डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
भारत की चारो दिशाओं से सीमाओं को सुरक्षित करने की दृष्टि से एक अच्छी खबर आई है। अमेरिका के साथ 31 MQ-9B ड्रोन (प्रीडेटर ड्रोन) खरीदने का डील साइन कर लिया है। वस्तुत: एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन को लेकर भारत-अमेरिका का यह अनुबंध इसलिए खास है क्योंकि इसके जरिए टारगेट को दूर से ही खत्म किया जा सकता है।
इस ड्रोन को बनाने वाली कंपनी जनरल एटॉमिक्स, इसके मल्टीटैलेंटेड होने का दावा करती है, उसका कहना है कि जासूसी, सर्विलांस, इन्फॉर्मेशन कलेक्शन के अलावा एयर सपोर्ट बंद करने, राहत-बचाव अभियान और हमला करने के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है। ड्रोन 2177 किलो का पेलोड अपने साथ ले जा सकते हैं। इनमें लेजर गाइडेड मिसाइल, एंटी टैंक मिसाइल और एंटी शिप मिसाइलें लगी हैं। ये मानवरहित ड्रोन रिमोट से संचालित किये जाते हैं। एक साथ जमीन से लेकर आसमान और समंदर से लॉन्च किये जा सकते हैं।
यह एक बार उड़ान भरने के बाद 1900 किलोमीटर क्षेत्र की निगरानी कर सकता है। हालांकि भारत के पास पहले से ही चार ताकतवर ड्रोन मौजूद हैं, किंतु इनसे भारतीय बेड़े में शामिल होने से सेना की ताकत हवा में बहुत बढ़ जाएगी । अभी भारत के पास जो ड्रोन हैं, उनमें स्वार्म ड्रोन की यह खासियत है कि वह छोटे-छोटे ड्रोन्स में एक साथ मिलकर हमले को अंजाम देते हैं। इसी तरह से दूसरा हरोप ड्रोन एक इजराइली ड्रोन है। अभी भारतीय सेना के पास यह150 से ज्यादा हैं। तीसरा, हेरॉन ड्रोन और चौथा सर्चर भी इजराइली ड्रोन हैं, जिसमें कि भारतीय सेना में हेरॉन ड्रोन की तैनाती लद्दाख क्षेत्र की नगरानी करने के लिए की गई है। वहीं, सर्चर ड्रोन को भारतीय सेना लंबी दूरी की सर्विलांस के लिए इस्तेमाल कर रही है। अब इस नए ड्रोन एमक्यू-9बी के सेना में शामिल होने के बाद भारत की सीमाओं की चौकसी करना और अधिक आसान होगा।
इसकी सबसे बड़ी खासियतों में बिना आवाज किए काम करने की है। यह जमीन से 250 मीटर की ऊंचाई पर उड़ सकता है। इसके बाद भी टारगेट को इसकी भनक नहीं लगती। यह 442 किमी की दूरी पर सिर्फ एक घण्टे में पहुंच जाता है। पाकिस्तान-चीन या अन्य किसी सीमा पर ड्रोन को बहुत अधिक ऊंचाई पर उड़ाया जाएगा तो वह भारत की सीमा में रहते हुए भी यह जान लेगा कि उनकी सीमाओं के अंदर क्या चल रहा है। साथ ही ये ड्रोन हाई एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस की कैटेगरी में आते हैं यानी कि यह 40 घंटे से अधिक समय तक किसी भी प्रकार के मौसम से प्रभावित हुए बिना उड़ान भर सकते हैं। ड्रोन्स की रेंज 1850 किलोमीटर तक है । एक तरीके से भारत के हाथ में ये ड्रोन आने के बाद इस्लामाबाद से लेकर पाकिस्तान से ज्यादातर शहर नई दिल्ली की जद में होंगे। यही स्थिति भारत की दूसरी सीमाओं से सटे देशों की है।
आखिर भारत सरकार ने अमेरिका से इसी ड्रोन को खरीदने में अपनी सबसे ज्यादा रुचि क्यों दिखाई ? जब इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयत्न किया, तब अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट की वेबसाइट के अध्ययन से ध्यान में आया कि ये सर्च और रेस्क्यू से लेकर लॉ एनफोर्समेंट, बॉर्डर एनफोर्समेंट, काउंटर अटैक जैसे मिशन के लिए बेहद कारगर साबित होते रहे हैं और हर बार अपने को सिद्ध करते रहे हैं। अमेरिका ने जहां भी इनका प्रयोग किया, इसके जरिए वह जमीन से लेकर हवा तक अपने दुश्मनों को समाप्त करने के बहुत हद तक सफल रहा। साल 2022 में अमेरिका ने अलकायदा के खूंखार आतंकवादी अयमान-अल-जवाहिरी को काबुल में इन्हीं ड्रोन्स के जरिए ही मार गिराया था। वह बालकनी में टहलने के लिए निकला तभी उस पर रीपर ड्रोन से दो हेलफायर मिसाइलें दागी गईं। इस तरह से अमेरिका ने 9/11 हमले का बदला ले लिया । इतना ही नहीं अमेरिका ने इस ड्रोन की ताकत को देखते हुए ही इन्हें सोमालिया, यमन और लीबिया में इस्तेमाल किया और अभी भी निगरानी के तौर पर इनका इस्तेमाल पुरी दुनिया में अमेरिका द्वारा किया जा रहा है। वह अमेरिका का रीपर ड्रोन ही था, जिससे अलकायदा के ओसामा बिन लादेन की निगरानी की गई और उसे नेवी सील्स द्वारा 2011 में पाकिस्तान के ऐबटाबाद में मार गिराने में सफलता हासिल हुई ।
इस ड्रोन की मारक क्षमता और ताकत को देखते हुए ही मोदी सरकार पिछले एक साल से अमेरिका के पीछे पड़ी थी कि इन्हें भारत को मुहैया कराएं । इसके लिए क्वाड समिट से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन की मुलाकात भी की थी, इस मुलाकात में भारत की अमेरिका से एमक्यू 9बी प्रिडेटर ड्रोन्स की डील पक्की हुई। इसमें भी एक अच्छी बात अनुबंध के समय यह रही है कि सुरक्षा कारणों को देखते हुए मोदी सरकार ने सभी निर्णय अपने समर्थन के करवाए हैं । मसलन, डील के अनुसार जनरल एटॉमिक्स कंपनी ड्रोन के रखरखाव, मरम्मत और ओवरहाल के लिए भारत में केंद्र खोलेगी। । समझौते के तहत भारतीय नौसेना को 15 ड्रोन दिए जाएँगे, जबकि भारतीय वायुसेना और थलसेना को आठ-आठ ड्रोन दिए जाएँगे। जिन्हें भारत की चारों दिशाओं में तैनात किया जाएगा।
अब रक्षा विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इन मानव रहित विमानों का इस्तेमाल एयरबोर्न अर्ली वार्निंग, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, एंटी-सरफेस वॉरफेयर और एंटी-सबमरीन वॉरफेयर में किया जा सकता है। निश्चित ही इससे भारत को बहुत ताकत मिलेगी। ये अनुबंध दोनों देशों के रक्षा साझेदारी को बढ़ावा देगा, जिसमें सैन्य इंटरऑपरेबिलिटी, इंटेलिजेंस-शेयरिंग, स्पेस और साइबर सहयोग शामिल हैं।इसके साथ ही दोनों देशों की सेना खुफिया जानकारी साझा करेगी। जिससे सभी क्षेत्रों में भारत की सशस्त्र सेनाओं की खुफिया, निगरानी और टोही क्षमताओं में वृद्धि होगी। भारत एलएसी से लगे एरिया में चीन को भनक लगे बिना उसकी निगरानी करने में और अधिक सक्षम होगा । वहीं, उसे साउथ चाइना सी में चीन की घुसपैठ को रोकने के इस ड्रोन की मदद से बहुत मदद होगी। सीमाओं की चौकसी को और अधिक मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए यह मोदी सरकार की एक बड़ी उबलब्धि करार दिया जाए तो अतिश्योक्ति न होगा।
(लेखक ‘हिदुस्थान समाचार न्यूज़ एजेंसी’ के मध्य प्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं)