प्रदीप सिंह।
इस समय देश के चुनावी माहौल में एक फर्जी विमर्श बहुत तेजी से चलाने की पुरजोर कोशिश हो रही है। भारतीय जनता पार्टी के विरोधी दल, खासतौर से कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी इसे चलाने की कोशिश कर रहे हैं।
पहले उन्होंने जाति की गणना का मुद्दा चलाने की कोशिश की- नहीं चला। उससे पहले अडानी अंबानी का मुद्दा चलाने की कोशिश की- नहीं चला। अमीरों का कर्जा माफ कर दिया मुद्दा चलाने की कोशिश की- नहीं चला। उसके अलावा एक के बाद एक मुद्दे ट्राई करते रहे- चला नहीं। अब उनको लग रहा है कि भारतीय जनता पार्टी ने जो अबकी बार 400 पार नारा दिया- इसको लेकर सवाल उठाओ, उनकी नियत पर शक पैदा करो। लोगों के मन में यह आशंका पैदा करो कि इनको 400 क्यों चाहिए। 400 पार ये इसलिए चाहते हैं ताकि संविधान को खत्म कर सकें। ताकि आरक्षण को खत्म कर सकें। परसेप्शन बनाया जा रहा है कि संविधान का मतलब सिर्फ आरक्षण है। संविधान का मतलब सिर्फ आरक्षण नहीं है। संविधान में बहुत सारी चीजें हैं। लोगों के मौलिक अधिकार हैं जिनको आप अगर याद करें 1975 में कांग्रेस पार्टी ने खत्म कर दिया था। जीने का अधिकार भी छीन लिया था। उस समय इंदिरा गांधी के पास 400 पार की संख्या नहीं थी। 352 सीटें थी कांग्रेस की। 2019 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों को 353 सीटें मिली थी।
1975 में इंदिरा गांधी ने संविधान के मूल ढांचे से छेड़छाड़ की उसमें बदलाव किया। उस समय मूल ढांचे पर ही केशवानंद भारती मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ फैसला आ चूका था कि संविधान में संशोधन हो सकता है लेकिन संविधान की मूल संरचना, बेसिक स्ट्रक्चर में कोई बदलाव नहीं हो सकता। इसके बावजूद इंदिरा गांधी ने यह किया। देश ने देखा कि उसका क्या असर हुआ और जनता ने किस तरह से रिएक्ट किया। वह सब इतिहास का विषय है।
अब सवाल यह है कि क्या विपक्ष का यह मुद्दा चल रहा है। उससे पहले जरा कुछ बातों पर कुछ तथ्यों पर गौर कर लें। विपक्ष ने यह मुद्दा उठाया कि 400 पार चाहिए संविधान बदलने के लिए। पहली बात तो यह गलत है कि 400 पार आएगा तभी संविधान बदल सकते हैं ,ऐसा नहीं है। यह झूठ है। लेकिन इस पर थोड़ा और आगे चलते हैं भारतीय जनता पार्टी को समझ में आ गया कि विपक्ष मुद्दे को कहां ले जाना चाहता है। तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश की रैली में इसका जवाब दिया कि ‘पूछ रहे हैं 400 पार क्यों चाहिए?’ उन्होंने कहा ‘400 पार इसलिए चाहिए ताकि आपका जो कुत्सित इरादा है कि अति पिछड़ों या पिछड़ा वर्ग, दलितों और आदिवासियों के आरक्षण के हक में से कटौती करके मुसलमानों को आरक्षण दिया जाए। आपके उस मंसूबे को पूरी तरह से नाकाम करने का ऐसा इंतजाम करना कि यह आप कभी कर ही ना सकें इसलिए 400 पार चाहिए।’
मोदी ने उसका जस्टिफिकेशन दिया जो विपक्ष बताने की कोशिश कर रहा है वैसा नहीं है। उसके ठीक उल्टा है। एक तरह से उन्होंने पासा पलट दिया। लेकिन आरक्षण बहुत संवेदनशील ऐसा मुद्दा है। जब भी इस तरह से आरक्षण के मुद्दे पर बात होती है तो लोग तर्क के आधार पर नहीं, भावना के आधार पर सोचते हैं। और गैर भाजपा दल तुरंत 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव का उदाहरण देते हैं। वे कहते हैं कि जो आरक्षण की समीक्षा को लेकर जो सरसंघचालक ने बयान दिया था उसी के कारण चुनाव में बीजेपी की दुर्गति हुई। 2015 के चुनाव में बीजेपी चुनाव हार गई। मेरा कहना है कि वह बिल्कुल गलत परसेप्शन है, गलत धारणा है कि बीजेपी उनके उस बयान के कारण चुनाव हार गई। अगर उन्होंने वह बयान ना दिया होता तो भी बीजेपी हार जाती। हो सकता है उसकी पांच सात सीटें ज्यादा आ जाती, इससे ज्यादा का फर्क नहीं पड़ता। मेरी नजर में बीजेपी के 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव हारने का शायद एकमात्र फैक्टर था नितीश कुमार का महागठबंधन में शामिल होना। आप कल्पना करके देखिए नीतीश कुमार अगर महागठबंधन की बजाय एनडीए में होते क्या तब भी बीजेपी हार जाती? मुझे नहीं लगता कि ऐसा होता।
नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में एक बैलेंसिंग फोर्स हैं। वह जिस पल्ले में होंगे वह पल्ला भारी हो जाएगा। यह पिछले 25 साल की राजनीति से साबित हो चुका है। तो अर्थमेटिक महागठबंधन के पक्ष में गई और नीतीश कुमार के साथ आने का फायदा महागठबंधन को मिला। भाजपा के लिए सबसे बड़ा धक्का, सबसे बड़ा सेटबैक नीतीश कुमार का एनडीए छोड़ना था, न कि सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान। तथ्य यह है कि 2005 से लगातार जब नीतीश कुमार आरजेडी के साथ रहे तो आरजेडी की जीत हुई और भाजपा के साथ रहे हैं तो भाजपा की जीत हुई है।
भाजपा के साथ ज्यादा रहे हैं तो भाजपा की ज्यादा जीत हुई यानी एनडीए की ज्यादा जीत हुई है महागठबंधन के साथ सिर्फ एक बार गए 2015 में और महागठबंधन की जीत हो गई तो पहली बात तो यह है दूसरी बात समझने की जो है वह यह है कि
विरोधी भारतीय जनता पार्टी के वोट के आधार और जनाधार को अभी भी 2014 के पहले की भाजपा के रूप में देखते हैं। 2014 के पहले की भाजपा का कोर वोट सवर्ण जातियों का समर्थक था। 2014 के पहले और आज की भाजपा में जमीन आसमान का अंतर है। उसका कोर वोटर बदल चुका है। उसका चरित्र बदल चुका है। 2013 में जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया उस समय से यह सामाजिक बदलाव शुरू हो गया था। 2014 में उसका नतीजा दिखाई दिया और फिर 2019 में दिखाई दिया। 30 साल बाद, 1984 के बाद, अगर किसी एक पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा में पूर्ण बहुमत मिला तो वह है भारतीय जनता पार्टी। पूर्ण बहुमत इसलिए नहीं मिला कि उसका जनाधार सवर्ण जातियों का समर्थन था। उसको एक नहीं दो-दो बार पूर्ण बहुमत मिला। दूसरी बार सीटें और ज्यादा बढ़ गई। यह इसलिए हुआ कि भारतीय जनता पार्टी के साथ अति पिछड़ा वर्ग, दलित समाज जो गैर जाटव है और उसके अलावा आदिवासी समाज- ये तीनों सामाजिक शक्तियां बीजेपी के साथ जुड़ गई। कांग्रेस, बीएसपी, सपा, राजद सबने इसको अलग करने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुए।
कांग्रेस आरक्षण को लेकर बीजेपी पर इसलिए हमलावर है क्योंकि वह अभी भी इसी ख्याल में है कि अभी भी भारतीय जनता पार्टी का मुख्य जनाधार सवर्ण है। सवर्ण चूंकि आरक्षण के खिलाफ है इसलिए अगर वे बीजेपी पर आरक्षण ख़त्म करने का आरोप लगाएंगे तो वह चस्पा हो जाएगा। पर ऐसा होने वाला नहीं है यह दस साल में अपने काम से नरेंद्र मोदी ने दिखा दिया है। लोगों ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के 10 साल में देखा कि किस तरह से कांग्रेस पार्टी ने पिछड़ों और दलितों के आरक्षण के कोटे में कटौती करने की कोशिश की। उसका प्रमाण है कर्नाटक में। जिस तरह से चार बार कोशिश की आंध्र प्रदेश में। वह हाई कोर्ट से, सुप्रीम कोर्ट से रिजेक्ट हुआ, कांग्रेस पार्टी ने कदम पीछे नहीं खींचे।
कांग्रेस पार्टी का इरादा है कि दलितों और पिछड़ों के आरक्षण के कोटे में कटौती करके उसमें से एक हिस्सा मुसलमानों को दिया जाए। इसके बचाव के लिए, इस पर भाजपा आक्रामक ना होने पाए इसलिए, कांग्रेस पार्टी ने उल्टा हमला किया है कि भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहती है। भाजपा ने आरक्षण खत्म करने का कोई संकेत अपनी 10 साल की मोदी सरकार और उससे पहले 6 साल की अटल बिहारी वाजपेई सरकार में नहीं दिया। कुल मिलाकर 16 साल की सरकार में ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलेगा जब बीजेपी ने ऐसा करने की कोशिश की हो। इसके उलट भारतीय जनता पार्टी ने अति पिछड़ों, दलितों और आदिवासी समाज के लोगों को संगठन में पहले से ज्यादा जगह दी, जनप्रतिनिधित्व दिया विधानसभा में हो, स्थानीय निकाय हो, ग्राम पंंचायत हो या लोकसभा हो। उसके अलावा सत्ता में हिस्सेदारी दी। तो उनको आरक्षण के साथ-साथ दूसरे लाभ भी दिए जो सामाजिक समरसता के कारण संभव हो पाया। उससे बड़ी बात 10 साल की सरकार में जिस तरह से सरकार की योजनाओं का लाभ इस वर्ग तक पहुंचा। यह जो लाभार्थी वर्ग बना है उसमें सबसे बड़ी संख्या पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासी समाज की है। उनको मालूम है कि बीजेपी ने यह करके दिखाया है।
बीजेपी ने राम और राशन दोनों से इस समाज को जोड़ा है। और राम और राशन का यह जो कॉम्बिनेशन है, इसको तोड़ना कांग्रेस या फिर उसके दूसरे साथी दलों के लिए बहुत मुश्किल है। कांग्रेस पार्टी डंके की चोट पर एंटी हिंदू एजेंडा चला रही है। अति पिछड़ा वर्ग, दलित, आदिवासी समाज हो को भारतीय जनता पार्टी ने अच्छी तरह से समझा दिया है और उसने समझ लिया है कि हिंदुत्व में उसका भी स्टेक है… तो हिंदुत्व के विरोध में जो भी शक्ति खड़ी होगी उसके साथ यह समाज नहीं जाने वाला है। यह हमने राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में भी देखा। (और विस्तार से जानने के लिए वीडियो देखें)
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)