डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने कभी शायद ही सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें छिंदवाड़ा में कोई टक्कर देगा या भविष्य में ऐसी किसी प्रकार की स्थिति पैदा होगी कि उन्हें और उनके संपूर्ण परिवार को संसदीय चुनाव में हार का डर सताएगा! अपनी राजनीतिक यात्रा, पैठ और जनता के बीच के संपर्क को लेकर उन्हें सदैव से यह भरोसा रहा, छिंदवाड़ा से कभी कोई चुनौती उन्हें नहीं मिलने वाली। कुछ हद तक यह विश्वास सही भी नजर आता रहा है, क्योंकि एक उपचुनाव और मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को छोड़ दिया जाए तो अब तक उनके परिवार को यहां कोई नहीं हरा पाया।
कमलनाथ 1980 में पहली बार मप्र के छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे, तब से 2014 तक उन्हें यहां की जनता ने नौ बार संसद के लिए अपना जनप्रतिनिधि चुना । सिर्फ एक बार जरूर उन्हें 1998 में हुए उप चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस के राज मे वे अनेक विभागों मे कई बार केंद्रीय मंत्री भी बनाए गए । फिर उनके जीवन में वह दौर भी आया जब कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें मप्र का पूरा जिम्मा सौंप दिया। 2018 में कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए और इसी साल यह भी घोषणा कर दी गई कि विधानसभा चुनाव यदि कांग्रेस जीतती है तो वे ही मप्र में सीएम बनेंगे और हुआ भी यही। उनके नेतृत्व में विधान सभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत लेकर आई । छिंदवाड़ा विधानसभा सीट से वे उपचुनाव में जीते । अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में कमलनाथ के लिए भी यह पहली दफा था कि वे मप्र विधानसभा के सदस्य चुने गए। इसके बाद कमलनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए । इस तरह उनकी पूरी राजनीतिक यात्रा शानदार नजर आती है।
पत्नि-बहू भी उतरी जनता के बीच
दरअसल, ऐसे में यह पहली बार ही है कि कमलनाथ और उनके सांसद बेटे को भाजपा ने राजनीतिक तौर पर चारो तरफ से घेर लिया है। यह भी पहली ही बार है कि लोस के सीधे चुनाव में राज्य की इकलौती कांग्रेस सीट छिंदवाड़ा को बचाने का संकट उनके सामने खड़ा है। तभी तो कभी जनता के बीच उनकी बहू पिताजी और पूरे परिवार के संबंधों का हवाला देती हुई नजर आ रही हैं तो कभी कमलनाथ की पत्नी खेतों में ग्रामीण महिलाओं के साथ फसल काटती हुई फोटो खिचवां रही हैं। उनके बेटे अपने पिताजी के पुराने साथियों को मनाने में लगे हैं और स्वयं कमलनाथ भी कमरा बंद कर अपने अब तक साथी रहे लोगों से बात कर रहे हैं कि आखिर वह क्यों उन्हें छोड़कर भाजपा की सदस्यता ले रहे हैं ! किंतु इस नए मोदी युग में उन्हें कोई उनके प्रश्न का जवाब नहीं दे रहा । अब ऐसे में यह स्वत: ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि छिंदवाड़ा में राजनीतिक तौर पर कांग्रेस और कमलनाथ पर अपनी सत्ता बचाए रखने का कितना बड़ा संकट आज खड़ा है!
छिंदवाड़ा मॉडल ध्वस्त होता दिख रहा
कहना होगा कि इस बार जैसे कमलनाथ की आंखों के सामने ही उनका छिंदवाड़ा मॉडल पूरी तरह से ध्वस्त हो रहा है, उसे नकारा जा रहा है। तथ्यों पर गौर करें तो1980 से 2014 तक कमलनाथ पर छिंदवाड़ा की जनता अपना एक तरफा प्यार लुटाती रही है। उन्होंने 2019 में यह सीट अपने बेटे को सौंपी, तब पहली बार नकुलनाथ सांसद चुने गए। यहां हर स्तर पर पार्षद से लेकर पंचायत तक कांग्रेस का इस प्रकार का दबदबा रहा है कि इसमें सेंध मारना असंभव नजर आता था। वास्तव में कमलनाथ को अपने गढ़ छिंदवाड़ा में जबरदस्त झटका तब लगा जब जून 2023 के दौरान छिंदवाड़ा नगर में एक सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा के संदीप सिंह चौहान ने पार्षद का पद हासिल किया । यहां हुआ यह उप चुनाव किसी विधानसभा चुनाव से कम नहीं दिखा, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी कांग्रेस की हार ने प्रदेश भर में यह संदेश दे ही दिया था कि कमलनाथ और उनके परिवार के प्रति स्थानीय जनता का मोह अब समाप्त होने लगा है।
भाजपा को बड़ी जीत का विश्वास
अभी संदीप चौहान को पार्षदी जीते एक साल भी पूरा नहीं हुआ है कि मप्र विधानसभा से लेकर ये हो रहे लोकसभा चुनावों तक कमलनाथ और नकुलनाथ के कई बड़े साथी उनका साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं। छिंदवाड़ा जिले की सभी सात विधानसभा सीटों में पिछले दो चुनावों से कांग्रेस जीतती रही है, इसके बावजूद हाल ही में जिले की अमरवाड़ा विधानसभा सीट से विधायक कमलेश प्रताप सिंह शाह भाजपा में शामिल हो गए हैं और यह सीट रिक्त हो गई है। उसके बाद छिंदवाड़ा से कांग्रेस के महापौर विक्रम अहाके ने भी उनका साथ छोड़ दिया, वह भी मोदी-मोहन भाजपा के हो गए। दरअसल, यहां छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र और संपूर्ण जिले में एक लम्बी श्रंखला है, जिन्होंने हाल ही के दिनों में भगवा के कमल को अपने हाथों में थामा है। पांढुर्ना नगर पालिका अध्यक्ष संदीप घाटोड़े, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष सीताराम डहेरिया,चौरई विधानसभा सीट से पूर्व विधायक गंभीर सिंह, कांग्रेस के पूर्व प्रदेश महासचिव अजय ठाकुर समेत अन्य कई पार्टी पदाधिकारी जिनकी अनुमानित संख्या एक हजार से भी अधिक है, वह अपने अन्य कई हजार कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
यहां के पूरे परिदृश्य को यदि गौर से देखें तो भाजपा छिंदवाड़ा सीट पर विशेष रणनीति के तहत काम करती दिखती है। स्वयं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, भाजपा के क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल, दिग्गज नेता एवं सरकार में मंत्री प्रहलाद सिंह, कैलाश विजयवर्गीय एवं अन्य भाजपा पदाधिकारी, सरकार में मंत्री लगातार यहां कैंप कर रहे हैं, जिसका कि प्रत्यक्ष प्रभाव बड़े स्तर पर दिख रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि छिंदवाड़ा लोक सभा चुनाव में इस बार भारतीय जनता पार्टी कांग्रेस को बड़ा झटका दे सकती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)