नेहरू पिछड़ों को आरक्षण के खिलाफ थे, इंदिरा व राजीव उन्हीं की राह पर चले।

सुरेंद्र किशोर।

2019 के लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि:
5 सितंबर, 2018 को कुरुक्षेत्र में ब्राह्मण सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि ‘‘कांग्रेस के डी.एन.ए.में ब्राह्मण समाज का खून है।’’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘कांग्रेस सत्ता में आई तो ब्राह्मणों को आरक्षण दिया जाएगा।’’ (अमर उजाला)
सुरजेवाला साहब को लगा था कि कांग्रेस से ब्राह्मण वोट खिसक जाने के कारण ही भाजपा सन  2014 में केंद्र की सत्ता में आ गयी।
सुरजेवाला यह समझ नहीं पाये कि अपवादों को छोड़कर कुल मिलाकर ब्राह्मण एक विवेकशील समुदाय है। उसने देशहित में काम किया। पहले यू.पी.के ब्राह्मणों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रति आशंकाएं थीं। पर जब उन लोगों ने देखा कि योगी अच्छा कर रहे हैं तो ब्राह्मणों ने भी उन्हें आशीर्वाद दिया। कम ही लोग जानते हैं कि आजादी की लड़ाई में यू.पी में किसी अन्य जाति की अपेक्षा ब्राह्मण ही अधिक संख्या स्वतंत्रता सेनानी थे।

2024 के लोकसभा चुनाव की पृष्ठभूमि:

अब राहुल गांधी को यह लगता है कि पिछड़ा वोट भी खिसक जाने से कांग्रेस की हालत पतली हो गयी है। तो वे कह रहे हैं कि ‘‘देश का वर्तमान सिस्टम पिछड़ा वर्ग के खिलाफ है।’’
इस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ‘‘शहजादे ने मान लिया है कि उनके पिता जी, उनकी दादी के समय में जो सिस्टम बना, वह एससी-एसटी, ओबीसी का विरोधी रहा।’’

दरअसल मोदी जी इस क्रम में अपनी दादी के पिताजी प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भूल गये। 50 के दशक में ही जवाहरलाल नेहरू ने मुख्य मंत्रियों को लिख दिया था कि पिछड़ों के लिए कोई आरक्षण लागू नहीं होना चाहिए। इंदिरा-राजीव सब उन्हीं की राह पर चल रहे थे। नेहरू ने काका कालेलकर आयोग की सिफारिश को भी मानने से इनकार कर दिया था।
इतना ही नहीं, नेहरू ने आजादी के तत्काल बाद यह कोशिश की थी कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उप राष्ट्रपति पदों पर एक ही जाति के नेताओं को बैठना चाहिए। राष्ट्रपति पद को लेकर जब कांग्रेस की उच्चस्तरीय बैठक हो रही थी तो नेहरू ने यह धमकी दे दी कि यदि सी. राजगोपालाचारी को राष्ट्रपति नहीं बनाया जाएगा तो मैं प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा। याद रहे कि उप राष्ट्रपति के लिए डा. एस. राधाकृष्णन का नाम पहले ही तय हो चुका था। पर, नेहरू की नहीं चली। सरदार पटेल ने डा.राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनवा दिया। इसके पीछे की नेहरू व बाद के उनके परिवार की मनोवृति पहचानिये।

आजादी के तत्काल बाद के दशकों में कांग्रेस ने बिहार और उत्तर प्रदेश की विधानसभाओं में पूर्ण बहुमत मिलने पर कभी किसी पिछड़ा को मुख्यमंत्री नहीं बनाया।

अपनी गलती स्वीकार करना बड़प्पन माना जाता है यदि आपमें उसे सुधारने की भी प्रवृति हो। पर,ऐसा कांग्रेस ने कभी नहीं किया। समय -समय पर वादा करके कांग्रेस पलटती रही।
सुशासन का वादा किया गया था। पर,आजादी के तत्काल बाद से ही (जीप घोटाला पहला घोटाला) घोटाले शुरू हो गये। 1985 आते -आते राजीव गांधी के अनुसार 100 सरकारी पैसों में से 85 पैसे बीच में लूट लिए जाते हैं।
यह स्वीकारने व सत्ता के दलालों के खिलाफ अभियान चलाने की घोषणा (कांग्रेस के बंबई अधिवेशन में) के बावजूद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बोफोर्स दलाली तथा अन्य घोटालों में फंस कर गद्दी गंवा दी। उससे पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देकर 1971 में गरीब जनता से वोट ले लिया। पर सत्ता में आने के बाद 1971 में पहला महत्वपूर्ण काम हुआ सरकारी मदद से संजय गांधी के लिए मारूति कारखाने की स्थापना का काम।

chaudhary charan singh: Charan Singh worked for empowerment of weaker  sections: Rajnath Singh on his birth anniversary - The Economic Times

चौधरी चरण सिंह को अक्सर लोग ‘‘जाट नेता’’ कहते या लिखते रहे। उन्हें बहुत बुरा लगता था। उन्होंने यह बात एक भेंट वार्ता में मुझे भी बताई थी। मुझे भी यह अन्यायपूर्ण लगा। उनके मंत्रिमंडल में सिर्फ एक ही जाट मंत्री अजय सिंह थे। वह भी राज्य मंत्री। अन्य प्रधानमंत्रियों के मंत्रिमंडलों में उनकी जाति के मंत्रियों को गिन लीजिए। मध्य प्रदेश में तो मन लायक कोई नेता मुख्यमंत्री बनाने लायक नहीं मिल रहा था तो नेहरू जी ने विशेष विमान से इलाहाबाद से कैलाशनाथ काटजू को वहां भेज दिया। वहां हवाई अड्डे पर काटजू साहब को चेहरे से पहचानने वाले भी नहीं थे।

1990: केंद्र सरकार के विभागों में पिछड़ी जाति के क्लास वन अफसर

केंद्र सरकार के विभागों में उच्च पदों पर पिछड़े कर्मियों की संख्या यहां दी जा रही है। यह आंकड़ा सन 1990 का है। 1950 से 1990 तक केंद्र की सरकार में कौन-कौन प्रधानमंत्री थे? उन्होंने इस स्थिति को बदलने के लिए क्या किया?

विभाग / कुल क्लास वन अफसर / पिछड़ी जाति

राष्ट्रपति सचिवालय / 48 / 0
प्रधान मंत्री कार्यालय / 35 / 1
परमाणु ऊर्जा मंत्रालय / 34 / 0
नागरिक आपूर्ति / 61 / 0
संचार / 52 / 0
स्वास्थ्य / 240 / 0
श्रम मंत्रालय / 74 / 0
संसदीय कार्य / 18 / 0
पेट्रोलियम -रसायन / 121 / 0
मंत्रिमंडल सचिवालय / 20 / 1
कृषि-सिंचाई / 261 / 13
रक्षा मंत्रालय / 1379 / 9
शिक्षा-समाज कल्याण / 259 / 4
ऊर्जा / 641 / 20
विदेश मंत्रालय / 649 / 1
वित्त मंत्रालय / 1008 / 1
गृह मंत्रालय / 409 / 13
उद्योग मंत्रालय / 169 / 3
सूचना व प्रसारण / 2506 / 124
विधि कार्य / 143 / 5
विधायी कार्य / 112 / 2
कंपनी कार्य / 247 / 6
योजना / 1262 / 72
विज्ञान प्रौद्योगिकी / 101 / 1
जहाज रानी / 103 / 1
(आंकड़े 1990 के दैनिक ‘आर्यावृत्त’, पटना से साभार)

मंडल आरक्षण की रपट पर कुंडली मारकर बैठ गई कांग्रेस

केंद्र सरकार को मंडल आरक्षण की रपट सन 1980 में ही मिल गयी थी। सन 1980  और सन 1990 के बीच इस रपट पर संसद में तीन बार लंबी चर्चाएं हुईं। कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री ने हर बार यह साफ साफ कह दिया कि इसे लागू नहीं किया जाएगा।
यही नहीं गृह मंत्री से राष्ट्रपति बनने के बाद आर. वेंकट रमण से जब यह गुजारिश की गयी कि आप डा. लोहिया के तैल चित्र का संसद के सेंट्रल हाॅल में लोकार्पण कर दें तो उन्होंने वैसा करने से इनकार कर दिया। आपके मन में सवाल उठेगा राष्ट्रपति ने मना क्यों कर दिया। वह इसलिए कि लोहिया ने मांग की थी कि पिछड़ों के लिए 60 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए। हालांकि लोहिया 60 प्रतिशत में हर जाति-समुदाय की महिलाओं के लिए भी आरक्षण चाहते थे। इस इनकार के खिलाफ मधुलिमये ने वेंकट रमण को लंबा पत्र लिखा था। वह पत्र कलकत्ता से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका ‘संडे’ में पूरा का पूरा छपा था।

ऐसी मनावृति वाली कांग्रेस पर अब भला कौन पिछड़ा भरोसा करेगा? लगे हाथ बता दूं, तथाकथित अगड़ी जाति या पिछड़ी जाति के भरोसे जो राजनीतिक दल अभी चल रहे हैं, देर सबेर उनका भी वही हश्र होगा जो कांग्रेस का हो रहा है। क्योंकि आज विकल्प में एक ऐसा दल खड़ा हो चुका है जो अगला-पिछड़ा-हिन्दू-मुसलमान सबको भरसक समान नजर से देखने की कोशिश कर रहा है। 4 जून को कई लोगों के दिमाग के कूड़े साफ हो जाएंगे।

इस पृष्ठभूमि में राहुल गांधी की ताजा पिछड़ा समर्थक बयान पर भला कौन भरोसा करेगा? घड़ियाली आंसू भी बहुत देर से बहे!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)