डॉ. मंयक चतुर्वेदी।
अभी कुछ ही दिन पहले यूएन में ‘इस्लामोफोबिया’ पर प्रस्ताव लाया गया है। जिसमें पूरी दुनिया से यह कहा गया कि ‘इस्लाम से नफरत’ करने वालों पर अपने देशों में सख्त कदम उठाएं। कहा जा रहा था कि इस्लाम का आतंकवाद से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं। इस्लाम तो शांति का मजहब है, वह तो आपसी प्रेम और भाईचारे में विश्वास रखता है और अब इनका ये प्रेम देखिए, कि जिसे ये रमजान का पाक महीना कहते हैं, उसी पवित्र महिने में दुनिया के तमाम देशों में इस्लामिक आतंकवादी घटनाएं घटी हैं।
रूस की राजधानी मॉस्को स्थित कॉन्सर्ट हॉल में आतंकी हमले को अंजाम देना हो, या मध्यप्रदेश के इंदौर में दो हिन्दू युवाओं को इसलिए घेर कर मार देने के लिए आतुर हो जाना हो कि वे अपने ई-रिक्शा में भगवान श्रीराम जी का भजन सुन रहे थे। इस दोनों ही मजहबी आतंक से जुड़ी घटनाओं के अनेक वीडियो सोशल मीडिया पर आ गए हैं। रूस के मामले में आए एक वीडियो में डच नेता गीर्ट वाइल्डर्स ने पोस्ट किया है, जिसमें साफ दिखाई दे रहा है कि गोलीबारी करने वाला एक आतंकवादी लगातार ‘अल्लाह हू अकबर’ का नारा लगा रहा था। हमले में अभी तक बच्चों, बूढ़े, महिला, जवान समेत 140 से अधिक मौंते हो चुकी हैं। अनेक लोग अब भी जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
रशिया टुडे मीडिया ग्रुप की प्रधान संपादक मार्गरीटा सिमोनियन ने रूस घटनाक्रम को लेकर सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी करते हुए संदिग्धों के कबूलनामे और बेहतर तरीके से स्पष्ट कर देती हैं। इनमें से एक ‘शम्सुद्दीन फ़रीद्दीन’ है। वह कैमरे के सामने पैसों के बदले बेगुनाह लोगों की जान लेने के अपने भयावह मिशन के बारे में चौंकाने वाला खुलासा करता है। जैसे-जैसे पूछताछ आगे बढ़ती है, वह स्वीकारता है कि ”एक इस्लामी मौलवी ने बोला कि जाओ और लोगों को मार डालो, चाहे वे किसी भी प्रकार के हों।” उसे परिणामों की चिंता किए बिना हमले को अंजाम तक पहुंचाने का निर्देश दिया गया था। इसके अलावा, उसने आतंकवादियों की भर्ती प्रक्रिया के बारे में जानकारी भी दी।
रूस में हुए हमले में भी आतंकवादियों की टैक्टिस ठीक वैसी ही थी, जैसी कि 15 साल पहले 26 नवंबर, 2008 को समुद्री मार्ग से भारत में घुसे 10 पाकिस्तानी आतंकियों ने अपनाई थी। लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादियों ने मुंबई पर हमला बोला था। 26/11 के हमलावर पाकिस्तान के कराची से अरब सागर होते हुए मुंबई आए थे। इस हमले में 18 सुरक्षाकर्मी समेत 166 लोग मारे गए और 300 से अधिक लोग घायल हुए थे। एक आतंकवादी ‘अजमल कसाब’ को जिंदा पकड़ने में पुलिस को सफलता मिली थी।
संयोग देखिए; रूस के कंसर्ट हाल हमले में और 26/11 मुंबई आतंकी हमले में कितनी अधिक समानताएं हैं। दोनों में ही हमलावर दूसरे देश से आते हैं। जिन देशों से ये आए, वहां की सरकारें इन्हें अपना नागरिक मानने तक से इंकार कर देती हैं। रूस में जो इस्लामिक आतंकी शम्सुद्दीन फ़रीद्दीन पकड़ा जाता है वह रुपयों के लिए इस अपराध को किए जाने का बहाना बनाता है, ताकि सीधे तौर पर इस्लाम और आतंकवाद के कनेक्शन को सिद्ध न किया जा सके। वहीं, भारत में लश्कर-ए-तैयबा का जो आतंकवादी अजमल कसाब जब पकड़ा जाता है, तब उसके हाथों में कलावा बंधा होता है। जिससे कि यदि सभी दस आतंकवादी भारतीय सेना या पुलिस के हाथों मार भी दिए जाएं तो इस पूरे अटैक को ‘हिन्दू आतंकवाद’ घोषित किया जा सके।
तनिक विचार करें कि यदि आतंकवादी अजमल कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो इस पूरे मामले की सच्चाई कौन सामने लाता? कोई भी तत्काल हकीकत को सामने नहीं ला सकता था। वास्तव में जब तक सच्चाई सामने आती, तब तक तो हिन्दुत्व, सनातन धर्म पूरी दुनिया में ”हिन्दू आतंकवाद” के नाम से लांछित होता रहता। यहां उन तमाम भारतीय हुतात्माओं, आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन, मुंबई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त अशोक कामटे और सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर विजय सालस्कर को शत् शत् नमन है, जिन्होंने अपने प्राणों को देकर इन आतंकवादियों से देश की रक्षा की और फिर एक बार यह सिद्ध किया कि इस्लामिक आतंकवाद मानवता का शत्रु है, इससे दुनिया को बचाओ।
आज आतंकी शम्सुद्दीन फ़रीद्दीन जो स्वीकार कर रहा है, वह सिर्फ रूस की सच्चाई नहीं है। यह विश्व के उन तमाम देशों की हकीकत है, जो कि लोकतंत्र और धर्म निरपेक्षता को मानते हैं। जब यह कहा जाता है कि ”इस्लामोफ़ोबिया या इस्लाम से भय, मुसलमानों के प्रति तर्कहीन भय या घृणा का पूर्वाग्रह है।” यह अवधारणा मुसलमानों को देश के आर्थिक, सामाजिक और सार्वजनिक जीवन से बाहर करके उनके विरुद्ध भेदभावपूर्ण व्यवहार को दर्शाती है। एक अवधारणा यह भी मानती है कि इस्लाम अन्य संस्कृतियों के साथ कोई भी मूल्य साझा नहीं करता है। यह एक धर्म के बजाय हिंसक राजनीतिक विचारधारा है। तब ऐसा मानने वालों की आलोचना बड़े स्तर पर की जाती है। लेकिन क्या आप इस हकीकत से आंख बंद कर सकते हैं कि दुनिया में जितने आक्रमण हो रहे हैं, जिहाद के माध्यम से बेगुनाहों को मौंत के घाट उतारा जा रहा है, दारुल हरब को दारुल इस्लाम बना देने, गजवा-ए-हिंद का जो सपना इस्लाम को माननेवाले कट्टरपंथी देखते हैं, उसके पीछे इस्लाम की विचारधारा जिम्मेदार है! (Teaching the global dimension: key principles and effective practice, Holden, Cathie; Hicks, David V, New York: Routledge. पृ. 140)
भारत में घटी हाल की घटनाओं को देखें। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गुवाहाटी में चौथे वर्ष का छात्र तौसीफ अली फारूकी कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में शामिल हो गया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किए गए एक खुले पत्र के माध्यम से फारूकी के कट्टरपंथी होने का खुलासा हुआ। ‘एक खुला पत्र’ शीर्षक वाले इस पत्र में फारूकी ने भारतीय समाज, संस्थानों और भूमि के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की और उन्हें “काफिर समाज” का हिस्सा बताया। उसने खुलेआम आईएसआईएस के प्रति अपनी निष्ठा और समूह की गतिविधियों में भाग लेने के अपने इरादे की घोषणा की, इसे मुसलमानों और ‘काफिरों’ के बीच लड़ाई के रूप में पेश किया।
फारूकी के पत्र में लिखी गई बातें और उसके इरादें भयावह हैं। वह कहता है कि ” मुसलमानों (जो अल्लाह के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं) और काफिरों (काफिरों) के बीच की लड़ाई है और यह लड़ाई दुनिया के हर हिस्से में है क्योंकि धरती, यह सब अल्लाह की है।” इस घोषणा ने न केवल उसके कट्टरपंथी विश्वासों को उजागर किया, बल्कि यह भी बता दिया कि वह काफिरों के नाम से इस्लाम (मुसलमानों) को छोड़कर संपूर्ण मानव जाति से कितनी घृणा करता है, उन्हें पूरी तरह से समाप्त कर देने की सोच रखता है।
वस्तुत: फारूकी ने जो कहा है, उससे इस्लाम को कैसे दूर रखा जा सकता है, जबकि मुसलमानों के कई मजहबी ग्रंथ यही शिक्षा देते हों! इस्लाम में शहीद वे होते है जो धर्म के लिए अपनी कुर्बानी दे। “पैग़म्बर ने कहा; “शहीदो के लिए अल्लाह के पास छह चीजें हैं। उसे रक्त के पहले प्रवाह के साथ ही माफ कर दिया जाता है, उसे स्वर्ग में उसका स्थान दिखाया जाता है, उसे कब्र की सजा से छूट होती है, सबसे बड़े दुःख से सुरक्षित, गरिमा का ताज उसके सिर पर रखा गया है-जिसके रत्न दुनिया से बेहतर हैं। उसको जन्नत की अल-हुरिल-ऐन (अत्यंत सफ़ेद और बड़े आखो वाली हुस्ना) के साथ कुल बहत्तर हूरों से शादी करवाई गई है” (तिर्मिज़ी हदीस 3:20:1663)।
इस तरह से अनेक हदीसों में यह स्पष्ट कर दिया गया है कि आम आस्तिकों को कम से कम 2 हूरे मिलेंगी और जो लोग इस्लाम का प्रचार करते हुए, जिहादी युद्धों, संघर्षों में मारे जाते हैं वे सब शहीद हैं और ऐसे सभी लोगों को जन्नत में 72 हूरे मिलती हैं। इतना ही नहीं, “आस्तिक को जन्नत में संभोग में ऐसी-ऐसी ताकत दी जाएगी।” कहा गया: “ऐ अल्लाह के रसूल! और क्या वह ऐसा कर पाएगा?” उसने कहा; “उसे सौ की ताकत दी जाएगी।” (तिर्मिज़ी हदीस, 4:12:2536) । यानी हरेक पुरुष को 100 लोगों के बराबर ताकत मिलेगी। कुल मिलाकर प्रत्येक पुरुष को जन्नत में अनलिमिटेड शारीरिक सुख मिलने का पक्का भरोसा दिया जाता है। अब आप ही बताइए, यह कहां तक सही है? ऐसे में गैर मुसलमानों के बीच ‘इस्लामोफोबिया’ होगा कि नहीं?
वास्तव में आज यही कारण है कि भारत में बिहार, झारखण्ड, नई दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, केरल समेत अन्य कई राज्यों से युवा आतंक की राह पर चलते हुए पाए गए हैं और अभी भी लगातार पाए जा रहे हैं । जब यहां के युवा डार्क नेट से जुड़ते हैं तो दूसरे देशों के हैंडलर्स इनको वह सब परोसते हैं, जो कंटेन्ट इनको कट्टर बनाए। इन्हें जिहाद के संवाद और वीडियो दिखाए जाते हैं। वीडियो के अलावा एक किताब का इस्तेमाल प्राय: किया पाया जाता है, मशारी अल-अशवाक इल मशारी अल-उशाक, जिसे कि बोलचाल की भाषा में “बुक ऑफ जिहाद” कहते हैं। इसे लिखने वाले लेखक का नाम, अहमद इब्राहिम मुहम्मद अल दिमश्क़ी अल दुमयती है। इस लेखक ने हदीस में लिखी बातों को अपने तरीके से समझाया है। पुस्तक में लिखा है कि (इस्लाम पर) भरोसा न करने वालों से युद्ध करो, उनसे जंग लड़ो।
इस पुस्तक में लिखे विचारों की क्रूरता और खतरनाक सोच को इससे भी समझा जा सकता है कि केरल पुलिस ने राज्य सरकार से मांग की थी कि इस किताब को तत्काल बैन करवा दीजिए। केरल पुलिस इसे पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि किताब के लेख युवाओं को आतंकी संगठन से जुड़ने के लिए उकसाते हैं। ऐसे में आप स्वयं से अंदाजा लगा सकते हैं कि इस प्रकार की पता नहीं कितनी किताबें और वीडियो क्लिप होंगी जोकि इस्लाम में दिखाकर आतंक के रास्ते पर लोगों को चलने के लिए प्रेरित किया जाता होगा! अकेले भारत में ही पिछले एक साल में इस्लामिक आतंकवाद से जुड़ी 100 से अधिक घटनाएं घटी हैं, जिसमें राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) ने कई आतंकवादियों एवं संदिग्ध आतंकियों को पकड़ा है। यह तो सिर्फ भारत में एक वर्ष की स्थिति है। पूरे विश्व के देशों का आकलन करेंगे तो ध्यान में आएगा कि इस्लामिक जिहादी सोच और इसके लिए कुछ भी कर गुजरने की जिद आज 21वीं सदी की दुनिया में भी मानवता की सबसे बड़ी शत्रु बनी हुई है।
डैनियल बेंजामिन और स्टीवन साइमन ने अपनी पुस्तक ‘द एज ऑफ़ सेक्रेड टेरर’ के 40वें पृष्ठ पर लिखा है कि इस्लामिक आतंकवादी हमले विशुद्ध रूप से पान्थिक हैं। उन्हें “एक संस्कार के रूप में देखा जाता है … ब्रह्माण्ड में इस्लाम को बहाल करने का इरादा एक नैतिक आदेश है।”… यह न तो राजनीतिक या रणनीतिक है बल्कि “मोचन का कार्य” का अर्थ “ईश्वर (अल्लाह) के अधिपत्य को नकारने वाले को अपमानित करना और उनका वध करना है”। चार्ली हेब्डो के ऊपर गोलीबारी के लिए उत्तरदायी कोउची भाइयों में से एक ने फ़्रांसीसी पत्रकार को यह कहते हुए बुलाया, “हम पैगंबर मोहम्मद के रक्षक हैं।” (Does Islam fuel terrorism?”. CNN. 13 January 2015)।
ब्रिटेन की मंत्री सुएला ब्रेवरमैन ने हाउस ऑफ कॉमन्स में उक्त विषय पर पिछले वर्ष ‘कांटेस्ट:द यूनाइटेड किंग्डम्स स्ट्रेटेजी फॉर कॉउंटरिंग टेररिज्म 2023’ नामक रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट बताती है, कैसे दुनिया के कई देशों में इस्लामिक जिहादियों की करतूतें चल रही हैं, जिनसे कि सचेत रहने की जरूरत है। ब्रिटेन के लिए इस्लामी आतंकवाद सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है। जिहादी गुट अल कायदा तथा इस्लामिक स्टेट और उनसे जुड़े अन्य छोटे-बड़े गुट और ज्यादा इलाकों में फैलते जा रहे हैं और इनकी गतिविधियां बेरोकटोक जारी हैं। रिपोर्ट में साफ बताया गया है उनके देश ब्रिटेन में अगर सबसे बड़ा खतरा कोई है तो वह इस्लामी आतंकवाद ही है। कुल मिलाकर इस्लामिक आतंक या कट्टरपन्थी इस्लामी आतंकवाद हिंसक इस्लामवादियों द्वारा किये गये निर्दोष नागरिकों के विरुद्ध आतंकवादी कार्य हैं जिनकी एक पान्थिक प्रेरणा होती है। ( “Terrorism”. The Oxford Encyclopedia of the Islamic World, संपादक: John L. Esposito। Oxford: Oxford University Press)।
‘विद्वानों का कहना है कि इस्लाम में आतंकवाद के लिए कोई स्थान नहीं है, लेकिन दुर्भाग्यवश मुस्लिम-बहुल देशों कि सत्ता आतंक पर ही टिकी हुई है और इस्लाम का अनुसरण करनेवाले अनेक संगठन, आतंकवाद के माध्यम से ही अपने राजनीतिक उद्देश्यों को पूर्ण करना चाहते हैं। कश्मीरी समस्या के कारण भारत, मजहब आधारित आतंकवाद का लंबे समय से शिकार रहा है। लेकिन यह समस्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और बहस का विषय तब बनी जन 11 सितंबर को न्यूयार्क और वाशिंगटन में आतंकवादी प्रहार हुए और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर ध्वस्त हो गया। ‘ (मुस्लिम आतंकवाद बनाम अमेरिका, संपादक-राजकिशोर, वाणी प्रकाशन)। दशकों से ऐसे सबूत सामने आते रहे हैं, जो दिखाते हैं कि गैर अब्राहमिक धर्मों के मानने वाले भी ‘धार्मिक फोबिया’ से प्रभावित हुए हैं। इसमें भी खास तौर से एंटी हिंदू, एंटी बौद्ध, एंटी जैन और एंटी सिख तत्व हैं। धार्मिक फोबिया का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मंदिर, गुरुद्वारा और मोनेस्ट्री पर हमले आज भी लगातार किए जा रहे हैं। बामियान बुद्ध का ध्वंस, सिखो का नरसंहार, मंदिरों पर हमले और मूर्तियों को तोड़ना गैर अब्राहमिक धर्मों के खिलाफ फोबिया दिखाता है। वास्तव में इस्लामोफोबिया उन लोगों द्वारा गढा गया एक सिद्धांत है जो नहीं चाहते कि इस्लामिक सच्चाइयां सबके सामने आये। कहना होगा कि आम इंसान को सच्चाई से अवगत नहीं कराने से बड़ा कोई गुनाह नहीं हो सकता है, जो कि इस वक्त यूएनओ कर रहा है।
(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)