प्रदीप सिंह।
चाणक्य ने लिखा है कि जब दुश्मन के खेमे में खलबली हो तो समझना चाहिए कि राजा कुछ अच्छा कर रहा है। हरियाणा विधानसभा का चुनाव नतीजा आने के बाद से विपक्षी खेमे में जिस तरह की खलबली है वह काबिलेगौर है। मैं आज हरियाणा के चुनाव नतीजे की बात नहीं करने जा रहा हूं। उस चुनाव नतीजे का जो नतीजा है उसकी बात कर रहा हूं कि उस चुनाव नतीजे का असर क्या हुआ है?
नैरेटिव बनाने वालों में एंटी बीजेपी, एंटी मोदी नैरेटिव बनाते बनाते एंटी भारत का नैरेटिव बनाने वालों की कमी नहीं है। एक सज्जन का जिक्र पहले भी कर चुका हूं बड़े इंटेलेक्चुअल हैं, देश के जानेमाने लेखक और चिंतक हैं प्रताप भानु मेहता। उनको आप अक्सर पढ़ते होंगे। उनके लेख ज्यादातर मोदी विरोधी, भाजपा विरोधी, संघ विरोधी और हिंदुत्व विरोधी होते हैं। उनकी नजर में हिंदुत्व की बात करना कम्युनलिज्म है, देश को और समाज को बांटने की कोशिश है। लेकिन मुस्लिम कम्युनलिज्म के बारे में वह चुप्पी साधे रहते हैं।
आज ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में उनका लेख छपा है। वह लेख पढ़कर मुझे लगा कि सचमुच नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने कुछ अच्छा किया है। नरेंद्र मोदी और भाजपा के समर्थक मोदी के समर्थन में बात कहे वह अलग बात होती है। जब आपका कटु आलोचक आपकी प्रशंसा- चाहे परोक्ष रूप से- करने लगे तो आप चौंकते हैं। मुझे नहीं लगा था कि यह खेमा इस बात को इतनी जल्दी स्वीकार कर लेगा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान- बंटोगे तो कटोगे- का जादू चलने लगा है। प्रताप भानु मेहता ने लेख में दो बातें कही हैं। हरियाणा के चुनाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस चुनाव पर योगी आदित्यनाथ की छाया नजर आ रही थी। इससे आप अंदाजा लगा लीजिए। दूसरी बात उन्होंने कही कि हिंदुत्व के नाम पर समाज के कई धड़ों में एकता होने लगी है, एकजुटता होने लगी। उनके लिए यह दुर्भाग्यपूर्ण और चिंता की बात है। देश, समाज और सनातन धर्म के लिए यह अच्छी बात है। और इस बात का एहसास विरोधी खेमे में हो गया है यह और अच्छी बात है। देखिए। नैरेटिव ऐसे ही ध्वस्त किए जाते हैं।
लोकसभा चुनाव में जो नैरेटिव बनाया गया और जिसको चला लिया राहुल गांधी और उनके इको सिस्टम ने, वह था- संविधान खतरे में है… आरक्षण खतरे में है।… उसके अलावा जाति का कार्ड खेला। उनको लग रहा था कि उनको जीत का फार्मूला मिल गया। अब यह ऐसा मुद्दा है जिसके सहारे वह नदी पार कर सकते हैं, उनकी नाव पार लग सकती है। हरियाणा और जम्मू कश्मीर दोनों ने बताया कि गलतफहमी में हैं हुजूर। आपका यह मुद्दा तात्कालिक था, 2024 के लोकसभा चुनाव में हम बहकावे में आ गए थे। अब हम उससे आगे निकल चुके हैं। राहुल गांधी और उनका पूरा इको सिस्टम वहीं पर खड़ा है। समस्या यह है वह परिवर्तन की आहट को समझ नहीं पाते, भांप नहीं पाते। हरियाणा में क्या हो रहा है, हरियाणा में कांग्रेस पार्टी क्या कर रही थी? कांग्रेस पार्टी स्टेटस को की बात कर रही थी। प्रताप भानु मेहता कह रहे हैं कि वो स्टेटस को बरकरार रखना चाहती थी… यानी हुड्डा के राज को। हुड्डा के राज में क्या हुआ यह हरियाणा वालों से बेहतर कौन जानता है। अगर कांग्रेस जीत गई तो हुड्डा के राज में जो कुछ हुआ, फिर से वही सब होगा- यह संदेश बड़ा साफ-साफ कांग्रेस पार्टी दे रही थी। उसको 4 जून 2024 के बाद गलतफहमी थी कि दलित उसके साथ आ रहा है, वह गलतफहमी दूर हो गई।
जिस राज्य या क्षेत्रों में मुस्लिम वोट निर्णायक या प्रभावी नहीं होगा- वहां वहां कांग्रेस की दाल नहीं गलने वाली। हरियाणा का उदाहरण देख लिया। हरियाणा में मुस्लिम वोट प्रभावी नहीं है। एक नूह जिले की बात छोड़ दें जहाँ बीजेपी को सफलता नहीं मिली। जम्मू कश्मीर की बात करें तो घाटी में मुस्लिम बहुल इलाका है। बड़ा स्पष्ट है 94-95 फीसदी या उससे ज्यादा ही मुस्लिम आबादी है। और जम्मू में देख लें जहां भाजपा को भारी सफलता मिली है। कांग्रेस का जो बचा खुचा जनाधार था जम्मू में, वह भी इस चुनाव में खत्म हो गया है और कांग्रेस पार्टी जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए लायबिलिटी बन गई। उसने अपने ही गठबंधन के साथी की टांग घसीट कर उसको नीचे कर दिया। शायद नेशनल कॉन्फ्रेंस को ज्यादा सफलता मिलती अगर वह कांग्रेस के साथ गठबंधन न करती।
लेकिन आज मैं दूसरे मुद्दे पर बात कर रहा हूं। जो नैरेटिव चला था संविधान सर पर लेकर घूमने का, वह एक चुनाव के बाद ध्वस्त हो गया। यह बात कांग्रेस पार्टी को समझ में नहीं आई। जब 4 जून को 2024 लोकसभा चुनाव का नतीजा आया था तो मैंने कई बार कहा था कि यह बाढ़ का पानी है। बाढ़ के पानी से आप नदी के जल स्तर का अंदाजा मत लगाइए। हमेशा गलत साबित होंगे। वो बाढ़ का पानी उतरना शुरू हो गया है। अभी बहुत तेजी से उतरेगा। आपने देखा होगा जब बाढ़ का पानी बढ़ता है तो धीरे-धीरे बढ़ता है। उतरता है तो बहुत तेजी से उतरता है। यह शुरुआत हरियाणा और जम्मू कश्मीर से हो चुकी है। अभी 4 जून को ही तो नतीजा आया था लोकसभा चुनाव का। आज जब मैं आपसे बात कर रहा हूं तो 9 अक्टूबर है। ज्यादा समय तो हुआ नहीं। इतने कम समय में इतना बड़ा परिवर्तन… इससे आप अंदाजा लगाइए कि लोग अगर किसी बहकावे में आ जाते हैं तो कोर्स करेक्शन करने के मामले में भारत का मतदाता बहुत समझदार है और बहुत तेजी से वह परिवर्तन करता है। उसको समझ में आ जाता है कि ये जो भूल हो गई इसको सुधारना जरूरी है। वो चुप नहीं हो जाता कि भूल हो गई तो हो गई, कोई बात नहीं। उसको सुधारने का पहला मौका मिलते ही वह उसको सुधारने की कोशिश करता है।
यह मेरी नजर में दूसरा मौका है जब हरियाणा देश की राजनीति को प्रभावित करने जा रहा है। हरियाणा बहुत छोटा सा राज्य है और ज्यादा पुराना भी नहीं है। 1966 में तो गठन ही हुआ इस राज्य का। पहली बार 1987 में जब चौधरी देवीलाल प्रचंड बहुमत से जीते थे। उनकी सरकार बनी थी। उसके बाद बदलाव की जो शुरुआत हुई, परिवर्तन की जो हवा बहना शुरू हुई हरियाणा से, उसका असर पूरे देश में हुआ। कांग्रेस पार्टी ने उसके बाद जो दौर देखा उससे बुरा दौर अभी तक तो नहीं देखा है। 1984 में कांग्रेस की लोकसभा में 414 सीटें आई थीं। वहां से जो गिरना शुरू हुई तो उठ नहीं पाई। 1987 के बाद 2024 में हरियाणा ने फिर एक ऐसा जनादेश दिया है जो पूरे देश की राजनीति को प्रभावित करने वाला है।
यह खुशी की बात नहीं है कि हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है या कांग्रेस की सरकार नहीं बनी। किसी राज्य में किसी पार्टी की सरकार बन जाए, न बने, यह कोई बहुत महत्त्वपूर्ण बात नहीं है। देश और समाज की दृष्टि से अगर आप देखें तो यह सब बहुत छोटी मोटी बातें हैं। पार्टियां चुनाव लड़ती हैं। कोई जीतेगी कोई हारेगी। जरूरी नहीं कि एक पार्टी हर चुनाव जीते। जरूरी नहीं कि कोई पार्टी हर चुनाव हारे। हार जीत का सिलसिला तो चलता रहता है। बात यह होती कि जो जनादेश आया उसका संदेश क्या है? मेरी नजर में संदेश बहुत ही सकारात्मक है और बहुत खुश करने वाला है। देश और सनातन के लिहाज से बहुत पॉजिटिव संदेश आया है। वह यह कि हिंदुओं में चेतना जागी है, जड़ता से बाहर निकले हैं। अगर हिंदू विरोधी मानसिकता वाले लोग यह मानने लगें कि हिंदुत्व के नाम पर लोग इकट्ठा होने लगे हैं तो समझिए कि बदलाव निश्चित रूप से विरोधी खेमे को दिखाई देने लगा है, महसूस होने लगा है।
जब मैं विरोधी खेमे की बात कर रहा हूं तो कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की बात नहीं कर रहा हूं। उनको जगत गति व्याप्ती नहीं है। उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है। ये पंक्तियां लिखे जाने तक कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी गांधी परिवार की ओर से न तो हरियाणा के लोगों को इस जनादेश के लिए बधाई दी गई है और न ही जम्मू कश्मीर के लोगों को- जहां अपने गठबंधन के साथ वो सरकार बनाने जा रहे हैं। तो वह किस दशा में हैं, बल्कि कहें किस दुर्दशा में हैं, इसका अंदाज लगा लीजिए। जो अभी तीन चार महीने पहले तक सीना ठोक के कह रहे थे कि मोदी को मनोवैज्ञानिक रूप से साइकोलॉजिकली हमने ध्वस्त कर दिया वो बिस्तर पर पड़े अपने घाव सहला रहे हैं। यहां बिस्तर से मतलब राजनीति की निराशा वाला बिस्तर है। उस पर पड़े हुए उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि किस तरह से प्रतिक्रिया दें। उनके प्रवक्ता जो बोल रहे हैं वो तो और ज्यादा हास्यास्पद और जनादेश को अपमानित करने वाला है। वे कह रहे हैं कि गड़बड़ हुई है, हम इसको एक्सेप्ट नहीं करते। चुनाव आयोग ने गड़बड़ी की है। यानी चुनाव आयोग ने हरियाणा में गड़बड़ी कर दी लेकिन वह इतना अक्षम है कि जम्मू कश्मीर में गड़बड़ी नहीं कर पाया। तो कांग्रेस जहां जीते तो जनतंत्र की जीत है, निष्पक्ष चुनाव है। कांग्रेस हारे तो चुनाव रिग्ड है, उनमें धांधली हुई है, चुनाव आयोग जिम्मेदार है, उसने बेईमानी की है। यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि सिवाय गांधी परिवार के दुनिया में सब लोग जिम्मेदार हैं कांग्रेस की हार के।
दूसरा बीजेपी और बीजेपी के समर्थकों को भी समझ में आया होगा कि जब आप झूठे नैरेटिव को तोड़ते हैं, ध्वस्त करते हैं तो उसका असर क्या होता है? 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी और उसके साथी दलों ने आरक्षण, संविधान को लेकर जो नैरेटिव बनाया, उसको भाजपा उस समय तोड़ नहीं पाई। उसका उसको नुकसान उठाना पड़ा। इस बार भाजपा सजग थी। इस बार संविधान और इन सब बातों का हरियाणा के मतदाता पर कोई असर नहीं हुआ। कहा जा रहा था कि जाट नाराज है। जाट बहुल इलाकों की आधी सीटें बीजेपी को मिली हैं।
जनादेश के बारे में प्रताप भानु मेहता के लेख का मैं जिक्र कर रहा था। राहुल गांधी की इससे पहले इस तरह की आलोचना वह नहीं कर रहे थे। उनके बारे में लोकसभा चुनाव तक ऐसी बात नहीं बोल रहे थे। लेकिन हरियाणा विधानसभा के चुनाव के नतीजे के बाद वो कह रहे हैं कि राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी दोनों में कोई फर्क नहीं है। वह चाहती है या वह समझती है या वह सोचती है कि लोकदल, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस तीनों एक साथ हो सकते हैं। यह होता नहीं है और हुआ भी नहीं। 2024 का लोकसभा चुनाव का नतीजा एक फाल्स अलार्म था बीजेपी के लिए। एक चेतावनी थी कि अपना घर सुधारो, अपना तालमेल ठीक करो, संवाद स्थापित करो, संगठन की ओर देखो, अपने संगठन की ताकत को समझो। आपके विरोध में जो नैरेटिव हो उसको तो आपको तोड़ना ही चाहिए। जो नैरेटिव समाज और देश के विरोध में हो उस पर आप कैसे चुप्पी साध सकते हैं, निष्क्रिय रह सकते हैं। हरियाणा ने यह संदेश दिया है कि सही बात सही तरीके से आप पहुंचाएंगे तो लोग सुनने और उसके बाद मानने को भी तैयार हैं।
राहुल गांधी, गांधी परिवार, पूरी कांग्रेस पार्टी सकते में है। उसको समझ में नहीं आ रहा बोले क्या? मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे। बात बात पर अरविंद केजरीवाल की तरह आजकल राहुल गांधी वीडियो संदेश जारी करने लगे थे। रिजल्ट आए हुए 24 घंटे से ज्यादा हो गए गांधी परिवार के किसी सदस्य का कोई ट्वीट, कोई बयान, कोई वीडियो नहीं आया। अरे भैया, कम से कम जम्मू कश्मीर में अपने सहयोगी पार्टी को तो बधाई दे देते। वह भी करने की हिम्मत नहीं हो रही है। हताशा का स्तर आप इससे समझिए कि कोई दूसरी पार्टी होती तो कहती चलिए एक राज्य हार गए, एक में जीत गए, मामला बराबरी पर छूटा। लेकिन ऐसा भी कुछ नहीं हुआ। इस नतीजे और नतीजे से गए सन्देश के आधार पर कहा जा सकता है कि कांग्रेस के और बुरे दिन आने वाले हैं।
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