डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के गुरु और रूस के वर्तमान दृष्टिकोण का प्रणेता माने जाने वाले ‘अलेक्जेंडर दुगिन’ भारत को इसी सदी में दुनिया की महाशक्ति बनता हुआ देख रहे हैं और इसके लिए मोदी सरकार और उसकी नीतियों को जिम्मेदार बता रहे हैं। वस्तुत: किसी भी बात का महत्व इससे होता है कि उसे कह कौन रहा है। ‘अलेक्जेंडर दुगिन’ को आज के रूस को अपने मन के मुताबिक बनाने का श्रेय दिया जाता है और उनकी कही बातों को पूरे विश्व का बौद्धिक जगत प्रमुखता से लेता है।
माना जाता है रूस के राष्ट्रपति पुतिन अपने देश के लिए जो भी नीति निर्धारित करते हैं, उसके पीछे दिमाग, समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के विशेषज्ञ, रूसी भू-राजनीतिक स्कूल, यूरेशियन आंदोलन के संस्थापक, दर्शनशास्त्री ‘दुगिन’ का होता है। यह आज दुनिया भी स्वीकारती है। अत: जब भारत के संदर्भ में ‘अलेक्सांद्र गेलीविच दुगिन’ एक लम्बा लेख लिखते हैं और यह घोषणा करते हैं, ‘हम एक पूरी तरह से नई घटना देख रहे हैं। हमारी आँखों के सामने एक नए वैश्विक केंद्र भारत का उदय हो रहा है और इस सफलता का श्रेय काफी हद तक नीति में परिवर्तन, भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के साथ नरेंद्र मोदी के मेल से है। तब आज के हालातों को देखते हुए उनकी कही इस बात में पूरी सत्यता नजर आती है।
हो सकता है, कुछ लोग यह विचार करें कि आखिरकार समाजशास्त्री, दार्शनिक ‘अलेक्जेंडर दुगिन’ की बातों का जिक्र भारत में आज इतनी अधिक प्रमुखता से करने की आवश्यकता क्या है? उसका तो सीधे तौर पर भारत से कोई संबंध नहीं है। किंतु उन्हें समझना होगा कि रूस वर्तमान में जिस तरह की भारत के प्रति अपनी नीति रखता है, उसके पीछे कहीं न कहीं ‘अलेक्जेंडर दुगिन’ का दिमाग है। उनके प्रकाशनों में फ़ाउंडेशन ऑफ़ जियोपॉलिटिक्स, फोर्थ पॉलिटिकल थ्योरी, थ्योरी ऑफ़ मल्टीपोलर वर्ल्ड, नूमाखिया (24 खंड), एथनोसोशियोलॉजी जैसी साठ से अधिक पुस्तकें शामिल हैं। आधुनिक रूस समेत विश्व भर में डुगिन के विचारों के प्रभाव को न केवल उनके अनुयायी बल्कि उनके दार्शनिक और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी स्वीकारते हैं।
यहां एक घटना का जिक्र करना समीचीन होगा। 20 अगस्त 2022 की शाम को एक विस्फोट में रूसी पत्रकार दरिया डुगिना की मौत हो गई थी। कई महीनों बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट दी कि संयुक्त राज्य अमेरिका के खुफिया विभाग का मानना है कि डुगिना की मौत एक राजनीतिक हत्या थी, जिसे यूक्रेनी सरकार द्वारा अधिकृत किया गया था। लेकिन अधिकांश खुफिया आकलन ने निष्कर्ष निकला कि हमले का असली लक्ष्य डुगिना के पिता, रूसी राष्ट्रवादी दार्शनिक अलेक्जेंडर दुगिन थे। कई पश्चिमी पर्यवेक्षक आश्चर्यचकित थे, यहाँ तक कि हैरान भी थे कि यूक्रेनी सरकार अपने राष्ट्र के अस्तित्व के लिए युद्ध के बीच में एक दार्शनिक को कैसे निशाना बना सकती है! किंतु यह सच है। वास्तव में यह उदाहरण ही वर्तमान समय में विचारों के अत्यधिक महत्व को दर्शाने के लिए पर्याप्त है। वापिस अपने विषय पर आते हैं, वैश्विक भारत और उसका दुनिया पर होता शक्तिशाली प्रभाव।
अधिकांश राष्ट्र संकट में, भारत बना रहा अपने विकास का रास्ता
वैसे ‘दुगिन’ भारत के वर्तमान और भविष्य को लेकर अति उत्साहित करनेवाली बातें कह रहे कोई पहले व्यक्ति नहीं है, न ही अंतिम हैं। वो जो कह रहे हैं उसका महत्व इसलिए दिखता है, क्योंकि विश्व में एक अलग प्रकार की उथल-पुथल मची हुई है। भू-राजनीति स्तर पर दुनिया कई खेमों में बंटी दिखती है। इजराइल-गाजा के बीच हमास आतंकवादी संगठन को लेकर चले लम्बे युद्ध का अब तक पूरी तरह अंत नहीं हो पाया और इजराइल-ईरान के बीच युद्ध का नया संकट खड़ा है। चीन की अपनी अधिनायक राजनीति है, जिससे उसके आसपास के सभी देश परेशान हैं।
अफ्रीका के ज्यादातर राष्ट्र आंतरिक संकट से जूझ रहे हैं। वहां गृहयुद्ध जैसे हालात हैं। यूरोप के अधिकांश देश आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं, जीडीपी गिरी हुई है, यहां के आम जीवन में बहुत उत्साह नजर नहीं आता। भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, बांग्लादेश, अफगानिस्तान किसी न किसी संकट से जूझते दिखते हैं, जिसमें कि सबसे बड़ा संकट आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सत्ता से जुड़ा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यूक्रेन युद्ध को रुकवाने के लिए कुछ नहीं कर पा रही है। ऐसे में निश्चित ही यह बहुत बड़ी बात है कि भारत तमाम असहमतियों के बीच सहमति बनाने में कामयाब होता दिखता है।
2030 तक अमेरिका, चीन को पीछे छोड़ देगा भारत
‘अलेक्सांद्र गेलीविच दुगिन’ ने भारत की अर्थव्यवस्था की तेज रफ्तार को लेकर खुशी जताई है। उन्होंने लिखा, ‘‘कई लोगों को आश्चर्य होगा कि भारत वर्तमान में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। 2023 में देश की जीडीपी 8.4 प्रतिशत बढ़ी। 2027 तक इसके वैश्विक स्तर पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो भारत 2030 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका और यहां तक कि चीन को भी पीछे छोड़ सकता है। भारत जनसांख्यिकी और आईटी क्षेत्र में भी अग्रणी है। भारतीय प्रवासी अब सिलिकॉन वैली के एक महत्वपूर्ण हिस्से को नियंत्रित करते हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक उदार-वैश्विक विचारों के साथ जातीय रूप से भारतीय हैं। दिलचस्प बात यह है कि रिपब्लिकन पार्टी में एक प्रमुख रूढ़िवादी राजनेता, भारतीय मूल के एक कट्टर ट्रम्प समर्थक, विवेक रामास्वामी हैं। कोई भी क्षेत्र हो भारतीय आगे बढ़ रहे हैं।’’
सफलता का पूरा श्रेय मोदी के नेतृत्व को
दुगिन साथ ही यह भी घोषणा करते हैं कि भारत वर्तमान में आईटी में वैश्विक नेताओं में से एक है और वित्तीय क्षेत्र एक नया वैचारिक वैश्विक आयाम प्राप्त करेगा। वे लिखते हैं कि हम एक पूरी तरह से नई घटना देख रहे हैं, हमारी आँखों के सामने एक नए वैश्विक केंद्र भारत का उदय हो रहा है। निश्चित तौर पर इन सफलताओं का श्रेय काफी हद तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों को जाता है। भारतीय जनता पार्टी के शासन और मोदी के व्यक्तिगत राजनीतिक करिश्मे ने भारत को मौलिक रूप से बदल दिया है। दिलचस्प बात यह है कि मोदी के शासन में इंडिया का आधिकारिक नाम बदलकर उसका प्राचीन संस्कृत नाम ‘भारत’ कर दिया गया। आज यह निर्णय दर्शाता है कि नरेंद्र मोदी कांग्रेस की तुलना में पूरी तरह से अलग एवं हर क्षेत्र में भारत को श्रेष्ठता के साथ आगे बढ़ाए जाने की विचारधारा पर कार्य कर रहे हैं।
‘अलेक्सांद्र दुगिन’ भारत की स्वाधीनता के साथ ही इस बात की ओर सभी का ध्यान आकृष्ट करते हैं कि ‘‘अंग्रेज देश से चले गए, उन्होंने भारत में सत्ता कांग्रेस को सौंप दी (जिसने पहले मुस्लिम बहुल कई क्षेत्रों- पाकिस्तान और बांग्लादेश – के साथ-साथ श्रीलंका, भूटान और नेपाल को भी अलग कर दिया था), यह मानते हुए कि यह पार्टी भारत को एंग्लो-सैक्सन प्रभाव क्षेत्र में रखेगी और इसे आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण (क्षेत्रीय विशिष्टताओं के साथ) के रास्ते पर ले जाएगी, जिससे औपनिवेशिक नियंत्रण का कुछ रूप बना रहेगा। इसके विपरीत, कांग्रेस के मुख्य विरोधियों ने स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत से ही यह माना था कि भारत केवल एक देश या एक पूर्व उपनिवेश नहीं था, बल्कि एक शक्तिशाली और विशिष्ट सभ्यता का क्षेत्र था। आज, हम इस अवधारणा को ‘सभ्यता-राज्य’ के रूप में संदर्भित करते हैं। इस विचार को सबसे पहले कन्हैयालाल मुंशी ने व्यक्त किया था और इसे अखंड भारत, ‘अविभाजित भारत’ या ‘ग्रेटर इंडिया’ के रूप में जाना जाने लगा।’’
बांग्लादेश में विपक्ष के “इंडिया आउट” अभियान के पीछे की राजनीति-1
वर्तमान भारत और वैदिक सभ्यता
‘दुगिन’ ने बहुत स्पष्ट लिखा है कि नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में हमारे सामने एक ऐसा भारत उभर रहा है जिसे हम शायद ही जानते हों- एक सही परंपरागत भारत, एक वैदिक सभ्यता को आचरण में लेकर आनेवाला राज्य और पूर्ण संप्रभुता के मार्ग पर एक महान भारत हमें दिखाई देता है। कहना होगा कि मोदी का प्रशासन भारत को एक वैदिक सभ्यता के रूप में बढ़ावा दे रहा है। अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक स्तर पर भारत भू-राजनीतिक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल के साथ अधिक संरेखित हो रहा है। चीन के साथ बढ़ते सीमा संघर्ष में शामिल है, इसलिए भारत की कई क्षेत्रीय चीन विरोधी गुटों जैसे कि क्वाड में भागीदारी है। साथ ही पकिस्तान को छोड़कर इस्लामी दुनिया के साथ भारत के संबंध प्रगाढ़ हो रहे हैं।
उन्होंने चीन का उदाहरण देते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि जिस तरह चीन ने अपने उद्देश्यों के लिए वैश्वीकरण का इस्तेमाल किया, अपनी संप्रभुता को खोने के बजाय मजबूत किया, उसी तरह ग्रेटर इंडिया भी ऐसा करने का इरादा रखता है। शुरू में अंतरराष्ट्रीय राजनीति की वस्तुगत वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी शक्ति को मजबूत करने, अपनी विशाल आबादी के कल्याण को बढ़ाने, घरेलू बाजार की मात्रा, सैन्य शक्ति और तकनीकी क्षमता का विस्तार करने के लिए और फिर उपयुक्त समय पर, एक पूरी तरह से स्वतंत्र और संप्रभु ध्रुव के रूप में उभरने के लिए भारत आज तैयार दिखता है।
जॉर्ज सोरोस भारत का सबसे बड़ा शत्रु
उन्होंने लिखा, आज भारत वैश्विकतावादी रणनीति को सबसे अच्छी तरह समझ रहा है। ‘दुगिन’ आज यह भी बता देते हैं कि जॉर्ज सोरोस और उनके ओपन सोसाइटी फाउंडेशन जो कि रूसी संघ में प्रतिबंधित है और जिसका उद्देश्य खुले तौर पर परंपरा, संप्रभुता और स्वतंत्र संस्कृतियों और समाजों का नुकसान पहुंचाना है, ने नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के साथ युद्ध की घोषणा की है।
वस्तुत: ऐसा करके सोरोस ने न केवल विपक्षी कांग्रेस का समर्थन किया, बल्कि भारत में सामाजिक और जातीय संघर्ष को भी सक्रिय रूप से भड़काया है। खास तौर पर दलितों को मोदी के खिलाफ उठ खड़ा होने का आह्वान करते हुए असंतोषियों को विद्रोह के लिए उकसा रहा है। यह वैश्विकवादियों द्वारा रची जा रही ‘रंग क्रांति’ का एक और संस्करण है। वे लिखते हैं कि अमेरिकी बिजनेसमैन जॉर्ज सोरोस जैसी शख्सियतों ने मोदी की नीतियों का विरोध इस हद तक किया है कि आज भारत के भीतर सामाजिक और जातीय तनाव भड़क गया है, जिससे कि मोदी और भाजपा को सावधान रहने की अत्यधिक जरूरत है।
कुल मिलाकर अलेक्जेंडर दुगिन आज जो कह रहे हैं, वह वर्ष 1893 में स्वामी विवेकानंद द्वारा अमेरिका के शिकागों शहर में आयोजित विश्व धर्म संसद में दिए गए उनके भाषण की सहज याद दिला देता है। स्वामी विवेकानंद ने अपने एक भाषण में कहा था कि 19वीं सदी यूरोप की थी, 20वीं सदी अमेरिका की है और 21वीं सदी भारत की होगी। वास्तव में वर्तमान में मोदी सरकार जिस तरह से नीतिगत निर्णय लेकर कार्य करती दिखती है, उसे देखते हुए यही कहना होगा कि आज की 21वीं सदी सच में भारत के नवोन्मेष और उत्थान की है। भारत अपने विचारों से विश्व विजय की ओर अग्रसर है।
(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)