भारतीय सामानों की बिक्री और मांग पर असर

आदित्य गोदारा शिवमूर्ति
श्रुति सक्सेना

 

 

 

 

 
बांग्लादेश में “इंडिया आउट” अभियान ज़ोर पकड़ रहा है. मीडिया में छपी खबरों की मानें तो इस बार बांग्लादेश में रमजान के महीने में इंडिया आउट अभियान की वजह से भारतीय सामानों की बिक्री और मांग में गिरावट दर्ज़ की गई थी. ज़ाहिर है कि इस साल जनवरी में शेख हसीना के चौथी बार देश का प्रधानमंत्री चुने जाने के बाद से ही वहां के प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी (BNP) की अगुवाई में इंडिया आउट अभियान शुरू किया गया था और देखते-देखते बीएनपी का यह भारत विरोधी अभियान पूरे देश में अपनी जड़ें जमाने लगा.

बांग्लादेश में हुए चुनावों के दौरान सत्तारूढ़ अवामी लीग (AL) पर व्यापक स्तर पर गड़बड़ियां करने के आरोपों के बावज़ूद भारत ने जो रुख अपनाया, उसको लेकर बांग्लादेश में कई हलकों में असंतोष व्याप्त है. बताया जा रहा है कि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक वातावरण को कथित तौर पर कमज़ोर करने और देश के आंतरिक मामलों में दख़ल देने को लेकर, वहां भारत के लोग निशाने पर हैं. जिस प्रकार से मालदीव में इंडिया आउट अभियान चलाया गया था, उससे सीख लेते हुए बांग्लादेश में भी सोशल मीडिया पर अपनी पकड़ रखने वाले लोगों द्वारा #IndiaOut और #BoycottIndia जैसे हैशटैग चलाए जा रहे हैं और इसके ज़रिए भारत के विरुद्ध लोगों को भड़काया जा रहा है एवं एकजुट किया जा रहा है. निसंदेह तौर पर भारत विरोधी इस अभियान के पीछे वहां का प्रमुख विपक्षी दल यानी बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी है और कहीं न कहीं यह अपने राजनीतिक मंसूबों को पूरा करने के लिए उसकी एक आख़िरी कोशिश दिखाई पड़ती है.

“इंडिया आउट” अभियान का राजनीतिकरण

बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी के भारत के साथ कभी भी अच्छे संबंध नहीं रहे हैं. पूर्व के घटनाक्रमों पर नज़र डालने से पता चलता है कि भारत के हितों को चोट पहुंचाने और घरेलू राजनीति में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए बीएनपी ने हमेशा भारत के ख़िलाफ़ जहर उगला है और भारत विरोधी नीतियों को हवा देने का काम किया है. जहां तक वर्तमान में बीएनपी द्वारा बांग्लादेश में ज़ोर-शोर से चलाए जा रहे “इंडिया आउट” अभियान की बात है, तो उसे इसकी प्रेरणा मालदीव में चलाए गए इसी प्रकार के भारत विरोधी अभियान से मिली है. ज़ाहिर है कि मालदीव में सत्ता पर काबिज प्रोग्रेशिव अलायंस, जब वहां विपक्ष में था, तब उसके द्वारा इसी प्रकार का इंडिया आउट आंदोलन चलाया गया था. मालदीव की तरह ही बांग्लादेश में भी विपक्षी पार्टियां लोकतंत्र को तहस-नहस करने के आरोप लगाकर सरकार पर हमलावर हैं और भारत के साथ नज़दीकी के लिए उसे कटघरे में खड़ा कर रही हैं. इतना ही नहीं, बांग्लादेश के विपक्षी दल देश में हुए चुनावों में कथित तौर पर हुई गड़बड़ी, देश की घरेलू राजनीति एवं देश के संस्थानों में दख़ल देने और दोनों देशों के बीच लंबे वक़्त से लटके द्विपक्षीय मुद्दों का हल नहीं निकालने को लेकर भारत पर आरोप मढ़ रहे हैं और उसकी अलोचना कर रहे हैं. इसके अलावा भारत और उसकी नीतियों की आलोचना की आड़ में धर्म का भी जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है.

बांग्लादेश की राजनीति देखा जाए तो दो ध्रुवों में बंटी है और बांग्लादेश नेश्नलिस्ट पार्टी के नेताओं की मंशा प्रधानमंत्री शेख हसीना एवं भारत के विरुद्ध देशवासियों की राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काकर देश के राजनीतिक माहौल का फायदा उठाने की है. बीएनपी ने वर्ष 2014 के चुनावों एवं 2023 में हुए संसदीय चुनावों का बहिष्कार किया था, इसके अलावा वर्ष 2018 के चुनावों में उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं था. ऐसे में लगता है कि बीएनपी भारत के ख़िलाफ़ इंडिया आउट अभियान चलाकर अगले चुनावों की तैयारी कर रही है और अपनी स्थिति मज़बूत करने में जुटी है. बीएनपी द्वारा इंडिया आउट अभियान में धर्मिक भावनाओं को उकसाया जा रहा है, साथ ही राष्ट्रवाद का मुद्दा उछालकर भारत विरोधी एवं सत्ता विरोधी लहर को मज़बूत किया जा रहा है.

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कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऐसा करके बीएनपी सत्ता पर काबिज शेख हसीना सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बनाकर उसे कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है. उल्लेखनीय है कि बीएनपी का यह प्रयास न केवल उसके कट्टर समर्थकों को फिर से एकजुट करने का काम करेगा, बल्कि हसीना सरकार से निराश लोगों को भी लामबंद करने का काम करेगा. इसके अलावा बीएनपी की यह कोशिशें प्रधानमंत्री शेख हसीना का विरोध करने वाले एवं भारत विरोधी हिंसा में शामिल रहे, जैसा की वर्ष 2021 में देखा गया था, जमात-ए-इस्लामी और हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम जैसे कट्टरपंथी संगठनों को भी संतुष्ट करने का काम करेंगी.
(आदित्य गोदारा शिवमूर्ति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं। श्रुति सक्सेना ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं। आलेख ओआरएफ से साभार)