#pradepsinghप्रदीप सिंह।
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एक प्रश्न भाजपा के बहुत सारे समर्थकों, कार्यकर्ताओं के मन में है। वह सवाल है- क्या भारतीय जनता पार्टी कोर्स करेक्शन या भूल सुधार करेगी। सवाल यह कि बीजेपी की स्ट्रेंथ क्या है? यह पहचानना बीजेपी शायद भूल गई है। ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का जो नारा बीजेपी ने दिया वह मेरी नजर में वह ‘पार्टी विद डिफरेंस’ एक ही मायने में है। वह है- उसके निष्ठावान कार्यकर्ताओं की फौज जो निष्काम सेवा, निष्काम कर्म में लगे रहते हैं। वे अपनी विचारधारा को नहीं छोड़ते, विचारधारा के प्रति उनकी निष्ठा नहीं बदलती। हो सकता है वह नाराज होकर वोट देने ना जाएं लेकिन वह किसी दूसरी पार्टी को कभी वोट नहीं देंगे। नए लोगों व नए मेहमानों के स्वागत में भारतीय जनता पार्टी अपने घर वालों को भूल गई।

जो घर वाले थे उनको लगा कि अपने ही घर में वे बेगाने हो गए। 2024 का नतीजा उसी की कहानी कहता है कि एक के बाद एक भारतीय जनता पार्टी की संगठन की ओर से गलतियां हुई, सरकार की उपलब्धियां उसमें दब गई। दस साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आज उत्तर प्रदेश की बात कर रहे हैं तो योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में जो भी काम किया था, उसको संगठन की अकर्मण्यता, अक्षमता और लापरवाही ने डुबो दिया। सरकार की परफॉर्मेंस के कारण जो नतीजा आना चाहिए था वह संगठन की नॉन परफॉर्मेंस के कारण बदल गया। संगठन इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा पाया कि जमीन पर क्या हो रहा है क्या चल रहा है।

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष है भूपेंद्र चौधरी। इनकी प्रशंसा जितनी की जाए, उतनी कम है। इन्हें जमीन की वास्तविकता की कोई जानकारी नहीं। ईमानदारी से अगर कहें तो ये कभी इस बात का दावा भी नहीं करते। इनको बनाने वालों को सोचना पड़ेगा कि इनको बनाया क्यों। पार्टी प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अपने पहले संबोधन में इन्होंने कहा कि “मैं अपनी किस्मत से यहां तक पहुंचा हूं। आप अपने बारे में सोच लीजिए।” और अभी इस चुनाव के दौरान इनके अहंकार का स्तर देखिए। कहते हैं चावल के एक दाने से पूरे पतीली के चावल का अंदाजा लग जाता है कि पका है या कच्चा है। वैसे ही भूपेंद्र चौधरी की बात करेंगे तो आपको भाजपा के पूरे संगठन का अंदाजा लग जाएगा। अभी चुनाव के दौरान संभलपुर में बुद्धिजीवियों की एक बैठक हुई। उसमें उन्होंने इस बात को दोहराया कि “मैं तो 2028 तक विधान परिषद में हूं। मुझे तो कोई चिंता है नहीं। और मैं अपनी किस्मत से यहां तक पहुंचा हूं। 2028 के बाद दिल्ली वाले पालकी में बिठाकर मुझे ले जाएंगे।” अब जो कार्यकर्ता, समर्थक यह सुन रहा है उस पर क्या असर पड़ेगा, इसका अंदाजा आप सहज ही लगा सकते हैं।

इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं कि इस चुनाव में क्या हुआ? उसका अंदाजा इस बात से लगेगा कि भूपेंद्र चौधरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं, जाट समाज से हैं। जो संजीव बालियान 2019 में चौधरी अजीत सिंह को हराकर चुनाव जीते थे वो जयंत चौधरी का समर्थन होने के बावजूद मुजफ्फरनगर से अपना चुनाव हार गए। तो अध्यक्ष जी क्या कर रहे थे? उनका अपने समाज पर कितना प्रभाव है? कितने वोट दिला पाए? अध्यक्ष जी की स्थिति यह है कि वह अगर अपने गांव से ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ जाएं तो भी हार जाएंगे। लेकिन वह प्रदेश के अध्यक्ष हैं। प्रदेश के अध्यक्ष हैं तो उन्होंने पार्टी को मजबूत करने की बजाय, संगठन को मजबूत करने की बजाय, अपना गुट बनाया और उसको ताकतवर बनाने में लगे रहे। जब से अध्यक्ष बने और उनका यह काम निरंतर जारी है। एक तरह से पूरे प्रदेश में यह माना जाता है कि वह संगठन के पूर्व महामंत्री की कठपुतली हैं। उनके अनुसार चलते हैं। उन्होंने अपना एक गुट बनाया जिसमें उन्हीं लोगों को प्रवेश मिलेगा जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरोधी होंगे। अब आप इससे समझने की कोशिश कीजिए कि प्रदेश का अध्यक्ष अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री और उसकी सरकार के खिलाफ एक पैरेलल पावर सेंटर बनने की कोशिश कर रहा है। यह अलग बात है कि जनता के स्तर पर ऐसा नहीं हो पाया लेकिन समर्थकों, कार्यकर्ताओं में इसका क्या संदेश जाएगा? भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश पार्टी अध्यक्ष बनाना- और बनाए रखना- दोनों गलती है? क्या भारतीय जनता पार्टी इसमें सुधार करेगी। उनके अध्यक्ष रहते कार्यकर्ताओं की हर तरह से उपेक्षा हुई है चाहे वह टिकट बंटवारा हो, चाहे उनको काम देने का मामला हो और चाहे चुनाव प्रचार अभियान का मामला हो।

सवाल यह है कि बात बहुत होती हो रही है कि टिकट गलत बांटे गए, उम्मीदवार गलत खड़े किए गए। ये सब बातें सही है। लेकिन वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर उम्मीदवार कौन हो सकता था? उनके चुनाव क्षेत्र में अगर पन्ना प्रमुख काम नहीं कर रहा है- अगर चुनाव एजेंट कायदे से नियुक्त नहीं हो रहे हैं- अगर चुनाव की पर्चियां नहीं बंट रही हैं- अगर प्रधानमंत्री का विक्ट्री मार्जिन कम हो जाता है- तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है? कौन लोग वाराणसी चुनाव क्षेत्र के प्रभारी थे उनका नाम सामने आना चाहिए, उनकी जवाबदेही तय होनी चाहिए, उनको बताना चाहिए कि उन्होंने क्या किया… और भूपेंद्र चौधरी से यह पूछा जाना चाहिए कि जब से प्रदेश अध्यक्ष बने हैं उन्होंने पन्ना प्रमुखों की कितनी बैठक की हैं? क्या उनको मालूम है कि किस चुनाव क्षेत्र में कितने पन्ना प्रमुख हैं और वह दरअसल सिर्फ कागज पर हैं या जमीन पर काम भी कर रहे हैं।

चुनाव का नतीजा बताता है कि कोई पन्ना प्रमुख जमीन पर नहीं था। अगर आप लोगों के संपर्क में होते तो आपको तुरंत पता चल जाता कि दलित समुदाय में क्या चर्चा चल रही है? उनकी क्या सोच है? वह किस तरह से वोट देने के बारे में सोच रहे हैं? विपक्ष ने अभियान चलाया कि मोदी तीसरी बार आ गए तो संविधान बदल देंगे, आरक्षण खत्म कर देंगे। अगर पन्ना प्रमुख होता और सक्रिय होता तो उसको यह फीडबैक तुरंत मिल गया होता कि दलितों में नाराजगी है और इस मुद्दे को लेकर उनके ऊपर प्रभाव पड़ा है। फिर उसकी काट के लिए काउंटर कैंपेन चलाया जाना चाहिए था। ये दोनों काम नहीं हुए यह नतीजे बता रहे हैं। इसके लिए किसी के बयान, किसी की रिपोर्ट की जरूरत नहीं है। बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि विपक्ष का जो यह अभियान चला उसको चलने दिया गया। मैं यह नहीं कह रहा हूं किसी ने षड्यंत्र करके यह किया, लेकिन यह अक्षमता है। इससे पता चलता है कि जिन लोगों को संगठन की जिम्मेदारी मिली है या मिली थी- वे इस मामले में पूरी तरह से अक्षम थे।

यह जो चुनाव में पोलिंग परसेंटेज घटा, उस समय समझ में नहीं आ रहा था कि उसका क्या असर होगा? किसका वोटर निकला, किसका वोटर नहीं निकला। हम सब लोग मान रहे थे कि भाजपा के पास ऐसा सुगठित संगठन है जो अपने वोटर को वोट डालने के लिए निकाल सकता है लेकिन अब पता चल रहा है कि यह गलत साबित हुआ। भाजपा अपने संगठन की ताकत के आधार पर लोगों को निकाल नहीं पाई क्योंकि… पन्ना प्रमुख की पूरी व्यवस्था को खत्म कर दिया गया …क्योंकि निचले स्तर पर कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह नहीं रह गया था… क्योंकि जो भी समर्थक वर्ग था उसके मन में बाहर से आने वालों के कारण और खास तौर से बाहर से जो भ्रष्टाचार के आरोपी थे उनके आने के कारण एक तरह की निराशा थी। इन सब मुद्दों पर अगर भारतीय जनता पार्टी कोर्स करेक्शन नहीं करती है तो उसके लिए आगे बढ़ना मुश्किल हो जाएगा।

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(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)