दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी एक बार धरना-प्रदर्शन मोड में है। वजह है ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार, दिल्ली (संशोधन) विधेयक, 2021’, जो केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में 15 मार्च, सोमवार को पेश किया गया था। इस विधेयक में दिल्ली में उपराज्यपाल को अधिक शक्तियां देने का प्रस्ताव किया गया है।
दिल्ली में जब से अरविंद केजरीवाल की सरकार बनी है, तब से इस बात को लेकर अक्सर जंग छिड़ी रहती है कि दिल्ली का बॉस कौन है। लेफ्टिनेंट गवर्नर या मुख्यमंत्री। इस बात को लेकर मामला सर्वोच्च न्यायालय में भी पहुंचा था और 4 जुलाई, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय यह व्यवस्था दी थी कि उपराज्यपाल दिल्ली मंत्रिमंडल की सलाह से ही काम करेंगे। हां, अगर उनको कोई मामला अपवाद लगता है, तो उसे वह राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं। उस मामले में राष्ट्रपति जो निर्णय लेंगे, उसी पर उपराज्यपाल अमल करेंगे, स्वतंत्र रूप से स्वयं कोई फैसला नहीं लेंगे। साथ ही, किसी मामले को राष्ट्रपति के पास भेजने का अर्थ यह नहीं है कि वे हर मामले को राष्ट्रपति के पास भेज देंगे।
केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली की चुनी हुई सरकार को कमज़ोर करके जनता के काम रोकने की साज़िश के खिलाफ़ दिल्ली की जनता का आक्रोश | LIVE https://t.co/7pkl6YwW7i
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि कार्यकारी शक्तियां दिल्ली मंत्रिमंडल के पास हैं। प्रदेश का मंत्रिमंडल पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और भूमि मामलों को छोड़कर उन सभी विषयों पर कानून बना सकता है, जो राज्य और समवर्ती सूची में शामिल हैं। उपर्युक्त तीन विषयों को छोड़कर राज्य मंत्रिमंडल बाकी मामले में स्वतंत्र रूप से काम कर सकता है। राज्य सरकार अपने फैसलों से उपराज्यपाल को अवगत कराएगी, लेकिन उनमें उपराज्यपाल का सहमति आवश्यक नहीं है।
उपराज्यपाल की शक्तियों में वृद्धि
अब केंद्र सरकार ने जो बिल लोकसभा में पेश किया है, उसके संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाने के बाद दिल्ली में उपराज्यपाल की शक्तियों में वृद्धि होगी और वह दिल्ली सरकार के फैसलों को प्रभावित कर सकते हैं। केंद्र सरकार ने वर्तमान कानून के अनुच्छेद 44 में एक नया प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव किया है, जिसके अनुसार दिल्ली सरकार को किसी भी फैसले को लागू करने से पहले उपराज्यपाल की राय लेनी होगी। चाहे वह फैसले मंत्रिमंडल द्वारा ही क्यों न लिए गए हों। इसका अर्थ यह हुआ कि अब राज्य सरकार यह फैसला नहीं कर सकेगी कि प्रस्तावों को उपराज्यपाल के पास भेजना है या नहीं भेजना है। कौन-से विषयों को उपराज्याल के पास भेजना है, वह उपराज्याल तय करेंगे। इसके लिए वह एक सामान्य या विशेष आदेश जारी कर सकते हैं। इसके अलावा, विधानसभा या उसकी कोई समिति प्रशासनिक फैसलों की जांच नहीं कर सकती है। इस संशोधन विधेयक के अनुसार, विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के संदर्भ में दिल्ली में ‘सरकार’ का अर्थ ‘उपराज्यपाल’ होगा। इस संशोधन विधेयक से यह प्रतीत होता है कि दिल्ली के बॉस लेफ्टिनेंट गवर्नर यानी उपराज्यपाल ही हैं।
The Bill says-
1. For Delhi, “Govt” will mean LG
Then what will elected govt do?
2. All files will go to LG
This is against 4.7.18 Constitution Bench judgement which said that files will not be sent to LG, elected govt will take all decisions and send copy of decision to LG https://t.co/beY4SDOTYI
जाहिर है, इसे लेकर राजनीतिक विवाद खड़ा होना ही था। आम आदमी पार्टी का कहना है कि यह संशोधन विधेयक अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है। यह केंद्र द्वारा पिछले दरवाजे से दिल्ली पर शासन करने की कोशिश है। उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि इस विधेयक के पारित हो जाने के बाद दिल्ली में लोगों द्वारा चुनी गई सरकार का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। सरकार का मतलब सिर्फ लेफ्टिनेंट गवर्नर रह जाएगा। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया है- दिल्ली के लोगों द्वारा खारिज कर दिए जाने के बाद भाजपा विधेयक के जरिये चुनी हुई सरकार की शक्तियां कम करना चाहती है। विधेयक संविधान पीठ के फैसले के विरुद्ध है। हम भाजपा के इस असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक कदम की कड़ी आलोचना करते हैं।
लोकतंत्र की हत्या -कांग्रेस
कांग्रेस ने कहा है कि यह केन्द्र सरकार की निरंकुशता है और लोकतंत्र की हत्या है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया है- असंवैधानिक। संघीय ढांचे का उल्लंघन। चुनी हुई सरकार की घेरेबंदी। यह विधायकों को पिंजरे में कैद प्रतिनिधि बनाने वाला है। यह इस सरकार के सत्ता के अहंकार का एक और उदाहरण है। कांग्रेस ने इस बिल के विरोध में जंतर मंतर पर प्रदर्शन भी किया है और इसे वापस लेने की मांग की है।
NCT of Delhi ( Amendment Bill ) 2021
Unconstitutional
Violates Federal Structure
Hems in elected government
Makes MLA’s caged representatives
दूसरी तरफ भाजपा का कहना है कि इस बिल से राज्य सरकार और केन्द्र सरकार में समन्वय ठीक होगा। दिल्ली में विपक्ष के नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी ने कहा है कि यह एक सही दिशा में लिया गया कदम है। इससे दिल्ली में प्रशासन बेहतर होगा। राज्य सरकार और उपराज्यपाल की संवैधानिक भूमिकाएं स्पष्ट होंगी। नई दिल्ली लोकसभा सीट से भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा है कि विरोध का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि किसी भी सरकार को संविधान और कानूनों के अनुसार काम करना है। दिल्ली की जनता ने आप को चुनकर भेजा है तो हमें भी चुनकर भेजा है। सांसद और दिल्ली नगर निगम को भी दिल्ली की जनता ने ही चुना है।
लोकतंत्र केवल अपनी बात मनाने का नाम नहीं, लोकतंत्र का मतलब होता है सबसे साथ समन्वय बनाकर सुशासन देना, यदि वह भाजपा एवं कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह LG से संवैधानिक समन्वय बनाकर चलें तो कोई कारण नहीं कि उनके लिये गये निर्णय रोके जायें-प्रदेश अध्यक्ष श्री @adeshguptabjppic.twitter.com/U70w2Ed2tk
बहरहाल, लोकसभा में तो यह बिल आसानी से पारित हो जाएगा, लेकिन राज्यसभा में भाजपानीत एनडीए को बहुमत नहीं है, इसलिए इसे पारित कराने के लिए उसे दूसरी पार्टियों के मदद की दरकार होगी। इसी को देखते हुए आम आदमी पार्टी राज्यसभा के विपक्षी सदस्यों से संपर्क कर रही है, ताकि इसे पारित होने से रोका जा सके। संजय सिंह सहित आप के तीनों राज्यसभा सांसद विपक्षी राज्यसभा सांसदों से संपर्क में जुट गए हैं।