डॉ. अंबेडकर जयंती पर विशेष।
प्रखर श्रीवास्तव ।
संविधान निर्माता डॉ. भीमराव बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती पर सारे कांग्रेसी और वामपंथी भी उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि… चुनावों में नेहरु ने कैसे डॉ. अंबेडकर की ईवीएम को हैक किया था! नेहरु ने कम्युनिस्ट पार्टी के साथ मिलकर कैसे बाबासाहेब को बेईमानी से चुनाव में हराया! जी हां… डॉ. अंबेडकर थे भारतीय चुनावी इतिहास की पहली धांधली के शिकार!
तो बात 1952 की है। देश का पहला आमचुनाव हो रहा था। डॉ. अंबेडकर नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे चुके थे और उत्तरी मुंबई से चुनाव लड़ रहे थे। उन्हें हराने के लिए नेहरु और कम्युनिस्ट पार्टी ने हाथ मिला लिया। कांग्रेस ने एक दूध बेचने वाले नारायण कजरोलकर को अपना उम्मीदवार बनाया। सोचिए देश के प्रधानमंत्री नेहरू दो बार डॉ. अंबेडकर के खिलाफ प्रचार करने के लिए मुंबई गये। वहीं कम्युनिस्ट पार्टी के मुखिया बने श्रीपद अमृत दांगे ने पर्चे बंटवाये जिसमें डॉ. अंबेडकर को खुलेआम “देशद्रोही” कहा गया।
अब नतीजों की बात। चुनाव में जमकर धांधली हुई और डॉ. अंबेडकर करीब 14 हज़ार मतों से चुनाव हार गये। हैरत की बात है कि इन चुनावों में पूरे 78 हज़ार वोट कैंसिल किये गये थे। बाबासाहेब की इस हार का विस्तार से वर्णन किया है पद्मभूषण से सम्मानित महान लेखक धनंजय कीर ने अपने किताब “डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर – जीवन-चरित” में। इस किताब को डॉ. अंबेडकर पर लिखी सबसे आथेंटिक किताबों में से एक माना जाता है। इस किताब के पेज नंबर 418 पर पद्मभूषण धनंजय कीर लिखते हैं कि –
अपनी चुनावी हार के बाद डॉ. अंबेडकर ने अपने बयान में कहा कि- “मुंबई की जनता ने मुझे इतना बड़ा समर्थन दिया तो वो आखिर कैसे बरबाद हो गया? इलेक्शन कमिश्नर को इसकी जांच करना चाहिए।”… वहीं समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने अपने बयान में कहा कि- “इस चुनाव को लेकर डॉ. अंबेडकर की तरह मेरे मन में भी शक है।”… इस हार से लोगों को काफी आश्चर्य हुआ वहीं डॉ. अंबेडकर का मानना था कि कम्युनिस्ट नेता श्रीपद अमृत दांगे के षड़यंत्र की वजह से उनकी हार हुई है।
ऐसा नहीं है कि बाबासाहेब अपने ऊपर हुए इस अत्याचार पर चुप रहे। उन्होनें इस चुनावी धांधली के खिलाफ अदालत में केस दायर किया। हैरत की बात है कि डॉ अंबेडकर की हर छोटी-बड़ी बात बताने वाला वामपंथियों और कांग्रेस का इकोसिस्टम कभी इस बात की चर्चा नहीं करता कि बाबासाहेब अंबेडकर इस देश की चुनावी धांधली के पहले शिकार थे और वो पहले व्यक्ति थे जिन्होने चुनावी घोटाले पर बकायदा अदालत में केस दायर किया था। जानी मानी अमेरिकी लेखक गेल ओमवेट अपनी पुस्तक “Ambedkar: Towards an Enlightened India” में लिखती हैं कि –
“1952 में अपनी चुनावी हार के बाद डॉ. अंबेडकर ने अदालत में केस दायर किया। जिसमें उन्होने आरोप लगाया गया कि कॉमरेड श्रीपद अमृत दांगे की अगुआई में वामपंथियों ने उनके खिलाफ चुनाव में धोखाधड़ी की है। इन चुनावों में 78 हज़ार वोट रद्द हो गये थे। डॉ अंबेडकर ने दावा किया कि वामपंथियों ने उनके खिलाफ गलत प्रचार किया था।”
अब आगे सुनिये… वो और दर्दनाक है। चुनाव हारने के बाद बाबा साहेब को गहरा सदमा लगा। वो बेहद बीमार रहने लगे। उनकी सेहत तेज़ी से गिरने लगी। ये बात मैं नहीं कह रहा बल्कि ये बात कही है डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की पत्नी डॉ. सवित्री बाई अंबेडकर ने। उन्होने 1952 में डॉ अंबेडकर की चुनावी हार के बाद उनके बेहद करीबी दोस्त कमलकांत चित्रे को पत्र भेजा था जिसमें उन्होने लिखा था कि–
“राजनीति डॉक्टर साहब (अंबेडकर) का जीवन है। वही उनकी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए शक्तिवर्धक दवा है। संसदीय कार्य में उन्हें काफी दिलचस्पी है। उनकी बीमारी शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक है। हालांकि उन्होने अपनी चुनावी हार सह ली है, लेकिन फिर भी पुरानी राजनैतिक घटनाओं से उनके स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव आया है। अगर वो लोकसभा में चुने गये तो कौन सा काम हाथ में लेने हैं उनकी प्लानिंग डॉक्टर साहब (अंबेडकर) ने बना रखी थी। लोकसभा ही उनकी कीर्ति और कर्तव्य के लिए उचित जगह है।”
(स्रोत – डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर – जीवन-चरित / लेखक – पद्मभूषण धनंजय कीर)
1952 के लोकसभा चुनाव में मिली हार ने डॉ अंबेडकर को अंदर से तोड़ कर रख दिया था। वो बुरी तरह बीमार रहने लगे थे। लेकिन जो झुक जाये वो फिर अंबेडकर कैसा?… दो साल बाद 1954 में महाराष्ट्र के भंडारा में उपचुनावों में वो एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरे। इस बार भी कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत बाबासाहेब को हराने में झोक दी। लिहाजा इस बार वो आठ हज़ार वोटों से हार गये। पहले मुंबई और फिर भंडारा… दो साल के अंदर मिली दो चुनावी हारों से डॉ अंबेडकर को गहरा सदमा लगा था। भंडारा की हार के बाद वो और ज्यादा बीमार रहने लगे… और आखिरकार 6 दिसंबर 1956 को उनका दुखद निधन हो गया।
इसलिए अगली बार कोई भी नेहरु का चेला या कोई वामपंथी या फिर कोई कट्टर मानसिकता का इंसान आपके सामने जय भीम-जय मीम का नारा लगाए तो उसे आप ज़रूर बताएं की डॉ. अंबेडकर के खिलाफ किसने साजिश रची थी।
(लेखक दूरदर्शन में सीनियर कंसल्टिंग एडिटर हैं)