डॉ. समीर पारिख ।
(जाने माने मनोचिकित्सक)।
सोशल मीडिया ने पूरी दुनिया हमारे एक क्लिक में समा दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन, नासा से लेकर हमारे तमाम शहरों की नगर पालिका और बड़े घरों के किशोरों से लेकर इंटरनेट तक पहुंच वाले अतिसामान्य घरों के वृद्ध तक फेसबुक, व्हाट्सएप व ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों पर हैं। कम्प्यूटर, लैपटॉप गुजरे जमाने की बातें हैं… अब तो सिर्फ चार हजार रुपए में आने वाले स्मार्टफोन के जरिए लोग इस आभासी दुनिया में दिन-रात गोता लगाते दिखते हैं। तो जिस तकनीक ने आम आदमी को दुनिया से जुड़ने की ताकत दी थी, वह एक आत्मघाती नशे और कई अपराधों की भी गवाह बन रही है। सोशल नेटवर्किंग पूरी दुनिया को प्रभावित कर रही है। इस जादुई ताकत वाली तकनीक के स्याह और उजले पक्षों को समझना जरूरी है।
संवाद का मंच
सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि सोशल नेटवर्किंग संवाद का एक मंच है। मनुष्य हर जमाने में अलग-अलग तरीकों से अपनी बात दूसरों तक पहुंचाता रहा है। किसी जमाने में टेलीग्राम थे, चिट्ठियां थीं। चिट्ठियों के बाद फोन आए, फिर मोबाइल आया।
जब हम संवाद करते हैं तो उसके कुछ पैटर्न होते हैं। यहां पैटर्न का मतलब यह है कि जरूरी नहीं है कि हम एक ही तरीके से कम्युनिकेट करें। जब हम संवाद करेंगे तो कम्युनिकेशन का हर एक तरीका उपयोग करते हैं। जैसे आप ऑफिस में काम करते हैं, तो उसके लिए व्हाट्सएप, मोबाइल, ईमेल का उपयोग करेंगे। उसी तरह से अपने पारिवारिक काम के लिए भी करेंगे। अगर आपने अपने किसी जूनियर को ईमेल पर डांटा तो उसमें इंटरनेट की गलती नहीं हैं। इसी तरह अगर आपने व्हाट्सएप पर अपने परिवार में किसी से मतभेद कर लिया तो उसके लिए व्हाट्सएप का कोई हाथ नहीं है।
तब भी ये सब होता
पहले ज्यादातर संवाद आमने-सामने होता था। और जहां ऐसा नहीं हो पाता था उसके पीछे थोड़ा समय लगता था। आपने आज सोचा, कल लिखा। फिर भेजा। दूसरे को वह तीन दिन बाद मिला। अब बदलाव यह है कि हमारा कम्युनिकेशन चौबीस घंटे का बन गया है। सोते हैं फोन के साथ। इंटरनेट हर जगह है। तो इस तरह जो लोग सुसाइट करते हैं या जिनके रिश्तों में मतभेद होते हैं तो ऐसी स्थिति सोशल मीडिया या नेटवर्किंग के कारण नहीं है। वे मतभेद इसलिए हैं कि उन्होंने उन बातों का हल नहीं ढूंढा और ठीक से हल न किए जाने के कारण उन्हें समस्या हुई। हम सबको यह समझने की जरूरत है। जैसे व्हाट्सएप पर मैसेज छोड़कर कोई सुसाइट करता है अथवा फेसबुक या किसी अन्य साइट पर बाकायदा वीडियो बनाते जान देता है तो वह जो कर रहा है वह तो वह करता ही, उसने इसे एक माध्यम बना लिया। आज उसने ऐसे किया, यह न होता तो शायद वह कोई नोट या चिट्ठी लिखता।
अकेलापन अब भी उतना ही
गौर करने का पहलू यह है कि हमारे जीवन में सोशल नेटवर्किंग और तमाम दूसरी बातें आ जाने के बाद भी अकेलापन अब भी उतना ही है, बल्कि बढ़ा है। हम अपने एकाकीपन से उबरने का रास्ता नहीं ढूंढ पाते। और इस एकाकीपन को शहरीकरण ने पोसा है, बढ़ाया है।
बच्चे इंटरनेट और सोशल साइटों पर बहुत समय गुजारते हैं, किसी बात का ध्यान नहीं रखते- यह पेरेंट्स की आम समस्या है। तो इसके लिए उन्हें अपने बच्चों को समय देने की जरूरत है, लेकिन इसके साथ ही स्पेस भी देने की जरूरत है। हम उन्हें कभी-कभी स्पेस नहीं देते हैं। हम चाहते हैं कि हर चीज हमारे हिसाब से हो, इसे ऐसे करो, उसे वैसे करो, है ना ! और हम इतना दबाव डालते हैं कि उनकी लाइफ से कम्फर्ट हटा देते हैं। वह कम्फर्ट लाना बहुत जरूरी है। वे इतने सहज हो जाएं हमारे साथ कि अगर गलती भी करें तो हमें बताएं। हमें उनपर बहुत रोकटोक लगाने की जरूरत भी नहीं है। अब जो आज का बच्चा है वह तो मोबाइल पर संदेश भेज रहा है, वे उसे नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं। वो जो कर रहा है उसे अपने बाकी कामों का ध्यान रखते हुए कितना संतुलित कर पा रहा है, इसका असर पड़ रहा है। जब रेडियो आया था तो हमारे पिताजी चाचाजी को रेडियो नहीं सुनने देते थे, कि पढ़ाई करो। कुछ समय बाद कोई और चीज आ जाएगी। किसी चीज में अच्छाई-बुराई कुछ नहीं होती। यह इसमें होता है कि हम उसका इस्तेमाल कैसे करते हैं। मना करने के अलावा आप उन्हें यह सिखाएं कि डेढ़ घंटा पढ़ाई करो, इतना समय यह काम करो, बस पढ़ते समय सोशल साइटों का इस्तेमाल मत करो वरना हमें कोई परेशानी नहीं है। जीवन में संतुलन लाना दरअसल पहले बड़ों के ही सीखने की चीज है, फिर वे बच्चों को बताएं, सिखाएं।
युवाओं के लिए जीवन का विस्तार
देखिए फेसबुक, सोशल मीडिया, मोबाइल फोन… यह सब आज के युवाओं के लिए उतना ही असली हैं, जितना हमारे लिए बातचीत करना है। उनके लिए वह उनके जीवन का एक विस्तार है। एक जगह पर आकर उनके फेसबुक के मित्र और वास्तविक जीवन के मित्र दोनों घुलमिल जाते हैं। समस्या कहीं से भी आ रही हो, हमें उनको समर्थन और मार्गदर्शन देने की जरूरत है। मार्गदर्शन यानी जीवन में संतुलन कैसे लाएं, यह बताना। जैसे अगर वास्तविक जीवन में हमारी मित्रता संतुलित है तो हम फैसबुक मित्रता भी सकारात्मक रख सकेंगे।
अब चूंकि जीवन में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है तो वे आभासी दुनिया में वह प्रेम या मित्रता पाने की चाह रखते हैं और इसी कारण वे समस्याओं में पड़ जाते हैं।
जरूरत से ज्यादा तवज्जो
जीवन में संतुलन सबसे आवश्यक है। हर चीज को उसकी प्राथमिकता के अनुसार समय दें। वास्तविक जीवन यानी परिवार, शारीरिक गतिविधियां, कार्य, मित्र आदि सब को हम किस तरह से संतुलित करते हैं, वही जीवन का सार है। फिर आपको किसी भी चीज की अतिरिक्त भरपाई करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। सारी समस्याएं तभी आती हैं जब हम किसी चीज को जरूरत से ज्यादा तवज्जो देने लगते हैं।
(अजय विद्युत से हुई बातचीत पर आधारित)
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