रिपोर्ट को कैबिनेट की मंजूरी, शीत सत्र में आएगा विधेयक।

आपका अख़बार ब्यूरो।
अपनी “एक देश, एक चुनाव” योजना पर आगे बढ़ते हुए सरकार ने देशव्यापी आम सहमति बनाने की कवायद के बाद चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार, 18 सितम्बर को केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई। बैठक में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों को मंजूरी दे दी। समिति ने 14 मार्च 2024 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। कमेटी ने सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक बढ़ाने का सुझाव दिया है। संसद के शीतकालीन सत्र में इस पर विधेयक पेश किया जा सकता है।

कोविंद समिति का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था। समिति ने 191 दिन तक राजनीतिक दलों तथा विभिन्न हितधारकों के साथ चर्चा के बाद 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी। आठ सदस्यीय समिति ने आम लोगों से भी राय आमंत्रित की थी। आम लोगों की तरफ से 21,558 सुझाव मिले। इसके अलावा 47 राजनीतिक दलों ने भी अपने राय और सुझाव दिए, जिनमें 32 ने इसका समर्थन किया था। कुल 80 प्रतिशत सुझाव ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के पक्ष में आए थे। समिति ने देश के प्रमुख उद्योग संगठनों और अर्थशास्त्रियों के भी सुझाव लिए थे। समिति ने रिपोर्ट बनाने से पहले 6 देशों के इलेक्शन प्रोसेस को समझा।

रिपोर्ट के अनुसार समिति ने उच्चतम न्यायालय के चार पूर्व प्रधान न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे और न्यायमूर्ति यूयू ललित- से परामर्श किया। उन्होंने लिखित जवाब दिए। वे सभी एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में थे।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति के परामर्श के दौरान तीन पूर्व हाईकोर्ट मुख्य न्यायाधीशों और एक पूर्व राज्य चुनाव आयुक्त ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर आपत्ति जताते हुए इसका विरोध किया है। जबकि उच्च न्यायालय के नौ पूर्व मुख्य न्यायाधीशों ने इसके संभावित लाभों को रेखांकित करते हुए इसका समर्थन किया।

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह ने एक साथ चुनाव के विचार का विरोध किया और कहा कि इससे लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति पर अंकुश लग सकता है। रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव राजनीतिक जवाबदेही में बाधक हैं, क्योंकि निश्चित कार्यकाल से जन प्रतिनिधियों को उनके काम की समीक्षा के बिना अनुचित स्थिरता मिलती है। कलकत्ता उच्च के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गिरीश चंद्र गुप्ता ने एक साथ चुनाव विचार का विरोध करते हुए कहा कि यह विचार लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीब बनर्जी ने एक साथ चुनाव विचार का विरोध करते हुए कहा कि यह देश के संघीय ढांचे को कमजोर करेगा और यह क्षेत्रीय मुद्दों के लिए हानिकारक होगा। तमिलनाडु के पूर्व निर्वाचन आयुक्त वी पलानीकुमार ने भी एक साथ चुनाव के विचार का विरोध किया।

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकार की गई समिति की रिपोर्ट के अनुसार ‘एक देश, एक चुनाव’’ पर उच्च स्तरीय समिति ने 62 राजनीतिक दलों से संपर्क किया था जिनमें से 47 ने जवाब दिया। इनमें से 32 ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया और 15 ने इसका विरोध किया।