प्रदीप सिंह।
4 जून 2024 की तारीख याद रखिएगा। आप कहेंगे इसमें नई बात कौन सी है। सबको पता है कि 4 जून 2024 को लोकसभा चुनाव का नतीजा आएगा। उस दिन तय होगा किसकी सरकार बनेगी- कौन सरकार बनाने से चूक जाएगा। मैं उस लिहाज से इस तारीख को याद रखने की के लिए नहीं कह रहा हूं। नतीजा पहले से पता है किसकी सरकार बनने जा रही है और कौन सरकार बनाने से चूक जाएगा। यह भी पता है, जो इस समय चर्चा चल रही है कि बीजेपी और एनडीए कितना ऊपर चढ़ेगा, कांग्रेस और इंडि एलायंस कितना नीचे जाएगा।
ज्यादातर लोगों का कहना है कि बीजेपी बढ़ेगी लेकिन जितना दावा कर रही है, उसने जो लक्ष्य निर्धारित किया है, वहां तक नहीं पहुंचेगी। दूसरे लोगों खासतौर से कांग्रेस और एंडी एलायंस के समर्थकों के बीच चर्चा है कि बीजेपी की सीटों की संख्या घट सकती है। अपनी सीटों के बारे में वे कुछ नहीं बता रहे हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजे की उम्मीदें और आशंकाएं लोगों के सामने बड़ी स्पष्ट हैं। मैं यह पहला चुनाव देख रहा हूं जिसमें पहला वोट पड़ने से सबको पता है कि सरकार किसकी बनने जा रही है और कौन विपक्ष में बैठेगा।
आज मैं 4 जून की तारीख की बात इसलिए कह रहा हूं कि 4 जून के बाद देश की राजनीति बदलने जा रही है। सरकार नहीं बदलेगी लेकिन राजनीतिक वर्ण क्रम में बड़ा बदलाव आने जा रहा है। अभी के राजनीतिक वर्ण क्रम में पहले नंबर पर भारतीय जनता पार्टी है। दूसरे नंबर पर कांग्रेस पार्टी है। कांग्रेस पार्टी के लिए 4 जून की तारीख बड़ी खतरनाक साबित होगी- यह इतिहास में आगे चलकर दर्ज होगा। 4 जून को जो नतीजा आएगा उसमें मुझे मुझे पूरी उम्मीद है कि कांग्रेस पार्टी की जो अभी 52-53 सीटें हैं उससे कम आएंगी। मान लीजिए कि उतनी भी आ जाती है या 5-10 सीटें बढ़ भी जाती हैं तो भी उससे कोई ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है।
फर्क कांग्रेस पर नहीं पड़ेगा। फर्क पड़ेगा गांधी परिवार की चुनावी राजनीति पर। इस परिवार के दो सदस्य चुनाव के मैदान से बाहर हो चुके हैं। सोनिया गांधी ने रायबरेली छोड़ दिया। राज्यसभा के जरिए राजस्थान से राज्यसभा के सदस्य बन गई। और वरुण गांधी का भारतीय जनता पार्टी ने टिकट काट दिया। गांधी परिवार के जो चार लोग चुनावी मैदान में थे- दो राजीव गांधी और दो संजय गांधी के परिवार से- उनमें से दो चुनावी मैदान से बाहर हो चुके हैं। जो बचे हैं उनमें एक चुनावी मैदान में है। एक आना चाहता है। राहुल गांधी चुनावी मैदान में है वायनाड से चुनाव लड़ रहे हैं। प्रियंका वाड्रा रायबरेली से चुनाव लड़ना चाहती हैं। क्या प्रियंका वाड्रा को चुनाव लड़ने दिया जाएगा? यह फैसला कांग्रेस पार्टी नहीं करेगी। यह और कोई नहीं करेगा सोनिया गांधी और राहुल गांधी तय करेंगे कि प्रियंका वाड्रा को चुनाव लड़ने दिया जाएगा या नहीं।
चुनावी राजनीति में संजय गांधी के परिवार की बात करें तो मेरा मानना है कि मेनका गांधी का यह आखिरी चुनाव है। मेनका गांधी के लिहाज में भारतीय जनता पार्टी ने वरुण गांधी को पार्टी से निकाला नहीं। दो-तीन दिन पीलीभीत में प्रधानमंत्री की सभा थी जहाँ से वरुण गाँधी सिटिंग एमपी हैं। वह उस सभा से नदारद थे। यह काम करके उन्होंने एक तरह से संकेत दिया है कि अब वह भाजपा में अपना भविष्य नहीं देखते। या यह उनका एरोगेंस है मेरी जरूरत भाजपा को पड़ेगी मुझे भाजपा की जरूरत नहीं है। भाजपा बुलाएगी ऐसा होने वाला नहीं है। मेनका गांधी का जो लिहाज है वह 4 जून 2024 के बाद खत्म हो जाएगा। वरुण गांधी के संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी ऐसे किसी व्यक्ति को सम्मानित नहीं करेगी, उपयोगी नहीं मानेगी जो पार्टी के अंदर रहकर बीजेपी की बीजेपी की, बीजेपी की सरकार की, बीजेपी के नेतृत्व की, प्रधानमंत्री की- सबकी आलोचना करेंगे। पार्टी के अंदर रहते हुए ऐसा करने वाले वरुण गांधी को अगर यह उम्मीद थी कि उनको टिकट मिलेगा तो फिर वह किसी और दुनिया में रह रहे हैं। वह वास्तविकता की दुनिया में नहीं रह रहे हैं। अभी भी उनको लगता है कि भारतीय जनता पार्टी की उनकी जरूरत है। मुझे नहीं लगता कि 4 जून 2004 के बाद उनके लिए कोई गुंजाइश बनेगी।
जनरल वीके सिंह का गाजियाबाद से टिकट कटा है। प्रधानमंत्री गाजियाबाद आए वो सभा में आए, उनके कार्यक्रम में शामिल हुए। उसके अलावा भारतीय जनता पार्टी के कैंडिडेट के प्रचार में उसके साथ जा रहे हैं। उनका टिकट कट गया लेकिन उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि वह पार्टी से बगावत कर रहे हैं या पार्टी के खिलाफ हो गए हैं या पार्टी से नाराज होकर घर बैठ गए हैं। जनरल वीके सिंह का राजनीतिक करियर बहुत लंबा नहीं है यह उनको भी मालूम है। लेकिन अभी वरुण गांधी की उम्र सिर्फ 43 साल है। उनका सफर राजनीतिक सफर बड़ा लंबा होना चाहिए। लेकिन उन्होंने अपने उस लंबे राजनीतिक सफर को अपने आप छोटा करने का इंतजाम कर दिया है।
अभी बात अमेठी और रायबरेली और उसके साथ-साथ गांधी परिवार की। इनको जोड़ कर देखिए, अलग करके मत देखिए। सोनिया गाँधी रायबरेली छोड़कर भाग गई। राहुल गांधी अमेठी छोड़कर आधा भागे हुए हैं लेकिन वह लौट कर आएंगे। उनको लौटकर आना पड़ेगा। पहले मैंने कहा था कि 26 अप्रैल के बाद इसकी घोषणा होगी कि राहुल गांधी अमेठी से भी लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। रायबरेली से कौन आएगा उसकी घोषणा क्यों नहीं हो रही है? उसकी घोषणा इसलिए नहीं हो रही है कि परिवार में द्वंद्व चल रहा है। सोनिया गांधी अब भी नहीं चाहती कि प्रियंका वाड्रा चुनावी मैदान में आए। और प्रियंका को लगता है कि यह समय आ गया है जब उनको चुनावी मैदान में आना चाहिए। चुनाव का नतीजा क्या होगा यह छोड़ दीजिए।
अमेठी में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी मौजूदा एमपी स्मृति ईरानी को उम्मीदवार बनाया है। स्मृति रानी जाने कब से अखाड़ा तैयार करके ताल ठोक रही हैं, चुनौती दे रही हैं राहुल गांधी को कि हिम्मत है तो अकेले अमेठी से लड़कर चुनाव दिखाइए। तो स्मृति ईरानी राहुल गांधी से मुकाबले के लिए तैयार हैं। कांग्रेस पार्टी अभी किसी मुकाबले के लिए तैयार नहीं है क्योंकि वह उहापोह में है। अमेठी और उत्तर प्रदेश के कांग्रेस नेताओं, कार्यकर्ताओं को पता नहीं है कि राहुल गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगे कि नहीं। लेकिन राहुल गांधी को अगर राजनीति में बने रहना है तो वह अमेठी चुनाव लड़ने जरूर आएंगे। उनको अगर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी के भविष्य के बारे में सोचना है तो भी अमेठी से चुनाव लड़ने जरूर आएंगे। सवाल फिर रायबरेली का है। रायबरेली को लेकर भारतीय जनता पार्टी की ओर से भी कई नाम चलते रहे। आपको याद होगा 2014 में भारतीय जनता पार्टी चाहती थी कि सोनिया गांधी के खिलाफ उमा भारती और राहुल गांधी के खिलाफ स्मृति रानी चुनाव लड़ें। स्मृति रानी तैयार हो गई उमा भारती तैयार नहीं हुई। वह झांसी से सांसद थी और चाहती थीं कि दोनों सीटों पर पार्टी उन्हें लड़ने की इजाजत दे। पार्टी इसके लिए तैयार नहीं हुई तो वह वहां से नहीं लड़ी। सोनिया गांधी की स्थिति रायबरेली में खराब हो रही थी। राहुल गांधी की तो बहुत खराब हो गई चुनाव हार गए।
सोनिया गांधी 2014 के चुनाव में साढ़े तीन लाख वोटों से जीती थी लेकिन 2019 के चुनाव में पौने दो लाख से भी कम की मार्जिन रह गई। तो वह लगातार घट रही थी और उसकी एक बड़ी वजह थी कि भारतीय जनता पार्टी उतनी ताकत से रायबरेली में सोनिया गांधी के खिलाफ नहीं लड़ी जिस तरह से अमेठी में स्मृति ईरानी राहुल गाँधी के खिलाफ लड़ी। सवाल यह है कि अमेठी और रायबरेली यह दो सीटें तय करेंगी कि 4 जून के बाद कांग्रेस पार्टी पर गांधी परिवार का वर्चस्व रहेगा या नहीं। अगर अमेठी, रायबरेली दोनों छोड़ देते हैं या फिर लड़ने के बाद हार जाते हैं तो राहुल गांधी की लीडरशिप को चुनौती मिलेगी। ये बीजेपी नहीं देगी, कोई और पार्टी नहीं देगी, कांग्रेस के अंदर से चुनौती नहीं उठेगी- बल्कि परिवार के अंदर से चुनौती उठेगी। वह ऐसा मौका होगा जब राहुल गांधी और कांग्रेस सबसे कमजोर होंगे। अपने राजनीतिक इतिहास में कांग्रेस सबसे कमजोर होगी और अपने राजनीतिक करियर में राहुल गांधी सबसे कमजोर होंगे। कांग्रेस पार्टी अब तक जितने चुनाव लड़ी है उनमें सबसे कम सीटें आएंगी। 2014 में जो सीट मिली थीं इस चुनाव में उससे भी नीचे जाने वाली है। वही समय सही समय होगा प्रियंका वाड्रा और उनके साथियों के लिए स्ट्राइक करने का। दुश्मन (राजनीतिक प्रतिस्पर्धी) जब सबसे कमजोर हो तभी स्ट्राइक करना चाहिए, तभी हमला बोलना चाहिए। तो प्रियंका के लिए इससे सुनहरा अवसर आने वाला नहीं है। यह उनको भी मालूम है कि उनको अपना हक छीन कर लेना पड़ेगा। वह आसानी से मिलने वाला नहीं है। उनको पार्टी का महामंत्री बनाया गया लेकिन उनकी हैसियत केसी वेणु गोपाल से बहुत कमतर है। केसी वेणु गोपाल जो राहुल गांधी के करीबी उनकी कोटरी के सदस्य माने जाते हैं उनकी हैसियत और ताकत प्रियंका वाड्रा से बहुत ज्यादा है। जाहिर है प्रियंका वाड्रा को यह स्थिति बिल्कुल मंजूर नहीं होगी। कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार का कोई सदस्य हो तो उसमें हायरारकी अगर होगी तो सिर्फ परिवार के सदस्यों की होगी। उसके बाद ही पार्टी का कोई सदस्य या कोई नेता आएगा। और केसी वेणु गोपाल हायरारकी में प्रियंका वाड्रा से ऊपर हैं यह उन्हें मंजूर नहीं हो सकता।
राहुल गांधी और प्रियंका दोनों में से भविष्य में कांग्रेस किसके जिम्मे होगी या किसका वर्चस्व, कब्जा,अधिकार होगा इसका फैसला 4 जून 2024 के बाद होगा। राहुल गांधी की लीडरशिप पर बहुत बड़ा सवालिया निशान पहले से लगा हुआ है। नतीजे आने के बाद वह राहुल गांधी के कद से बहुत बड़ा हो जाएगा। राहुल गांधी को तय करना पड़ेगा कि वह चुनावी राजनीति से सन्यास ले लें… या फिर नेपथ्य में चले जाएं व किसी और को मौका दें। बार-बार बहुत से विश्लेषक कहते रहे हैं कि समय आ गया है राहुल गांधी को नेपथ्य में चले जाना चाहिए, किसी और को मौका देना चाहिए। 2019 के चुनाव के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए खुद राहुल गांधी ने कहा था कि अब मैं साइड में रहूंगा, पार्टी कोई और चलाए, उसको मौका मिलना चाहिए। लेकिन अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद भी वह साइड में नहीं गए। पार्टी पर उनका कब्जा, वर्चस्व बना रहा।
और अब मौका आ गया है। मुझे नहीं लगता कि 2024 के नतीजे आने के बाद प्रियंका वाड्रा यथास्थिति को चुपचाप स्वीकार कर लेंगी। सोनिया गांधी पहले से कमजोर हो चुकी हैं। रायबरेली छोड़कर उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की बहुत बड़ी गलती की है। रायबरेली से उनको जो जमीनी ताकत मिलती थी, वहां से चुनाव ना लड़ने का फैसला करके उन्होंने उसे गँवा दिया है। उसका बड़ा वाजिब कारण है और वह समझ में आता है कि उनको इस बात का डर था कि इस बार अगर भारतीय जनता पार्टी कोई बड़ा उम्मीदवार या स्टार कैंडिडेट लेकर आती है तो वह चुनाव हार भी सकती हैं। उनके सामने विकल्प था कि चुनाव हार कर बाहर हों या चुनाव ना लड़कर बाहर हों। तो उन्होंने दूसरे विकल्प को चुना। चुनाव लड़े बिना बाहर हो जाना। रायबरेली के चुनावी मैदान को लेकर जो लड़ाई है कांग्रेस पार्टी में, वह बाकी नेताओं में बाद में होगी। पहले परिवार के अंदर होगी। भाई बहन के बीच होगी कि पार्टी की कमान किसके पास रहेगी? यह फैसला 4 जून के बाद होगा। इसमें ज्यादा समय नहीं लगेगा। एक ही हालत में यह रुक सकता है और राहुल गांधी के पक्ष में जा सकता है, अगर कांग्रेस पार्टी को 100 से ज्यादा लोकसभा सीटें मिल जाएं तो! जिसकी मुझे दूर-दूर तक कोई संभावना नजर नहीं आती। ऐसा होना मेरी नजर में बहुत बड़ा चमत्कार होगा। राजनीति में और जनतंत्र में इस तरह के चमत्कार होते नहीं है। इतना आप मानकर चलिए कि परिवार का झगड़ा 4 जून के बाद बाहर आने वाला है। पार्टी पर कब्जे की लड़ाई खुले में आने वाली है। या तो गांधी परिवार से कांग्रेस पार्टी मुक्त हो जाएगी या गांधी परिवार का पार्टी पर नए सिरे से कब्जा हो जाएगा। नए नेतृत्व में अब पुराने नेतृत्व यानी राहुल गांधी का क्या होगा- इसका फैसला भी 4 जून 2024 के बाद ही होगा।
इसलिए कह रहा हूं कि आजादी के बाद से जिस परिवार का राजनीति पर सबसे ज्यादा प्रभुत्व था, सबसे ज्यादा महत्व था, जिसको भारत की फर्स्ट पॉलिटिकल फैमिली माना जाता था- उसका भविष्य क्या होगा, हश्र क्या होगा यह 4 जून 2024 को तय होगा। कांग्रेस की राजनीति से पूरे विपक्ष की राजनीति जुड़ी हुई है क्योंकि कांग्रेस पार्टी विपक्ष की एकमात्र पार्टी है जो ऑल इंडिया पार्टी है। अगर उसमें विघटन होता है, उसमें ऐसी स्थिति आती है, अंदरूनी झगड़े इस तरह के होते हैं कि वर्चस्व की लड़ाई होती है, पार्टी पर कब्जे की लड़ाई होती है- तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पूरे विपक्ष की क्या हालत होगी? पूरे विपक्ष में बिखराव का एक नया मंजर देखने को मिलेगा। तो 4 जून का इंतजार कीजिए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)