#santoshtiwariडॉ. संतोष कुमार तिवारी

प्रश्न यह है कि शेख हसीना को भारत में रहने दिया जाय या नहीं? यहां यह देखें कि हमारे शास्त्र क्या कहते हैं इस बारे में

महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण में कहा गया है  

सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।

अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम॥

(वा०रा० ६ । १८ । ३३)

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण में भगवान् श्रीरामजी का यह वचन है-जो एक बार भी मेरी शरणमें आकर मैं तुम्हारा हूँ इस प्रकार कह कर मुझसे रक्षाकी प्रार्थना करता हैउसे मैं समस्त प्राणियों से अभय कर देता हूँ – यह मेरा व्रत है।

यहाँ प्रसंग यह है कि रावण का भाई श्रीविभीषणजी श्रीरामजीकी शरणमें आये हैं। श्रीविभीषणजी को सुग्रीव ने संदेह की दृष्टि से देखा था।

श्री रामचरितमानस के सुन्दर काण्ड में इसी प्रसंग के बारे में गोस्वामी तुलसीदास ने दूसरी तरह से लिखा है:

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।

ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ।। 43 ।।

भावार्थः- ( श्री राम जी फिर बोले – ) जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आए हुए का त्याग करते हैं वे पामर ( क्षुद्र ) हैं पापी हैंउनकी ओर  देखने मे भी हानि है (पाप लगता है) ।। 43 ।।

कोटि बिप्र बध लागहिं जाहू। आएँ सरन तजउँ नहिं ताहू।।

सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ।। 1 ।।

पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेहि भाव न काऊ।।

जौं पै दुष्टहदय सोइ होई। मोरें सनमुख आव कि सोई ।। 2 ।।

भावार्थः– जिसे करोड़ों ब्राह्मणों की हत्या लगी होशरण में आने पर मैं उसे भी नही त्यागता । जीव ज्यों ही मेरे सम्मुख होता हैत्यों ही उसके करोड़ों जन्मों  के पाप नष्ट हो जाते हैं ।। 1 ।।

पापी का यह सहज स्वभाव होता है कि मेरा भजन उसे कभी नहीं अच्छा लगता। यदि वह ( रावण का भाई ) निश्र्चय ही दुष्ट हृदय का होता तो क्या वह मेरे सामने  आ सकता था।। 2 ।।

इस प्रकार श्री रामचन्द्रजी विभीषण को अभय दान देते हैं।

अभय दान कौन दे सकता है?

अभय दान वही दे सकता , जो स्वयं निर्भय हो।

गोस्वामी तुलसीदासजी सुन्दर काण्ड में लिखते हैं

निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा  ।। 3 ।।

जग महुँ सखा निसाचर जेते। लछिमनु हनइ निमिष महुँ तेते।।

जौं सभीत आवा सरनाई। रखिहउँ ताहि प्रान की नाई ।।  4 ।।

भावार्थः- जो मनुष्य निर्मल मन का होता हैवही मुझे पाता है । मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते । यदि विभीषण को रावण ने भेद लेने के लिए भेजा होतब भी हे सुग्रीव। अपने को कुछ भी भय या हानि नही है ।। 3 ।।

क्योंकि हे मित्र! जगत में जितने भी राक्षस हैंलक्ष्मण क्षण भर में उन सबको मार सकते हैं और यदि विभीषण भयभीत होकर मेरी शरण आया है तो मैं तो उसे प्राणो की तरह रखूँगा ।। 4 ।।

अन्तिम निर्णय तो शेख हसीना को करना है

अन्तिम निर्णय शेख हसीना को ही करना है कि उन्हें भारत में रहना है या कहीं और जाना है?

(लेखक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं)