे।
इस कत्लेआम के कई दिनों बाद तक दिल्ली की सड़कें और गलियां, घर और कुएं लाशों से पटे पड़े रहे। बदबू के मारे उधर से गुज़रना मुमकिन न था। डर के मारे कोई उन लाशों को उठाने भी नहीं जा रहा था। आखिर में शहर कोतवाल ने नादिर से गुज़ारिश कर उन लाशों को इकठ्ठा कराया और सड़क पर या खुली जगहों पर जलाया। इस कत्लेआम के बाद नादिर ने अनाज के सभी गोदामों को सील कर दिया और उन पर अपने पहरेदार बैठा दिए। उसने शहर की घेराबंदी भी करवा दी ताकि कोई आ-जा न सके। सड़कें बिल्कुल बंद कर दी गईं।
विश्व वानिकी दिवस : पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने का दिन
इस कत्लेआम से बच गए लोग भुखमरी के शिकार होने लगे। जो लोग भूख से परेशान होकर भोजन की तलाश में बगल के गांवों में जाना चाहते, उन्हें घुड़सवार सेना पकड़ लेती और उनके नाक-कान काट कर वापस शहर में धकेल दिया जाता। गांव भी सुरक्षित नहीं थे। दिल्ली के 40-50 मील के दायरे में आने वाले गावों को जीभरकर लूटा गया। खेतों में खड़ी फसलें नष्ट कर दीं गईं। जो विरोध करते, उन्हें मार दिया जाता। नादिर दो महीने तक दिल्ली में रहा। उसने राजधानी पर कब्ज़ा बनाए रखा और खूब वसूली भी की।(एएमएपी)