#pradepsinghप्रदीप सिंह।
उत्तर प्रदेश में भाजपा में इस समय बड़ी गहमागहमी है। लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन को लेकर जिस तरह से कोशिश हो रही थी, एक्सरसाइज हो रही थी उसे देखकर पहले मुझे लग रहा था कि सब लीपापोती है। इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा। लेकिन आज आपसे कह रहा हूं कि मैं गलत था।दरअसल काम बड़ी गंभीरता से हो रहा है… और गंभीरता से जो काम हो रहा है वह इस बात का पता लगाने के लिए नहीं कि इस खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार कौन है। गंभीरता दो बातों के लिए है। एक- हार के लिए जो सचमुच जिम्मेदार हैं उनको कैसे बचाया जाए। उनको बचाने का एक ही तरीका है कि आप एक ऐसा कंधा खोजिए जिस पर इस खराब प्रदर्शन का सारा बोझ डाला जा सके। समस्या यह हो रही है कि वह कंधा मिल नहीं रहा। इसलिए आपको दिख रहा है कि अलग-अलग आवाजें आ रही हैं। अलग-अलग लोग अलग-अलग तरह के बयान दे रहे हैं कि प्रशासन के कामकाज से कार्यकर्ता नाखुश था- लोग नाखुश थे- और उनको बड़ी शिकायत थी।

ये जो उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार को लेकर जो सवाल उठाए जा रहे हैं, दरअसल अपनी जिम्मेदारी से भागने की कोशिश करने वाले लोग सवाल उठा रहे हैं। उनके पास और कोई रास्ता नहीं है। वे कैसे कहें कि हम अकर्मण्य हैं, अक्षम हैं, आलसी हैं। वो कैसे कहें कि हमने काम नहीं किया, हम जनता के बीच नहीं गए, हमने संगठन पर ध्यान नहीं दिया। वे कैसे कहें कि उम्मीदवारों का चयन गलत हुआ, वोट शिफ्ट हो रहा है इसका हमको पता ही नहीं चला। जो बयान दे रहे हैं कि संगठन सरकार से बड़ा होता है उनको संगठन में जाने से रोक कौन रहा है। भाजपा का तो यह हमेशा से मानना रहा है कि संगठन सरकार से बड़ा होता है इसलिए संगठन की बैठक में- खासतौर से राष्ट्रीय कार्य समिति और परिषद की बैठक में- सबसे आगे पार्टी के पदाधिकारी बैठते हैं, सरकार के लोग नहीं बैठते। यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन बात यह है कि किस समय कही जा रही है- किसके द्वारा कही जा रही है। एक ऐसे नेता के द्वारा कही जा रही है जो पांच साल उप मुख्यमंत्री रहने के बाद भी अपना विधानसभा क्षेत्र नहीं संभाल सकता। विधानसभा चुनाव हार जाता है और उसको सरकार में- संगठन से कमतर है- फिर से आने में कोई संकोच नहीं होता, कोई शर्म नहीं आती। फिर से डिप्टी चीफ मिनिस्टर बन जाता है। वह व्यक्ति लोकसभा चुनाव के बाद बयान देता है कि संगठन सरकार से बड़ा होता है। तो फिर मैं कह रहा हूं कि भाई आपको संगठन में जाने से कौन रोक रहा है- यह आप किसको बता रहे हैं। यह आप खुद बोल रहे हैं या कोई लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ रहे हैं।

मेरा मानना है कि योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश भाजपा के नीलकंठ हैं। विष पीते जा रहे हैं। जिस दिन मुख्यमंत्री बने उस दिन से यह षड्यंत्र शुरू हो गया। पहले दिन शपथ ग्रहण समारोह के बाद ही केशव प्रसाद मौर्या भाग कर गए और मुख्यमंत्री कक्ष के बाहर अपनी नेम प्लेट लगा दी, जबकि शपथ मंत्री की ली थी, उप मुख्यमंत्री बने थे। भाजपा जैसी अनुशासित पार्टी में उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनसे कोई एक्सप्लेनेशन भी नहीं मांगा गया कि आपने ऐसा किया कैसे? मुख्यमंत्री को अपमानित करने की यह जो छूट कैसे दी गई। यहां मैं बात व्यक्ति योगी आदित्यनाथ की नहीं, मुख्यमंत्री पद की कर रहा हूं जो एक संवैधानिक पद है। पार्टी की ओर से कोई नहीं बोला कि केशव प्रसाद मौर्या ने गलत किया, उनको माफी मांगनी चाहिए या उनको स्पष्टीकरण देना चाहिए।

वह सिलसिला आज तक जारी है। फिर यह अभियान चलाया गया कि यह जनादेश तो योगी आदित्यनाथ का नहीं है। वह तो संगठन के आदमी है नहीं। उन्होंने संगठन चलाया नहीं। उन्होंने कभी शासन चलाया नहीं। उनको कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं है। लेकिन उन्होंने सात साल में बता दिया कि वह क्या कर सकते हैं। आज लोकसभा नहीं विधानसभा चुनाव की बात कर रहा हूं। 1952, जब से चुनाव हो रहा है उत्तर प्रदेश विधानसभा में लम्बे समय तक कांग्रेस का राज रहा है।  1947 से 1977 तक तो लगातार राज रहा- बीच में एक डेढ़ साल संविद सरकारों का भी रहा- कोई भी मुख्यमंत्री चाहे वह कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, जनता दल, बहुजन समाज पार्टी का हो- अपने निर्वाचित कार्यकाल के पांच साल पूरा करने के बाद दोबारा लौट कर नहीं आया। सिर्फ और सिर्फ योगी आदित्यनाथ लौट कर आए। क्यों लौट कर आए? क्या इसका मतलब यही माना जाएगा कि उनको प्रशासनिक अनुभव नहीं था इसलिए आ गए, उनको संगठन की समझ नहीं थी इसलिए लोग उनको वापस लाए। भाजपा को तय करना पड़ेगा कि किस तरह का मुख्यमंत्री चाहिए, किस तरह का नेता चाहिए। क्या ऐसा चाहिए जो लोगों के बीच लोकप्रिय हो, जिसकी सरकार का उदाहरण पूरे देश में दिया जाता हो, जिसके प्रशासन के कौशल को देखकर देश के हर राज्य से मांग उठे कि हमें भी योगी जैसा मुख्यमंत्री चाहिए। या फिर सत्ता और पद के लिए लालायित और अक्षम लोग चाहिए। यह फैसला पार्टी के हाई कमांड को करना पड़ेगा। जब तक यह फैसला ऊपर से नहीं होगा तब तक यह सिलसिला चलता रहेगा। जैसे बस में अगर कोई चोरी हो जाती है, चोर कुछ लेकर भागता है तो बहुत से लोग चोर चोर चिल्लाते हैं। चोर का एक गैंग भी बस में चलता है। साथ में वह भी चोर चोर चिल्लाता है। दरअसल वह चोर को बचाने के लिए चिल्लाता है। उसी तरह की स्थिति उत्तर प्रदेश भाजपा में आ गई है। कुछ जो खराब प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार हैं वो और जोर जोर बोल रहे हैं कि फला जिम्मेदार है। मतलब, हमारे अलावा सब जिम्मेदार हैं। उनका मकसद है असली जिम्मेदार को बचाना।

अब यह पार्टी को तय करना है कि दरअसल वह सचमुच जानना चाहती है कि इस खराब प्रदर्शन का असली कारण क्या है या वह एक निशाना ढूंढ रही है। भाजपा में एक वर्ग शुरू से योगी आदित्यनाथ को पसंद नहीं करता था। उसको लगता था कि सरकार में आने का मतलब ईमानदारी नहीं होता। सरकार ईमानदारी से चले यह बिल्कुल गलत तरीका है। अगर हम मंत्री बने हैं और पैसा नहीं कमा पा रहे हैं तो हमारा मंत्री बनना बेकार है। तो हम कहेंगे कि सरकार से बड़ा संगठन… ऐसे डिप्टी चीफ मिनिस्टर बने हैं। दूसरे साहब हैं बृजेश पाठक। उनकी खासियत क्या है? एक समय माफिया डॉन हरिशंकर तिवारी की बंदूक उठाया करते थे- यह उनकी योग्यता है। दसियों साल से भाजपा में तमाम ब्राह्मण नेता दरी बिछाने, कुर्सी लगाने का काम करते रहे हैं, जिन्होंने खून पसीना बहाया पार्टी की विचारधारा के लिए, जो पार्टी के बुरे से बुरे दिनों में साथ खड़े रहे पार्टी के लिए संघर्ष किया, पार्टी को उनकी सुध नहीं आई। दूसरी पार्टी से आए हुए एक ऐसे नेता को डिप्टी चीफ मिनिस्टर बना दिया जो उत्तर प्रदेश भाजपा में ब्राह्मणों का सबसे बड़ा नेता होने का दावा करने लगे हों। इससे आप अंदाजा लगाइए कि जो ब्राह्मण समाज के लोग भाजपा में इतने दशकों से काम कर रहे हैं उन पर क्या बीत रही होगी। उनको इसका क्या संदेश मिला। उन्होंने कहां गलती की, उनकी तपस्या में कहां कमी रह गई यह पार्टी हाई कमांड को बताना चाहिए।

इस तरह ऐसे दो डिप्टी चीफ मिनिस्टर हैं जो अपने इलाके को नहीं संभाल पाते। मुझे कोई बता दे कि कोरोना के दौरान मंत्रिमंडल के सदस्यों में से कोई घर से बाहर निकला था। लेकिन सरकार काम नहीं कर रही वे यह चिट्ठी लिखेंगे, उसको सार्वजनिक करेंगे, सरकार पर आरोप लगाएंगे। जिस सरकार में खुद हैं उसी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं। इससे समझिए कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की स्थिति क्या है। माना योगी आदित्यनाथ को प्रशासन का अनुभव नहीं है, लेकिन बृजेश पाठक और केशव मौर्य को तो जैसे जन्मजात अनुभव है, वे तो पैदा ही मंत्री के रूप में हुए और उनको संगठन का भी बहुत बड़ा अनुभव है। संगठन लोगों को जुटाने से नहीं बनता। संगठन ऐसे लोगों से बनता है जिनमें संकट के समय हिम्मत के साथ खड़े होने का साहस हो। योगी आदित्यनाथ यह काम करके उस समय दिखा चुके हैं जब वह न तो पार्टी में किसी पद पर थे, न सरकार में किसी पद पर थे, सिर्फ सांसद थे। जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे प्रदेश के और मऊ में माफिया डॉन मुख्तार अंसारी खुली जीप पर माइक लगाकर लाउडस्पीकर लगाकर दंगे करवा रहा था तब योगी जी ने गोरखपुर से घोषणा की तमाम हिंदुओं के उनके पास फोन आ रहे थे कि हमारी जान संकट में है। उन्होंने बयान दिया बाकायदा कि मैं अकेले ही जा रहा हूं भाजपा के लोगों को साथ आना हो तो आएं, ना आना हो तो ना आएं। वह मऊ जाने के लिए गोरखपुर से निकले तो रास्ते में उनके साथ पूरा कारवां बनता गया। मोटरसाइकिल, कार पूरा 100 गाड़ियों का कारवां बन गया। उत्तर प्रदेश के उस समय मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को मुख्तार अंसारी को भी रोकना पड़ा और जिले के डीएम और एसएसपी से भी कहना पड़ा कि योगी जी के खिलाफ कोई कारवाई मत करना। यह होता है साहस। यह होता है संगठन का कौशल। संगठन की परीक्षा या नेतृत्व की परीक्षा संकट के समय होती है। जब सब कुछ अच्छा अच्छा चल रहा हो तब कोई परीक्षा नहीं होती, तब आपकी कितनी क्षमता है इसका पता नहीं चलता।

दूसरी घटना। दुनिया की सबसे बड़ी महामारी कोरोना के समय योगी जी गांव-गांव गए। खुद कोरोना से संक्रमित हो गए। जितने दिन घर में रहना अनिवार्य था उतने दिन रहे। दस बारह दिन के बाद फिर निकल पड़े। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको टोका कि आप जान जोखिम में डाल रहे हैं। देश का कोई मुख्यमंत्री घर से नहीं निकला, प्रदेश का कोई मंत्री घर से नहीं निकला। वहीं योगी जी ने अधिकारियों से कहा कि मुझे उस गांव में ले चलो जहां सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं और उस गांव में भी उस घर में ले चलो जहां सबसे ज्यादा मौत हुई है। अधिकारी बहुत डरे हुए थे। उन्होंने समझाने की कोशिश की कुछ भी हो सकता है। नाराजगी है। घर में मौत हुई है लोगों का मूड अच्छा नहीं है। योगी जी ने कहा उसकी चिंता तुम मत करो। वह गए और लोगों ने उनका स्वागत किया। जो भी तकलीफ थी बताई, लेकिन यह नहीं कहा कि इसके लिए आप जिम्मेदार हैं। आपने हमारा यह हाल कर दिया। उनके विरोधी जो भाषा उस समय बोल रहे थे वही सरकार में बैठे उनके साथी भी बोल रहे थे। आप इससे अंदाजा लगाइए कि किस तरह के माहौल में योगी आदित्यनाथ काम कर रहे हैं। उन्होंने सात साल में जो हासिल किया है वह अपने सहयोगियों की वजह से नहीं अपने सहयोगियों के बावजूद हासिल किया है।

बड़ी खबरें चल रही हैं बल्कि चलवाई जा रही हैं कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा। फला मुख्यमंत्री बन जाएंगे ढिकां मुख्यमंत्री बन जाएंगे। 2020 में भी यह अभियान चला था। मीडिया के एक वर्ग ने तो ए.के. शर्मा को लगभग शपथ ही दिला दी थी लेकिन उनको मालूम नहीं है कि योगी आदित्यनाथ क्या हैं। योगी आदित्यनाथ बिजली का नंगा तार हैं जो छुएगा भस्म हो जाएगा। यह बात इन शब्दों में नहीं लेकिन दूसरे शब्दों में उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश से बाहर की जनता कह रही है, मतदाता कह रहा है कि योगी जी को हाथ मत लगाना। यह भाजपा के लिए संदेश है। अगर वह समझ जाए तो बड़ी अच्छी बात है। जो लोग ये ख़बरें चला रहे हैं योगी जी हार के लिए जिम्मेदार हैं, उनको जिम्मेदार ठहरा कर हटा दिया जाएगा… मुझे ऐसी कोई बात नजर नहीं आ रही है। योगी जी को हटाने से क्या है कि अभी तो पर्दा है- आपने योगी जी को खड़ा कर दिया और उन पर वार हो रहा है- जिस दिन योगी जी को हटाएंगे वो पर्दा हट जाएगा। फिर असली लोगों को सामने आना पड़ेगा। जो लोग भी जिम्मेदार हैं प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के- उनको अगर बचना है, उनको अगर बचाना है तो योगी जी को रखना उनकी मजबूरी है- इच्छा हो या ना हो। योगी जी ने ऐसा कोई काम नहीं किया है- ना वह कभी कर सकते हैं- जिससे उनको पछतावा हो, अफसोस हो। उन्होंने ईमानदारी से और अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर पूरे देश में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि शासन कैसा होना चाहिए, शासन कैसे चलना चाहिए।

कोई भी चीज परफेक्ट नहीं होती। मैं यह कहने की कोशिश नहीं कर रहा कि उत्तर प्रदेश शासन में कोई कमी या कमजोरी नहीं है। हमारे देश में तो भगवान मनुष्य का अवतार लेते हैं तो लोग उनमें भी खामी निकाल लेते हैं। योगी जी तो सामान्य इंसान हैं। उनमें भी कमी हो सकती है। लेकिन आप अगर उनकी नीयत पर शक करेंगे तो इससे बड़ा पाप और कोई नहीं करेंगे। यह बात खासतौर से भाजपा के उन पदाधिकारियों के लिए कह रहा हूं जिनकी लार टपक रही है। उनको समझ लेना चाहिए उत्तर प्रदेश में यह सत्ता तब तक है जब तक योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं। उनको सिर्फ और सिर्फ जनता हटा सकती है। पार्टी ने हटाने की कोशिश की तो याद कीजिए कल्याण सिंह को 1999 में हटाया था तो 18 साल बाद चुनाव जीतकर आप आए सत्ता में। अगर योगी जी को हटा दिया तो 36 साल बाद भी आने की कोई गारंटी नहीं है। फैसला पार्टी को करना है। वह तय कर ले उत्तर प्रदेश में सत्ता में लौटकर नहीं आना है, अगले पैंतीस चालीस सालों तक सरकार नहीं बनानी है तो योगी जी को हटा सकती है। लेकिन पार्टी अगर मतदाता का रुख जान लेगी या जानने की जरा भी कोशिश करेगी, तो इस बारे में सोचेगी भी नहीं।

मेरा मानना है योगी जी को कोई हाथ नहीं लगाने वाला। उनको मुख्यमंत्री पद से मतदाता हटा सकता है या वे स्वयं हट सकते हैं। वह सत्ता के पीछे, पद के पीछे भागने वाले पॉलिटिशियन की तरह नहीं हैं। अगर योगी जी को ज्यादा धकेला तो बीजेपी के लिए बहुत बड़ा खतरा है। उनके विषपान करने की एक सीमा है। जिस दिन वह सीमा लांघ गई वह भाजपा के लिए बहुत बुरा दिन होगा। उन्होंने अगर स्वेच्छा से भी हटने का फैसला किया तो भी नतीजा वही होगा जो उनको हटाने का होगा। तो भारतीय जनता पार्टी को फैसला यह करना है कि वह योगी जी के साथ आगे बढ़ना चाहती है, या योगी जी के बिना अपने पुराने खराब दिनों में लौट जाना चाहती है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अख़बार’ के संपादक हैं)