चद्रभूषण।
क्रिकेट कभी-कभी फुटबॉल या टेनिस से भी ज्यादा दिलचस्प हो जाता है। कल रात (मैच स्थल पर दिन) साउथ अफ्रीका की पारी में जब 16 ओवर बीतने पर 151 रन बन चुके थे और विश्वकप से उनकी दूरी सिर्फ 26 रन की बची थी, तब अपनी तरफ से खेल खतम मानकर मैं टीवी बंद करने जा रहा था। क्लासेन और मिलर को हमने आईपीएल में खेलते देखा है। दोनों बड़े स्ट्रोक प्लेयर हैं, ठंडे दिमाग से खेलते हैं, और भारतीय गेंदबाजों का कोई आतंक उनमें नहीं है। लेकिन उठते-उठते मन में हुआ कि ज्यादा से ज्यादा दस मिनट की बात और है। भरसक एक ही, या ज्यादा से ज्यादा दो ओवर में खेल खत्म हो जाएगा।

इस मुकाम पर पहुंचकर पासा पलट भी सकता है, आधी से ज्यादा टीम को 24 गेंदों में 26 रन बनाने से रोका जा सकता है, यह बात रोहित शर्मा के अलावा, मेरे ख्याल से, और किसी के भी दिमाग में नहीं रही होगी। पूरा वर्ल्ड कप भारतीय स्पिनरों की वाहवाही करते गुजरा लेकिन फाइनल में उनका भुर्ता बन गया। कुल नौ ओवर उन्हें फेंकने को मिले, जिसमें उन्होंने 12 की एवरेज से रन लुटाए और विकेट कुल जमा एक ही निकाल पाए। हार्दिक पंड्या भी अपने पहले ओवर में बुरा पिटा था, लेकिन एक रूटीन की तरह रोहित ने उसे 17वां ओवर दिया। ओवर की पहली ही गेंद पर क्लासेन ने ओवरकॉन्फिडेंट शॉट खेला और विकेट के पीछे पकड़े गए। यहां पहुंचकर लगा कि प्रोटीज जीत तो जाएंगे लेकिन उनका मोमेंटम बिगड़ गया है।

अगले ओवर में चौंकाने की बारी रोहित शर्मा की थी। बुमराह भारत का, बल्कि दुनिया का सबसे घातक गेंदबाज है और एक रवायत की तरह 20वां या बहुत जरूरी होने पर 19वां ओवर करता है। लेकिन एक ही ओवर उसके पास बचा हुआ था और रोहित उसे 18वें ओवर के लिए ले आए। क्लासेन की जगह खेलने आए जानसेन कोई पुछल्ले बल्लेबाज नहीं हैं। उनका काम भी यहां सिर्फ अपना विकेट बचाने का था। बाकी काम के लिए मिलर थे ही। जानसेन ने बुमराह को गलत नहीं खेला। उन्होंने पैर सही निकाला, गेंद की लाइन भी ठीक पकड़ी, लेकिन बुमराह की पिचिंग इतनी लाजवाब थी कि बैट और पैड के बीच की जरा सी जगह से निकलकर गेंद ने उनका लेग स्टंप उड़ा दिया।

काश क्रिकेटरों के बेज़ुबान आंसुओं से कुछ सीखते नेतागण

उन्नीसवें ओवर में दक्षिण अफ्रीकी टीम पूरी तरह दबाव में आ गई थी। अर्शदीप को मारने के लिए जिस कौशल की अपेक्षा मिलर से की जा सकती थी, वह वे नहीं दिखा पाए। नतीजा यह हुआ कि आखिरी ओवर में 16 रन बनाने को रह गए। लेकिन यह ओवर पंड्या को डालना था, जो भारत के तेज गेंदबाजों में सबसे जल्दी दबाव में आते हैं। मिलर को यह बात पता थी और उनकी पहली गेंद को उन्होंने बिल्कुल सही जगह छक्के के लिए उड़ाने का प्रयास किया। इस गेंद पर उनका आउट होना न उनकी किसी गलती का नतीजा था, न ही इसमें संयोग या दुर्भाग्य का कोई पहलू शामिल था। यह सूर्यकुमार यादव के असाधारण फील्डिंग कौशल से संभव हुआ, जिसके लिए एक विश्वकप उन्हें अलग से दिया जाना चाहिए। वे दूर से दौड़ते हुए आए, गेंद लपकी, खुद को बाउंड्री से बाहर जाता देख गेंद उछाल दी और बाहर से भीतर कूदकर दोबारा उसे पकड़ा।

क्या साउथ अफ्रीका यह मैच अपनी कथित ‘चोकर’ प्रवृत्ति से हारा? नहीं। जानसेन को आउट करने वाली बुमराह की वह गेंद और मिलर को बाहर का रास्ता दिखाने वाला सूर्या का वह कैच विश्व क्रिकेट की धरोहर की तरह याद किए जाएंगे। दक्षिण अफ्रीकी यह फाइनल अपनी किसी ग्रंथि से नहीं एक अच्छी टीम के बहुत अच्छे खेल से हारे हैं, वह भी दो गेंद बची रहने तक जीत का प्रयास करते हुए। उन्हें इस हार का दुख नहीं मानना चाहिए। इससे पहले भारत की बैटिंग में भी विराट कोहली और अक्षर पटेल ने दुनिया के सबसे चुस्त गेंदबाजी आक्रमण का दर्शनीय मुकाबला किया। क्रिकेट का खेल बैटिंग, बोलिंग और फील्डिंग के अलावा क्रिकेटिंग ब्रेन भी मांगता है, जिसके बनने में वक्त लगता है। कोहली ने इसे ‘प्लेइंग द सिचुएशन’ कहा। फॉर्मेट कोई भी हो, इसकी मांग हमेशा रहेगी, लेकिन भारत को इसके लिए राहुल द्रविड़ बार-बार नहीं मिलेगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)