बंकिम-इकबाल पर पोस्ट, बात ‘संघी पत्रकार’ और ‘ईगो मसाज’ तक गई
आपका अखबार ब्यूरो।
सोशल मीडिया (Social Media) इस मामले में एक विलक्षण दुनिया है कि आप बात कहीं से शुरू करें वह पहुंच कहीं और तक जाती हैं और सब अपनी अपनी विचारधारा के लिहाज से उस पर विमर्श निष्कर्ष करते रहते हैं।

25 फरवरी 2021 को फेसबुक (facebook) पर दयानन्द पांडेय (Dayanand Pandey) एक पोस्ट लिखते हैं। पोस्ट का विषय बंगाल चुनाव, भाजपा, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, बंकिम बाबू या इकबाल नहीं हैं, बल्कि टीवी चैनल पर रिपोर्टिंग का स्तर है। पांडेय लिखते हैं:

बंकिम के घर नड्डा- Live रिपोर्टिंग करनेवाले को बंकिम का कुछ पता नहीं

Live: কাটমানি, তোলাবাজি ও তোষণের বিরুদ্ধে টিকা দেবে বাংলার মানুষ: Nadda | রাজ্য News in Bengali

‘पश्चिम बंगाल के नौहाटी में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के घर और म्यूजियम पर भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा पहुंचे हुए हैं। एक चैनल पर लाइव चल रहा है। एक तो मूर्ख रिपोर्टर बंकिम बाबू के बाबत लगातार बता रहा है कि वह यहां लेख लिखते थे। क्या रिपोर्टर नहीं जानता कि बंकिम बाबू बहुत बड़े उपन्यासकार और कवि हैं। दूसरे , सिविल सर्विस में रहने के कारण अपने पैतृक निवास पर कम बाहर ज़्यादा रहते थे। तिस पर करेला और नीम चढ़ा यह कि बैकग्राउंड में इकबाल का लिखा ‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा’ गीत बज रहा है। बंकिम बाबू का लिखा गीत ‘वंदे मातरम्’ भी बजाया जा सकता था। बजाय इसके कि पकिस्तान के संस्थापक का लिखा गीत बजाने के।’

पक्का संघी

साहित्यकार अनिल जनविजय (Anil Janvijay) ने इस पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए दयानन्द पांडेय को संघी पत्रकार कह दिया। जनविजय की टिप्पणी:
‘इसी को कहते हैं- संघी पत्रकारिता। वो आपकी तरह अभी पक्का संघी नहीं बना है।’
दयानंद पांडेय कहां चुप बैठने वाले थे। उन्होंने जवाबी हमला बोला:

आप लेखकों की दुनिया के राहुल गांधी

‘Anil Janvijay जी , बंकिम चंद्र और इक़बाल में कुछ फर्क समझते हैं या सर्वदा अवसाद में ही रहते हैं। सर्वदा Salim Khan Fareed जैसे मुस्लिम साम्प्रदायिकों का ईगो मसाज ही करते रहेंगे। जो एक नाम लिखने में भी अपनी बीमारी नहीं छुपा पाते। इक़बाल थे बड़े शायर लेकिन पाकिस्तान बनवाने के अपराधी भी हैं , यह क्यों भूल जाते हैं। बंकिम थे सिविल सर्विस में। अंगरेजों की नौकरी करते थे। आई सी एस अफ़सर थे। लेकिन उपन्यासकार बहुत बड़े हैं। आनंद मठ जैसे क्रांतिकारी उपन्यास उन के खाते में है। वंदेमातरम जैसा महान गीत उन के खाते में हैं। अंगरेजों की नौकरी कर के भी अंगरेजों के खिलाफ बेशुमार लिखा है। जल्दी ही अंगरेजों की नौकरी भी छोड़ दी थी , आज़ादी की लड़ाई के लिए। और इक़बाल ? सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा लिख कर भी पाकिस्तान बनाने का अपराध और साज़िश रची। भारत को तोड़ दिया। एक जहर भर दिया मनुष्यता और भारतीय समाज में हिंदू , मुसलमान का। अरे जिन्ना तो थक कर लंदन चला गया था। जान गया था कि पाकिस्तान नहीं बन सकता। पर इसी इक़बाल ने चिट्ठी लिख-लिख कर इसरार पर इसरार कर जिन्ना को वापस बुला लिया कि पाकिस्तान बनाने के लिए आप का नेतृत्व बहुत ज़रूरी है। बातें बहुतेरी हैं जिन्हें आप जानते हैं। बताने और दुहराने की ज़रूरत नहीं है। और हां , तथ्य और तर्क से ही बात किया कीजिए तो अच्छा लगेगा। जहां तर्क और तथ्य से बात हो सकती हैं , वहां संघी आदि कहने की कायरता से बचा कीजिए। परहेज किया कीजिए। बिन मांगी सलाह है। लेखक , लेखक होता है। पत्रकार , पत्रकार होता है। संघी , वामपंथी नहीं। स्वस्थ ढंग से बात किया कीजिए। बीमार बन कर नहीं। पढ़े-लिखे हो कर भी चंद टुटपूंजियों का ईगो मसाज करने के लिए , खुश करने के लिए उटपटांग बातें करना आप को मजाक का विषय बनाता है। अच्छा नहीं लगता। अच्छा नहीं लगता कि राहुल गांधी बनें आप लेखकों की दुनिया के। परहेज कीजिए। मेरे लिखे की धज्जियां उड़ा दीजिए। अच्छा लगेगा। पर तथ्य और तर्क से। कायरता से नहीं।’
अभी ऐसा नहीं लगता कि मामला शांत हो गया है और अनिल जनविजय इस वार को खामोशी से झेल जाएंगे। ऐसी तमाम घटनाएं हैं जब सोशल मीडिया पर किसी विषय पर विमर्श करने के बजाए लोग व्यक्तिगत आरोप की तलवारें खींच कर भिड़ जाते हैं और तमाशबीनों का मनोरंजन करते हैं।

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