त्वरित टिप्पणी।
प्रदीप सिंह।
लोकसभा चुनाव 2024 का नतीजा लगभग आ गया है। शाम के 4:00 बज रहे हैं अभी तक पूरे रिजल्ट नहीं आए हैं। स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुई है लेकिन उसकी दिशा स्पष्ट हो चुकी है। दो-तीन बातें एकदम साफ दिखाई दे रही हैं। एनडीए 400 पार और भाजपा 370 पार का नारा नहीं चला। उसके अलावा भारतीय जनता पार्टी को अकेले 272 सीटें मिल पाएंगी इसमें भी शंका नजर आ रही है। लेकिन एनडीए का बहुमत आ रहा है यानी एनडीए की सरकार बनने जा रही है… नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं… यह स्पष्ट है।
इस वर्डिक्ट या जनादेश के कारण क्या हैं- कहां किससे क्या गड़बड़ी हुई- क्या अच्छा हुआ- इसका विश्लेषण आगे करेंगे। अभी बात करते हैं कि इस वर्डिक्ट या जनादेश का असर क्या होगा? पिछले 10 साल में नरेंद्र मोदी ने राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन किया। राष्ट्रीय राजनीति से क्षेत्रीय दलों का हस्तक्षेप खत्म कर दिया था। गठबंधन की राजनीति से एक दलीय राजनीति की ओर देश को ले गए थे। और जाहिर है कि यह तभी संभव हुआ जब ऐसा जनादेश आया, जब लोगों ने तय किया कि अब गठबंधन की राजनीति नहीं चलेगी। एक दल को स्पष्ट बहुमत देना चाहिए। 2014 में दिया, 2019 में भी दिया। लेकिन जनादेश देने वाले यानी मतदाता का मन 2024 में आकर बदल गया। उन्होंने तय किया कि फिर से गठबंधन की राजनीति देश में चलेगी। इसका पहला असर होने जा रहा है जिसकी धमक अगले 5 साल तक आपको सुनाई देगी, वह यह कि देश में फिर से गठबंधन की राजनीति या कहें क्षेत्रीय दलों का राष्ट्रीय राजनीति में हस्तक्षेप या दखल बढ़ जाएगा।
अब जो नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार बनेगी वह टीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार पर निर्भर होगी। वे कितना बारगेन करते हैं या सरकार को कितना स्थायित्व देते हैं इस पर निर्भर करेगा यह सरकार कितनी स्थाई होगी और कितनी मजबूत होगी। तो अब सरकार की मजबूती पूरी तरह से बीजेपी के हाथ में नहीं है। बीजेपी की बजाय उसके सहयोगी दल तय करेंगे कि यह सरकार कितनी स्थाई होगी। उसका नतीजा क्या होगा? बीजेपी जो बड़े कदम उठाने वाली थी शायद ना उठा पाए। मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता लेकिन शायद ना उठा पाए।
मुझे अभी तुरंत जो उसकी एक कैजुअलिटी दिखाई दे रही है वो ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ हो सकता है क्योंकि अब बीजेपी के पास लोकसभा में दो तिहाई बहुमत नहीं है। राज्यसभा में वह जुटा सकती है लेकिन लोकसभा में उसके लिए अब बहुमत जुटाना संभव नहीं होगा क्योंकि विपक्ष खास तौर से कांग्रेस पार्टी बीजेपी या एनडीए के किसी कदम का समर्थन करेगी, सहयोग करेगी, ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इस तरह आने वाले 5 साल में देश की राजनीति और अधिक प्रतिस्पर्धी और टकरावपूर्ण होने जा रही है। कांग्रेस पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता से बाहर जा रही है और यह लगातार दसवां लोकसभा चुनाव होगा जब कांग्रेस पार्टी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला, बहुमत से काफी दूर रह गई। उसका असर आने वाले 5 सालों में दिखाई देगा।
नरेंद्र मोदी के सामने बहुत बड़ा यक्ष प्रश्न होगा कि आखिर लोग सरकार कैसी चाहते हैं? इस जनादेश से लगता है कि उनके दो एजेंडे काम नहीं कर पाए। एक- हिंदुत्व का और दूसरा- विकास का। दस साल में इतना विकास करने के बाद, इतनी वेलफेयर स्कीम्स चलाने के बाद चाहे मुफ्त राशन की योजना हो या केंद्र सरकार की कोई अन्य योजना… यह नतीजा! इसका मतलब है कि जैसे-जैसे लोगों को लाभ मिलता गया लोगों की महत्वाकांक्षा बढ़ती गई और उस महत्वाकांक्षा से कदम ताल मिलाना भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार के लिए संभव नहीं हो पाया। लेकिन यह पूरी कहानी नहीं बताता है।
दरअसल इस चुनाव में आपको जो सबसे बड़ा फैक्टर नजर आएगा वह है जाति का। जब हिंदुत्व नहीं चलेगा तो जाति चलेगी यह खास तौर से इस देश की राजनीति की सच्चाई है। और जाति चली एक आरक्षण के मुद्दे के कारण। दूसरी बार ऐसा हुआ कि चुनाव में उसका असर हुआ है। 2015 में बिहार विधानसभा के चुनाव में हुआ और इस चुनाव में भी हुआ। बीजेपी के ‘400 पार’ नारे के जवाब में विपक्ष ने कैंपेन चलाया कि यह आरक्षण खत्म करना चाहते हैं। उसका असर सिर्फ दलितों तक सीमित रहा लेकिन दलितों का एक वर्ग इंडी अलायन्स के साथ चला गया। आप फर्क देखिए दो राज्यों में। उत्तर प्रदेश में गया, बिहार में नहीं गया। क्योंकि बिहार में बीजेपी के सोशल एक्वेशन में जीतन राम मांझी भी थे और चिराग पासवान भी थे। इनके होने से दलित ज्यादा आश्वस्त था। लेकिन उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं था। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ या कहे कि समाजवादी पार्टी के नाम पर दलित नहीं गया। वह कांग्रेस के नाम पर गया। कांग्रेस के नाम पर दो चीजें हुई। एक मुस्लिम पोलराइजेशन मुस्लिम कंसोलिडेशन। उधर बीजेपी की कोशिश के बावजूद काउंटर पोलराइजेशन नहीं हुआ क्योंकि हिंदू जाति में बंट गए। उन्होंने जाति के आधार पर वोट दिया। ज्यादातर और खास तौर से दलित समाज के एक बड़े वर्ग ने। उसको लगा कि समाजवादी पार्टी को वोट देने का मतलब है कांग्रेस पार्टी को मजबूत करना। यह आपको वोट शेयर में दिखाई देगा। जिस तरह से बहुजन समाज पार्टी का चार साढ़े चार प्रतिशत वोट घटा है वह कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन को गया। उसका नुकसान भारतीय जनता पार्टी को हुआ हालांकि इसके और भी बहुत से कारण हैं।
उम्मीदवारों का चयन उसमें एक बहुत बड़ा कारण है। जिस तरह से बीजेपी ने यह मानकर उम्मीदवार तय किए कि हम अगर बिजली के खंबे को भी खड़ा कर देंगे तो वह भी जीत जाएगा, उसका भी असर हुआ। बहुत सी बातों का असर हुआ लेकिन इस एक मुद्दे का सबसे ज्यादा असर हुआ। यह जो आपको समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की बढ़ी हुई सीटें नजर आ रही हैं उसका एक सबसे बड़ा कारण यह है।
दूसरा यह साबित हुआ कि डेवलपमेंट आपको चुनाव नहीं जिता सकता। हम पिछले चार चुनाव, दो उत्तर प्रदेश विधानसभा और दो देश के लोकसभा चुनाव की बात करें और उसके पहले गुजरात में नरेंद्र मोदी यह साबित कर चुके थे कि डेवलपमेंट के मुद्दे पर आप चुनाव जीत सकते हैं। इस चुनाव ने यह साबित किया कि यह जो धारणा है, परसेप्शन है- यह स्थाई नहीं है। जब जाति का असर ज्यादा हो जाएगा, जाति का कंसीडरेशन ज्यादा हो जाएगा, तब यह विकास भी नहीं चलेगा, तब यह हिंदुत्व भी नहीं चलेगा। बीजेपी हिंदुत्व के जरिए इसी कास्ट डिवीजन को रोकने की कोशिश करती है और वह विकास के जरिए भी यही काम करती है कि लोग जाति के आधार पर ना सोचें, अपने वेलफेयर के आधार पर सोचें कि कहां उनका लाभ है। लोगों ने यह नहीं सोचा। खास तौर से उत्तर प्रदेश में जिस तरह का जनादेश आया है वह साफ बताता है जिस वर्ग ने भाजपा को छोड़ा उसको ना तो विकास से कोई मतलब है, ना उसको हिंदुत्व से कोई मतलब है। उसको लगा कि बीजेपी अगर तीसरी बार आएगी और बड़े बहुमत से आएगी तो वह आरक्षण खत्म कर सकती है। इस अफवाह पर लोगों ने भरोसा कर लिया। तो एक अफवाह ने बीजेपी को उत्तर प्रदेश में बड़ी करारी शिकस्त दे दी।
लोकसभा चुनाव 2024 के जनादेश पर अगर तात्कालिक त्वरित टिप्पणी करना हो तो यह कह सकते हैं कि बीजेपी से दलित वोट शिफ्ट हुआ, उसकी वजह से यह नतीजा आया। दूसरे वोट जो है वह थे
जो दूसरे वोट 2014, 2017, 2019 और 2022 में बीजेपी के साथ थे वो इस चुनाव में भी बने रहे। बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान उत्तर प्रदेश के उन ग्रामीण इलाकों में हुआ जहां जाति ज्यादा चली है। जाति का असर इस चुनाव के सर पर चढ़कर बोल रहा है। मोदी का करिश्मा नहीं चला, योगी के बुलडोजर का असर नहीं चला और दोनों के विकास का, डबल इंजन के विकास के कामों का असर नहीं हुआ। उस सबको लोग भूल गए। सिर्फ एक चीज के लिए कि हमको अपनी जाति की रक्षा करनी है। दलितों का एक बड़ा वर्ग मानता है उसके लिए भारत के संविधान का मतलब एक ही है- आरक्षण। जब भी कोई आरक्षण के बारे में सवाल उठाता है, वह मुद्दा उसके लिए बहुत संवेदनशील है। उसमें वह फिर तर्क वितर्क नहीं करता। वह फिर तर्क और तथ्य के आधार पर फैसला नहीं करता। वह सेंटीमेंट के आधार पर फैसला करता है। उसके सेंटीमेंट से तय होता है कि वह किस तरफ जाएगा।
विस्तार से जानने के लिए इस वीडियो लिंक पर क्लिक करें
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)