डॉ. सईद रिजवान अहमद ।
वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन का मुद्दे ने बिल्कुल तूल पकड़ लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कुछ नमक मिर्च लगाकर एक पकौड़ी तली तो सबके मुंह में मिर्ची लग गई। भैया आप हमेशा नमक मिर्च लगाते थे तो कुछ नहीं होता था। लेकिन अब हम यह सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि नरेंद्र मोदी जो चीज भांप गए थे, वो नमक मिर्च नहीं लगा रहे थे, वाकई कांग्रेस की अब मंशा ऐसी है। यह हताशा का नतीजा है या इस देश में एक तरह से तानाशाही की शुरुआत है- जो राहुल गांधी ने बोला था- उसको इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष, राहुल गांधी जी के पिताजी के परम मित्र और सलाहकार सैम पित्रोदा साहब ने भी दोहरा दिया है। उस पर एक तरीके से मोहर लगा दी है, वैलिडेट कर दिया है। राहुल गांधी की बहना ने भी इस पर मोहर लगा दी है। जिस डरावने सपने की, नाइटमेयर की, जिस तानाशाही की बात राहुल गांधी, प्रियंका गांधी कर रहे हैं इसका बीज कहां बोया गया।
राहुल गांधी ने बोला था, “फाइनेंशियल और इंस्टीट्यूशनल सर्वे करेंगे। यह पता लगाएंगे हिंदू किसके हाथों में है, कौन से वर्ग के हाथ में है। और इस ऐतिहासिक कदम के बाद हम क्रांतिकारी काम शुरू करेंगे। जो आपका हक बनता है वह हम आपके लिए आपको देने का काम करेंगे।”
जो राहुल गांधी ने बोला था उस पर एक तरह से सीधे-सीधे मोहर लगा दी है प्रियंका गांधी ने, “जैसा मेरे भाई हर जगह कहते हैं, पूरी गिनती की जाएगी पूरे देश में कि कौन, किस जाति की कितनी आबादी है। सिर्फ आपकी नहीं, सबकी। कौन कितना कमा रहा है और उसके तहत फिर नई नीति आएगी।”
जिस वेल्थ डिस्ट्रीब्यूशन की बात राहुल गांधी ने की है इसके पीछे का जो सार है वो क्या है। चेयरमैन ऑफ इंडियन ओवरसीज कांग्रेस सैम पित्रोदा उसे बताते हैं कि “अमेरिका में अगर एक आदमी के पास 100 मिलियन डॉलर्स है तो वह मरते वक्त अपने परिवार को अपने बच्चों को मात्र 45% दे सकता है, 55% पर वहां की सरकार का कब्ज़ा हो जाता है। यह एक दिलचस्प कानून है। यह अमेरिकी कानून कहता है आपने अपने जीवन में अपने लिए धन कमाया। अब आप जा रहे हैं सो आपको उस वेल्थ के आधे से ज्यादा हिस्से को आपके देश की जनता के लिए छोड़कर जाना पड़ेगा।”
अब यह बात यहां तक पहुंच गई है कि राहुल गांधी के बाद प्रियंका गांधी ने भी इस पर मोहर लगा दी है। सैम पित्रोदा राजीव गांधी जी के मित्र भी थे, सलाहकार भी थे, बड़े करीबी थे। आप लोगों ने देखा होगा राहुल गांधी जब भी अमेरिका सौ-पचास आदमियों को ब्रीफिंग करने या भाषण देने जाते हैं- भारत की ऐसी की तैसी करने के लिए- सैम पित्रोदा हमेशा बगल में बैठे रहते हैं।
सवाल उठता है ये चीज शुरू कहां से हुई? क्या ये चीज अभी से शुरू हुई है जो राहुल गांधी बोल रहे हैं ‘ओबीसी की गिनती होगी, ये होगा।’ साफ-साफ प्रियंका ने कह दिया कि ‘सबका हिसाब होगा कि आपके पास कितनी वेल्थ है।’ सिर्फ यह नहीं कहा है कि इस लेवल के लोगों का हिसाब होगा, कहा है- सबका हिसाब होगा। उसके बाद नई नीति बनाई जाएगी। इसका बीज कहां है, इसका स्रोत कहां है? बुद्धिजीवियों से चर्चा करने से एक नई चीज सामने आई कि इसकी शुरुआत लगभग 75 वर्ष पहले हुई थी ‘द ट्रस्टीशिप आईडिया ऑफ गांधी जी’ से। गांधी जी की ट्रस्टीशिप यह कहती थी कि “आपकी वेल्थ आपकी नहीं है परमेश्वर की है। आप इस वेल्थ के सिर्फ ट्रस्टी हैं। आपको कम से कम आधी वेल्थ उस गरीब जनता को नज्र कर देनी चाहिए जिसके आप ट्रस्टी हैं। तो इसके तार पचहत्तर अस्सी साल पहले से गांधी आइडिया ऑफ ट्रस्टीशिप से जाकर जुड़ते हैं जिसे अब राहुल गांधी और प्रियंका गांधी बोल रहे हैं।
इस तरह जो बात नरेंद्र मोदी ने बोली है उसमें पूरी तरह नमक मिर्च नहीं लगाया गया है। उसकी सत्यता के तार पीछे जाकर मिलते हैं। जिन लोगों को कम ज्ञान होता है और जो लोग एक बात सुनकर उसी तरह से उसको समझकर इंप्लीमेंट कर देते हैं, अपनी बुद्धि और विवेक उस पर नहीं लगाते हैं तो यही हाल होता है।
गांधी जी का आइडिया था आजादी से पहले का। चाहे कानून हो, संविधान हो, धार्मिक और मजहबी किताब हो- जो चीज जैसे लिखी है अगर तुम उसे हूबहू वैसे ही मान लोगे तो गुड़ गोबर होना तय है, रायता फैलना तय है। आपको अपना विवेक लगा के यह समझना पड़ता है कि जो चीज लिखी है यह धरातल पर किस तस्वीर में उतारी जाएगी।
आपको पता होगा लेकिन इन मूर्खों को नहीं पता है कि डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेल्थ हिंदुस्तान में आजादी के दिन से शुरू हो गया था। इन मूर्खों को यह भी पता नहीं है कि हमारे भारत में री डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ विजडम भी 1951 से शुरू हो गया था। हमारा भारत मात्र एक ऐसा राष्ट्र होगा जहां री डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ या डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेल्थ भी हुआ और री डिस्ट्रीब्यूशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ विजडम यानी एजुकेशन भी हुआ। री डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ विजडम एंड एजुकेशन है- रिजर्वेशन। जब आपकी सीट वर्ग विशेष के लिए ब्लॉक कर दी जाती है आप 90% नंबर लेकर उस पद को नहीं पा पाते जिसे दूसरा 50-55% पर पा लेता है। तो यह है डिस्ट्रीब्यूशन एंड री डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ विजडम… ऑफ एजुकेशन… ऑफ लिटरेसी।
ट्रस्टीशिप को लेकर गाँधी जी का जो सपना या विचार था वह भी 1951 से लागू हो गया है। जब आप कार लेने जाते हैं- भले आप 8 लाख की कार लेने जाओ, 20 लाख की लेने जाओ, 50 लाख या एक करोड़ की कोई कार लेने जाओ- जो पैसा आप वहां देकर आते हैं, क्या वह पूरा उस कंपनी को चला जाता है। अगर हम 50 लाख की गाड़ी खरीद रहे हैं तो कंपनी को मात्र 30 लाख जा रहा है। बाकि 20 लाख तो सरकार को जा रहा है जिससे सरकार को डायरेक्ट टैक्स, इनडायरेक्ट टैक्स मिल रहा है। इससे सरकार देश में गरीबों के लिए वेलफेयर स्कीम चला रही है। इन मूर्खों को कौन समझाए कि कानून को पढ़ने और समझने का तरीका क्या होता है। जब हम जमीन लेने जाते हैं। 50 लाख रूपए की जमीन लेते हैं जिस पर 5 लाख रुपए स्टाम्प ड्यूटी देते हैं। कभी दिमाग में आया कि अगर 50 लाख की जमीन बेची है तो यह 5 लाख रुपए हम गवर्नमेंट को क्यों देते हैं? अरे ये री डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेल्थ है कि 45 लाख की जो चीज हमें मिलनी चाहिए थी वो हमें 50 लाख की मिल रही है। जीएसटी क्या है जो हम देते हैं। सरकार कहती है कि तुम 2500 रुपए खर्च कर रहे हो तो 250 रुपये हमें दो। किसलिए दो ?… गरीबों के लिए दो- मकानों के लिए दो- सड़कों के लिए दो- अनाज के लिए दो। ये हमारी ही वेल्थ है इसी को री डिस्ट्रीब्यूट किया जा रहा है और यही कहलाता है- री डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेल्थ।
इनको पता नहीं किसने समझा दिया कि घर-घर जाएंगे, घर-घर सबका सर्वे होगा, सबकी वेल्थ पता लगाई जाएगी। साथ में बहना भी बोल रही है फिर एक नीति बनेगी और संपत्ति सबको बांट दी जाएगी। वो ऐसे नहीं बंटता वो टैक्स के जरिए बंटता है- भले डायरेक्ट टैक्स हो या इनडायरेक्ट टैक्स हो। डायरेक्ट टैक्स क्या है? बहुत सी कंट्रीज में डायरेक्ट टैक्स तक नहीं है, पर हम जब भारत में 12 लाख कमाते हैं तो 3 लाख रुपए हमको सरकार को देना होता है, अरे किस चीज का? कभी सोचा? यही है डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ वेल्थ।
(लेखक अधिवक्ता और राजनीतिक विश्लेषक हैं)