अम्बरीन जैदी जैसे अनुभव सभी इस्लावादियों को लेने चाहिए।
डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपना शतायु वर्ष पूरा करने जा रहा है। 99 साल की इसकी अब तक की अपनी यात्रा रही है । इन वर्षों में सशक्त भारत के लिए जो भी आवश्यक रहा, वह सभी कुछ किया गया और किया जा रहा है। यथा- कुष्ठरोग के क्षेत्र में (चांपा) आज अपने आप में राष्ट्रीय नहीं वैश्विक स्तर पर सफल उदाहरण है। सेवा भारती के कार्यों और अनेक प्रकल्पों में “मातृछाया” उन नवजात शिशुओं के लिए उनका सब कुछ है, जिन्हें किसी भी कारण से ही सही परित्यक्त कर दिया गया था। कई वनवासी प्रकल्प आज संघ की प्रेरणा से चल रहे हैं। गाँव-गाँव शिक्षा की अलख जगा रहे एकल विद्यालय हों या आरोग्य भारती, भारतीय मजदूर संघ, संस्कार भारती जैसे समाज जीवन में काम करने वाले अनेकों संगठन, इन सभी में स्वयंसेवक दिन-रात अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
आज आप संघ के किसी अधिकारी से बात करेंगे, वह यही कहेगा कि संघ कुछ नहीं करता, स्वयंसेवक सब कुछ करते हैं और यही इस संगठन की हकीकत भी है। देश में हजारों सेवा के कार्य चल रहे हैं, बिना किसी इस भेदभाव के लिए उस सेवा का लाभ किसे मिल रहा है। यह ईसाईयत की तरह मतान्तरण के लिए नहीं हैं और ना ही इस्लाम को माननेवालों की तरह इस जिद पर अड़े रहने की कि मदरसों में हम हिन्दू बच्चों एवं अन्य गैर मुस्लिम बच्चों को न सिर्फ पढ़ाएंगे बल्कि उन्हें पढ़ाई के नाम पर दीनीतालीम भी देंगे। उन्हें ‘तालीमुल इस्लाम’ जैसी इस्लामिक प्रेक्टिसवाली पुस्तकें भी पढ़ाएंगे और उनसे नमाज भी पढ़वाएंगे। जनसंख्या बढ़ाने के लिए लव जिहाद जैसे कई प्रकार के जिहाद (नकारात्मक अर्थों में) करेंगे।
इससे इतर संघ के स्वयंसेवकों के द्वारा संचालित सेवा कार्य किसी के साथ मजहबी, रिलीजन और मत, पंथ के स्तर पर कोई भेद नहीं करते हैं। जिसे सेवा मिलनी चाहिए और जो सेवा का हकदार है, उसे वह शुद्ध सात्विक भाव से मिलना ही चाहिए, यही स्वयंसेवकों की मान्यता है, फिर भी एक बहुत बड़ी जमात है जो लगातार आरएसएस के खिलाफ मुसलमानों में जहर भरने का काम करती है। अब जो संघ से जुड़ा नहीं, कभी सीधे या अप्रत्यक्ष किसी स्वयंसेवक के संपर्क में नहीं आया, उसे तो यही लगता है कि जैसा उनके नेता बता रहे हैं, यही वास्तव में संघ होगा। संघ मुसलमानों का विरोधी है! जबकि इस बात में कुछ भी वास्तविकता नहीं । संघ के स्वयंसेवक की सीधी धारणा है, जो आए देश के काम, वे सभी हमारे अपने, जो भारत को सिर्फ एक भूमि न मानकर जागृत माता के रूप में स्वीकार करें, वे सभी हमारे अपने हैं। जो एक राष्ट्र के रूप में भारत के हर दुख-सुख को अपना मानें वे सभी हमारे आत्मीय जन हैं। उनके हित प्रत्येक स्वयंसेवक का जीवन समर्पित है।
वैसे अम्बरीन जैदी एक पत्रकार हैं, एक भारतीय सैनिक की पत्नी हैं। वे ‘द चेंजमेकर्स’ नामक एक संगठन की संस्थापक हैं, जहाँ वह और उनकी टीम भूतपूर्व सैनिकों, युद्ध विधवाओं और युद्ध अनाथों की पहचान करती हैं, उन्हें सलाह देती हैं और उनका मार्गदर्शन करती है, जब तक कि वे अपनी पसंद के पेशे में मजबूती से स्थापित और सुरक्षित नहीं हो जाते हैं । संयोग से आज ही उनका लिखा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में पत्र पढ़ने का अवसर मिला, जिसमें उन्होंने संघ को लेकर आए अपने अनुभवों का साझा किया है, उसे पढ़कर लगा कि इसे वास्तव में सभी को पढ़ना चाहिए, खासकर मुसलमानों को, और संघ से नफरत करने के स्थान पर उसे नजदीक से जानने की कोशिश करना चाहिए। जैसा कि स्वयं सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत कहते भी हैं कि ‘‘संघ के बिना पास आए उसे नहीं जाना जा सकता है।’’
अम्बरीन जैदी अपनी कहानी में लिखती हैं, ‘‘कुछ साल पहले तक, जब भी हम आरएसएस, संघ या संघी नाम सुनते थे, तो यह मुस्लिमों से नफरत करने वालों या मुस्लिम समुदाय के कट्टर दुश्मनों का पर्याय बन जाता था।…एक बार मुझे एक वरिष्ठ आरएसएस नेता से मिलना था, जो युद्ध में मारे गए लोगों की विधवाओं में से एक से जुड़े मुद्दे पर बात कर रहे थे। मैं एक आर्मी ऑफिसर की पत्नी हूँ और हम आम तौर पर किसी से नहीं डरते और न ही हम किसी चीज़ से आसानी से प्रभावित होते हैं। लेकिन उस दिन मैं बहुत घबराई हुई थी। मेरे पति फील्ड पोस्टिंग पर थे, इसलिए वे हमारे साथ नहीं थे। हालाँकि मेरा अपॉइंटमेंट था, लेकिन मुझे डर था कि वे मुझे मुस्लिम होने के बाद वापस भेज देंगे, या मेरे साथ बदतमीज़ी से बात करेंगे या फिर मुद्दे पर चर्चा करने से भी मना कर देंगे या शायद अपॉइंटमेंट गलती से दे दिया गया हो, ऐसा कहेंगे।’’ लेकिन ऐसा उस दिन कुछ नहीं हुआ।
“मैंने गेट के अंदर प्रवेश किया, अपनी पहचान दिखाई, मेरा नाम सूची में जाँचा गया और मुझे अंदर ले जाया गया। वहाँ बहुत चहल-पहल थी और वहाँ मौजूद हर कार्यकर्ता, जब भी वहाँ से गुजरता, मेरा गर्मजोशी से अभिवादन करता। मैं उनके लिए कोई नहीं थी, फिर भी उन्होंने मेरा अभिवादन किया। जब मेरी बारी वरिष्ठ व्यक्ति से मिलने की आई, तो मैं सचमुच काँप रही थी। जैसे ही मैं अपनी फ़ाइल को कसकर पकड़े हुए उनके दफ़्तर में दाखिल हुई, वे अपनी सीट से उठे और मेरा अभिवादन किया। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। उन्होंने मेरे बताए गए विषय को बहुत ध्यान से सुना। उस क्षेत्र में काम करनेवाली अपनी टीम को बुलाया, जहाँ विधवाएं रहती थीं और कुछ ही समय में मेरे बताए विषय पर कार्य एवं देखभाल शुरू हो गई।”
उन्होंने (संघ अधिकारी) ने अपनी टीम से कहा, “हमारी दीदी यहाँ पर आई हैं, आप इसके काम को समझ लो और इसे मेरा काम समझ कर जल्दी से जल्दी पूरा कीजिए।” फिर से, मैं अवाक रह गई, किसी ऐसे व्यक्ति के लिए इतना सम्मान जिससे वे पहली बार मिले थे, वह भी एक मुस्लिम। हालाँकि मैंने कभी भी अपनी मुस्लिम पहचान का इस्तेमाल खुद को परिभाषित करने के लिए नहीं किया था, लेकिन एक आर्मी पत्नी के तौर पर मेरे लिए मेरा देश सबसे पहले है और कोई भी चीज़, चाहे कोई भी धर्म (मजहब) हो, मेरे और मेरे देश के बीच कभी नहीं आ सकता। मैं खुश मन से घर वापस आई और 3-4 दिनों के भीतर जिस विधवा के मामले को लेकर गई थी वह भी सुलझ गया।
यहाँ अम्बरीन जैदी अपने एक अन्य अनुभव को भी साझा करती हैं, वे लिखती हैं, “जब मैं एक शीर्ष फर्म के लिए काम कर रही थी, …तक उसमें एक युवा लड़का मेरी टीम में शामिल हुआ। उसका नाम शशांक (बदला हुआ नाम) था। वह बहुत अच्छा था, अभी कॉर्पोरेट दुनिया की बारीकियाँ सीख रहा था। कुछ दिनों बाद हमें खबर मिली कि उसके चाचा आरएसएस में बहुत ऊँचे पद पर हैं और अपने खाली समय में वे सेवा भी करते हैं। तुरंत बेचैनी का एहसास हुआ। मैंने उससे बचना शुरू कर दिया। हम बस जल्दी-जल्दी औपचारिक बातें करते थे। यहाँ तक कि दोपहर के भोजन के समय भी, मैं दूर बैठती या अपना दोपहर का भोजन छोड़ देती। उस समय, मैं अपने बच्चों के साथ दिल्ली में अकेली रहता थी, इसलिए डर स्पष्ट था। फिर एक दिन, वह किसी काम से मेरे पास आया और जाते समय उसने मुझसे पूछा, “अम्बरीन मैम, आप मुझे पसंद क्यों नहीं करतीं?” सवाल ने मुझे चौंका दिया, मेरे पास शब्द नहीं थे लेकिन फिर मैंने उसे सच बताने का फैसला किया। मैंने कहा कि मैंने सुना है कि आपका आरएसएस से संबंध है, जिस पर उसने कहा कि हाँ, मेरे चाचा वरिष्ठ पद पर हैं (जिनका मैं यहाँ नाम नहीं ले रही हूँ)। मैंने कहा, शशांक, यह आपको पसंद करने या न करने का मामला नहीं है। मुझे इस बात से असहजता होती है कि आप आरएसएस से जुड़े हैं। मैं एक मुस्लिम महिला हूँ और अपने बच्चों के साथ अकेली रहती हूँ, क्या होगा अगर किसी दिन आप मुझे बता दें कि हम आपको पसंद नहीं करते और मुझे धमकियाँ देने लगें । वह मुस्कुराया।
उसने बहुत शांति से मुझसे कहा, ‘मैडम, आप आराम से रहें और अगर कोई खतरनाक चीज आपके या आपके बच्चों के करीब भी आती है तो मैं सबसे पहले आपकी रक्षा करूंगा। यह भाई का वादा है।’ मैंने भी मुस्कुराते हुए उनका शुक्रिया अदा किया।
कुछ दिनों बाद उन्होंने मुझे एक बड़ी फाइल दी, जिसमें कुछ तस्वीरें थीं, ताकि मैं उसे देख सकूं। इसमें आरएसएस द्वारा किए जाने वाले विभिन्न कल्याणकारी कार्यों का विवरण था, उनके पास 3-4 अनाथालय थे, जो आतंकवाद के कारण अनाथ हुए बच्चों की देखभाल करते थे, जिनमें कश्मीर के मुस्लिम बच्चों की अच्छी संख्या थी। फिर सभी धर्मों की अकेली महिलाओं, विधवा या अपने पति द्वारा छोड़ी गई महिलाओं के लिए केंद्र थे, जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण देते हैं। यह एक ऐसा पहलू था जिसके बारे में मैं बिल्कुल नहीं जानता थी। मैंने कहा, “क्या आप निश्चित हैं शशांक, यह सब सच है, उन्होंने (शशांक ने ) कहा, मैडम आप मुझे बताएं कि जब भी आप फ्री हों, मैं आपको खुद वहां ले जाऊंगा”। फिर मैंने आरएसएस के बारे में और अधिक पढ़ना शुरू कर दिया।
इंटरनेट एक बहुत ही अंधेरी जगह है; यह आपको एजेंडा से प्रेरित खबरें दिखाती है। आप एक लिंक पर क्लिक करते हैं, फिर आप उसी तरह के एकतरफा आख्यानों से भर जाते हैं। उनमें से अधिकांश एक-दूसरे के प्रति घृणा से भरे हुए थे। मैंने आरएसएस से जुड़े अन्य लोगों से बात करना शुरू की, मैं सही तथ्य जानना चाहता थी। मैंने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय का दौरा करने वाले प्रमुख मुस्लिम व्यक्तियों से भी बातचीत की। सभी ने मुझे बताया कि उनके साथ कितना अच्छा और सम्मानपूर्वक व्यवहार किया गया था…धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि हर समुदाय, हर संगठन में हर तरह के लोग होते हैं। स्वाभाविक रूप से, अच्छे लोगों की तुलना में बुरे या बदसूरत लोगों को ज़्यादा हाइलाइट किया जाता है। मैं बुरे लोगों के बारे में ज़्यादा नहीं बताऊँगी क्योंकि सोशल मीडिया उनसे भरा पड़ा है, लेकिन अपने काम, अपने लेखन और बातचीत के ज़रिए मैं निश्चित रूप से हर एक के अच्छे हिस्से को हाइलाइट करूँगी। मेरा विचार सभी को एकजुट करना, सभी के लिए बेहतर और सुरक्षित समाज के लिए काम करना है। मैं प्रार्थना करती हूं कि अच्छाई सभी बुराइयों पर विजय प्राप्त करे, क्योंकि तभी हम एक राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ सकेंगे और महान लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेंगे। राष्ट्र प्रथम, आज और हमेशा। जय हिंद।”
अम्बरीन जैदी के आरएसएस को लेकर संस्मरण यहीं समाप्त नहीं होते हैं, ये अपेक्षा करते हैं हर मुसलमान से जैसे ‘अम्बरीन’ ने अपने अनुभवों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जाना है, आप भी उसी तरह पहले जानें। वस्तुतः जो सिर्फ एकतरफा नफरती, सुनी-सुनाई बातों पर भरोसा करते हैं, वे वास्तविकता में संघ को कभी जान ही नहीं सकते हैं। इसलिए कृपया ऐसा ना करें। संघ का मूल मंत्र भारत का परमवैभव है। यही संघ की विचार धारा है और यही सत्य है।
(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)