शठे शाठ्यम समाचरेत।

#pradepsinghप्रदीप सिंह।
थोड़ा अतीत में चलते हैं। इतिहास देखते हैं। फिर उस कथा को वर्तमान से जोड़ने की कोशिश करते हैं। अतीत में जो घटना घटी, जो कुछ हुआ, उससे हमने क्या सबक लिया- या क्या सबक लेना चाहिए।

यह कहानी शुरू होती है 711 ईसवी में। मुल्तान विजय के बाद मोहम्मद बिन तुगलक पहला आक्रमणकारी अरब शासक था जो बार-बार कन्नौज पर आक्रमण करता था। कन्नौज के प्रतापी राजा नागभट्ट की सेना उसको बार-बार खदेड़ देती थी, भगा देती थी। मुल्तान पर आक्रमण के बाद मोहम्मद बिन तुगलक की सेना तक्षक के गांव भी पहुंची और मुल्तान में भी और वहां भी भारी मार काट मचाई। स्त्रियों की इज्जत लूटी। युवकों का या तो कत्लेआम कर दिया या गुलाम बना लिया। हजारों की संख्या में युवतियों ने अपनी इज्जत बचाने के लिए तालाब में कूदकर जान दे दी। जब उसके गांव पहुंची सेना और वहां मारकाट शुरू हुई, हाहाकार हुआ, तो तक्षक की मां समझ गई कि अब क्या होने वाला है। उनकी दो बेटियां थीं। उन्होंने तलवार निकाली और दोनों बेटियों का सर काट दिया। फिर तक्षक की तरफ देखा और उसके बाद तलवार उठाई और अपने सीने में घोंप दी। तक्षक आठ साल का था। आठ साल की उम्र में ही उसको उस घटना ने बहुत बड़ा बना दिया। वह भाग गया जंगल में। और 25 साल बाद कन्नौज के राजा नागभट्ट-दो का मुख्य अंग रक्षक बनकर लौटा। उसकी बहादुरी के किस्से उनकी सेना में सुनाए जाते थे।

अरब सेना बार-बार इस तरह से आक्रमण करती थी और उनको खदेड़ दिया जाता था। यह सिलसिला 15 साल तक चला। फिर खबर आई कि कि अरब के खलीफा से मदद लेकर मोहम्मद बिन तुगलक की सेना, जो सिंध में थी, वो कन्नौज पर फिर से बड़ा आक्रमण करने वाली है। महाराज नागभट्ट ने रणनीति बनाने के लिए अपने सेनापतियों की बैठक बुलाई कि किस तरह से इससे निपटा जाए, किस तरह से जवाब दिया जाएगा। तक्षक ने कहा कि महाराज इस बार दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब देने की जरूरत है क्योंकि हर बार जब मोहम्मद बिन तुगलक की सेना आक्रमण करती थी तो उनको खदेड़ने के बाद कन्नौज की सेना उनके पीछे नहीं जाती थी।  वह सनातन नियमों से युद्ध करती थी। जब तक्षक ने यह बात कही तो महाराज ने कहा कि जरा खुलकर बताओ, तुम कहना क्या चाहते हो। तक्षक ने कहा कि अरब सेना बर्बर है और उसकी बर्बरता को आपने मुल्तान में और दूसरी जगहों पर देखा है। अगर सनातन नियमों के अनुसार उससे युद्ध करेंगे तो यह हमारे लिए अपनी प्रजा के साथ घात करने जैसा होगा।

महाराज का जवाब था कि हम धर्म और मर्यादा नहीं छोड़ सकते। तक्षक ने कहा मर्यादा का पालन उनके साथ किया जाता है जिन्हें मर्यादा का अर्थ पता हो। अरब सेना बर्बर है, धर्मांध है। वह राक्षस है। हत्या बलात्कार ही उनका धर्म है। महाराज ने कहा कि हम उनके जैसे नहीं हो सकते। तब तक्षक ने जवाब दिया- महाराज राजा का एक ही धर्म होता है अपने प्रजा की रक्षा करना। राजा नागभट्ट ने फिर कहा कि यह हमारा धर्म नहीं हो सकता। तक्षक ने कहा देवल और मुल्तान युद्ध को याद करें, वहां जीत के बाद मोहम्मद बिन तुगलक की सेना ने क्या किया, किस तरह की बर्बरता की। महाराज ने अपने दूसरे सेनापतियों की ओर देखा। सब तक्षक की बात से मौन सहमति जता रहे थे। फिर उसके बाद वह जो उनका कोर ग्रुप रहा होगा, उन प्रमुख सेनापतियों को लेकर मंत्रणा कक्ष में चले गए। और यह खबर आ गई कि अगले दो-तीन दिन में आक्रमण होने वाला है।

जिस रात यह बैठक हो रही थी उस रात दोनों सेनाएं कन्नौज की सीमा पर पड़ाव डाल चुकी थीं। जो आसपास के इलाके थे सब जगह मालूम था कि कल सुबह बड़ा भीषण युद्ध होने वाला है। महाराज नागभट्ट तक्षक की बात से सहमत हो चुके थे। आधी रात को कन्नौज की एक चौथाई सेना तक्षक के नेतृत्व में अरबों के शिविर पर टूट पड़ी। सब सो रहे थे, आराम कर रहे थे। मोहम्मद बिन तुगलक को यह उम्मीद नहीं थी कि कोई हिंदू राजा मर्यादा का उल्लंघन करके, सनातन नियमों को छोड़कर इस तरह से हमला करेगा। सुबह होते होते दो तिहाई अरब सेना मारी जा चुकी थी। जो बाकी सेना बची उसने पीछे भागना शुरू किया। पीछे भागे तो वहां महाराज नाग भट्ट अपनी बाकी सेना को लेकर खड़े थे। उन्होंने तुगलक की सेना का सफाया कर दिया।

इस घटना के बाद तीन शताब्दियों यानी 300 साल तक अरबों ने कन्नौज की तरफ या भारत की तरफ आंख उठाकर देखने की भी हिम्मत नहीं की। उधर जब युद्ध खत्म हुआ तो महाराज ने अपने सारे सेनापतियों को देखा। उनमें तक्षक नहीं थे। उन्होंने कहा तक्षक कहां है। खोजा गया तो अरब सैनिकों की लाशों के बीच में तक्षक का पार्थिव शरीर दिखाई दिया। उनको लाया गया। महाराज नागभट्ट ने उनके चरणों में अपनी तलवार रख दी और प्रणाम किया। उन्होंने गरजते हुए स्वर में तक्षक के लिए कहा- तुम आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक। यह देश सदियों सदियों तक तुम्हारे योगदान को याद करेगा और युगों युगों तक तुम्हारा आभारी रहेगा। महाराज ने कहा कि तक्षक हम अभी तक यह जानते थे कि अपने देश की रक्षा के लिए, अपनी प्रजा की सुरक्षा के लिए जान कैसे दी जाती है। तुमने सिखाया कि देश और प्रजा की रक्षा के लिए जान कैसे ली जाती है।

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तो तक्षक का संदेश क्या था कि दुष्ट को दुष्ट की ही भाषा में समझाया जा सकता है। तक्षक ने उस समय भी कहा था कि दुष्ट को जब तक आप उसी की भाषा में जवाब नहीं देंगे तब तक वह आपको कमजोर समझता रहेगा। इस कथा को पढ़ने के बाद मुझे याद आया महाभारत का प्रसंग- विदुर नीति। विदुर ने कहा था शठे शाठ्यम समाचरेत। यानी दुष्ट को उसी की भाषा में जवाब देना चाहिए।

अब आते हैं इस कहानी के संदर्भ पर। संदर्भ है आज जिस तरह से चौतरफा हमला हो रहा है हिंदुत्व पर, सनातन धर्म पर। राहुल गांधी ने कहा है कि अयोध्या हराकर हमने हिंदुत्व की राजनीति को हरा दिया है। टीएमसी के एक नेता जो मंत्री हैं और ममता बनर्जी के बहुत करीबी हैं फरहाद हकीम उनका बयान आया है कि- जो गैर मुस्लिम हैं वे कितने दुर्भाग्यशाली हैं, उनको ईमान लाना चाहिए तभी उन्हें अल्लाह का आशीर्वाद मिलेगा। यह सीधे-सीधे धर्म परिवर्तन की अपील है। पश्चिम बंगाल में जिस तरह से एक हिंदू महिला को और फिर पुरुष को सरेआम पीट पीट कर मार दिया गया। हिंदू महिला को निर्वस्त्र कर घुमाया गया। उसके बाद तृणमूल कांग्रेस के ही एक विधायक ने कहा कि- इस्लामी राष्ट्र में यह सजा आम तौर पर होती है। मेरा सवाल था कि क्या पश्चिम बंगाल इस्लामी राष्ट्र बन चुका है। ये संकेत बड़े खतरनाक हैं। आप इनको अनदेखा या इग्नोर नहीं कर सकते। इग्नोर करेंगे तो उसकी कीमत चुकाने के लिए तैयार रहिए।

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आज यह जो इको सिस्टम बन रहा है वह काफी सालों से बन रहा है। इसका नेतृत्व कुछ नेता, कुछ इंटेलेक्चुअल्स, कुछ एनजीओ और कुछ अंतरराष्ट्रीय ताकतें कर रही हैं। आप ही की तरह मुझे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से, उनकी सरकार से बहुत सारी शिकायतें हैं। यह करना चाहिए था- नहीं किया। यह होना चाहिए था- नहीं हुआ। यह नहीं करना चाहिए था- हुआ। ये सब शिकायतें सही हो सकती हैं- सही हैं भी ज्यादातर। लेकिन हम आप आज इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते कि अगर 4 जून को नरेंद्र मोदी की सरकार चली गई होती तो उसके बाद इस देश में सनातनियों के साथ क्या होता? और जिन लोगों का खून खौलता है कभी इस जाति के लोगों के साथ अन्याय के कारण, कभी उस जाति के कारण… मेरा सवाल है कि उनमें से किसी का खून क्यों नहीं खौलता जब सनातन धर्म को बीमारी कहा जाता है। जब उसके समूल नाश की बात की जाती है।

हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि हम जातीय अस्मिता के लिए तो लड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं लेकिन अपने धर्म की रक्षा के लिए हम हिलते भी नहीं। आधी बात हमको गांधी ने सिखाई, वही हम याद करते हैं- ‘अहिंसा परमो धर्मः। उसकी अगली लाइन है- धर्म हिंसा तथैव च:। यानी अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है लेकिन धर्म की रक्षा के लिए की गई हिंसा उससे भी बड़ा धर्म है, उससे भी अच्छी बात। यह दूसरा पक्ष नहीं बताया जाता। तो हिंसा करने के लिए नहीं कह रहा हूं लेकिन यह जो अहिंसा की बात सिखाई गई, यह दरअसल हिंदू समाज को कायर बनाने के लिए। हिंदू समाज कायर नहीं रहा लेकिन उसको कायर बनाने की लंबे समय से लगातार कोशिशें चल रही हैं।

तो आज का संदर्भ यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सनातन धर्म के नियमों और मर्यादा का पालन करते हुए दस साल सरकार चलाई और उसका नतीजा देख लिया, बल्कि मैं कहूंगा उसका नतीजा भुगत लिया। कुछ हासिल नहीं हुआ। जो था वह भी चला गया। अब समय आ गया है दुष्ट को उसी की भाषा में जवाब देने का। प्रधानमंत्री ने लोकसभा में कहा कि यह जो कांग्रेस का इको सिस्टम है इसको इसी की भाषा में जवाब देने का समय आ गया है। मेरा कहना है आपने यह जो बात कही उसको आचरण में उतारने का समय आ गया है। अब इन वक्तव्यों, भाषणों से काम नहीं चलने वाला। यह दिखाई देना चाहिए कि आप इस पर अमल कर रहे हैं। और इसके अनुसार आपकी नीतियां बन रही हैं, कार्यक्रम बन रहे हैं। इसको आपने अपना लक्ष्य बना लिया है। यह सरकार अगर यह काम नहीं कर पाई तो कोई सरकार नहीं कर पाएगी और हमको आपको हो सकता है दशकों, शताब्दियों तक अफसोस करना पड़े। यह अवसर है बदलाव का। अगर इस समय चूक गए तो फिर यह अवसर जल्दी आने वाला नहीं है। जो लोग वोट देने नहीं गए या जिन्होंने खिलाफ वोट दिया उन सबको मैं फिर चेता रहा हूं कि यह जो आप जातीय अस्मिता पर इतने गर्व का प्रदर्शन कर रहे हैं, अगर धर्म नहीं बचेगा तो यह जातीय अस्मिता कहां से बचेगी। आप ईसाई या मुसलमान बन जाएंगे तो कौन सी जातीय अस्मिता बचेगी जिस पर गर्व करेंगे। यह सब गर्व दिखाने का समय तभी तक है जब तक आप सनातनी हैं, जब तक आप हिंदू हैं।

जिस देश की आबादी में 78 फीसद हिंदू हों वहां हिंदू धर्म पर खतरा मंडरा रहा हो, हिंदू धर्म खतरे में हो। जरा सोचिए कि हमारी स्थिति क्या है। हम कैसे लोग हैं जो संख्या बल में इतनी बड़ी तादाद में होने के बावजूद रक्षात्मक मुद्रा में, शिकायती मुद्रा में हैं। शिकायत करते हैं कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है। न्याय मिलता नहीं न्याय हासिल करना पड़ता है, उसके लिए संघर्ष करना पड़ता है और उस संघर्ष से पहले उसकी तैयारी करनी पड़ती है, उसके लिए जागना पड़ता है। 4 जून के बाद भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनकी नींद नहीं टूटी है, जिनको कोई फर्क नहीं नजर आता कि किस तरह का जनादेश आया है और यह जनादेश अगर उल्टा आ गया होता तो क्या होता। जो इसके बारे में सोचने को तैयार नहीं है उनकी पीढ़ियां इसकी कीमत चुकाएंगी। तक्षक और विदुर की बात याद रखिए- दुष्ट को दुष्ट की ही भाषा में जवाब नहीं देंगे तो वह आपको कमजोर समझता रहेगा। यह हमको आपको तय करना है कि दुष्टों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना है- या कमजोर समझे जाने के लिए हम अभिशप्त हैं। फैसला आपका है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)