अजय विद्युत।
तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में हिंदू मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त करा कर उन्हें भक्तों को सौंपे पर जाने का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने तमिलनाडु में मंदिरों को सरकार के चंगुल से मुक्त कराने का राज्यव्यापी अभियान छेड़ा है, जिसे भारी जनसमर्थन मिल रहा है। सद्गुरु ने मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी और विपक्ष के नेता एम. के. स्टालिन को पत्र लिखकर मांग की है कि मंदिरों को आजाद करने के बारे में योजनाओं को राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणापत्र में शामिल करें। मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से आजाद कराने की अपनी इस अपील को सद्गुरु ने तमिल लोगों की पुकार कहा है। सद्गुरु का कहना है कि हम दशकों की उपेक्षा और उदासीनता को जारी नहीं रख सकते। यह हिंदू समुदाय के लिए आध्यात्मिक आत्महत्या के बराबर है।
मंदिरों पर कब्जा छोड़ दे सरकार
सद्गुरु ने कहा है कि राज्य सरकार 44,121 मंदिरों पर से अपना कब्जा छोड़ दे। सरकारी कब्जे की वजह से हमारी पुरानी सांस्कृतिक विरासत खत्म हो गई है और मंदिर खस्ताहाल हो गए हैं। हाल में तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट में माना कि 11,999 मंदिरों के पास दैनिक पूजा करने के लिए भी पैसे नहीं हैं, वहीं 34,093 मंदिर ऐसे हैं, जिनकी सालाना आय 10,000 रुपये से भी कम है और वे भयंकर दुर्दशा झेल रहे हैं। जिन 44,121 मंदिरों पर सरकार का कब्जा है, उनमें से 37 हजार से ज्यादा मंदिर ऐसे हैं, जिनके पास एक से अधिक लोगों को नियुक्त करने के लिए संसाधन नहीं है, ऐसे में एक ही व्यक्ति को मंदिर में पूजा करने से लेकर रखरखाव, साफ-सफाई तक सारे काम करने पड़ते हैं।
यह कैसी धर्मनिरपेक्षता
सद्गुरु ने धर्मनिरपेक्षता के मौजूदा स्वरूप को लेकर भी कुछ सवाल उठाए हैं। सेक्युलरिज्म की परिभाषा के बारे में उन्होंने कहा कि सेक्युलरिज्म का मतलब है, सरकार में धर्म का ना होना और धार्मिक मामलों में सरकार का ना होना। इसके बावजूद मंदिरों का प्रबंधन सरकार क्यों कर रही है, जबकि वह कायदे से ना तो होटल चला पा रही है और ना ही एयरलाइंस। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान द्वारा दी गई धर्मनिरपेक्षता के तहत हिंदू धर्म को छोड़कर सभी धर्मों को अपने स्वयं के पूजा स्थलों का प्रबंधन करने की अनुमति है। हालांकि विशेष हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम भेदभाव की नीति का संकेत देता है और हिंदू मंदिरों पर राज्य को नियंत्रण प्रदान करता है।
मंदिरों की मुक्ति के मुद्दे पर सद्गुरु के साथ आईं कई बड़ी शख्सियतें
मंदिर हमारी संस्कृति के स्रोत
सद्गुरु ने कहा कि अगर हम इस पीढ़ी में मंदिरों की रक्षा नहीं करेंगे तो अगले 50 सालों में काफी भयावह स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। मंदिर हमारी संस्कृति के स्रोत हैं और उसे जीवन देने वाले हैं, वह पूरी तरह से तबाह हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के राजनीतिक दलों को अपने चुनाव घोषणापत्र में जनता से यह वादा करना चाहिए कि मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त कराना उनके राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा होगा। मंदिरों को सरकार की गुलामी से मुक्त कराए जाने के अभियान में उन्होंने राजनीतिक दलों से साफ कहा है कि अगर आप चुनाव जीतना चाहते हैं तो आपको लोगों को यह कहना ही होगा कि आप मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कराएंगे। फिर चाहे आप सत्ताधारी पार्टी हों या कोई अन्य दल।
यह मुद्दा चुनाव से पहले ही क्यों
तमिल सिनेमा के लोकप्रिय अभिनेता संथानम के साथ बातचीत में सद्गुरु ने कहा कि तमिलनाडु के लोगों को सोचना चाहिए कि उनके प्राचीन और दिव्य मंदिरों की हालत खराब क्यों हो रही है। सरकार के नियंत्रण में होने के कारण और उनकी देखरेख में सरकारी उदासीनता की वजह से राज्य में मंदिरों की हालत इतनी खराब है। संथानम ने सतगुरु से सवाल किया कि इस बात को ठीक चुनावों से पहले आप उठा रहे हैं? क्या इसके पीछे कोई खास वजह है? इस पर सतगुरु ने कहा कि चुनाव के समय ही हमें अपनी मांगों को जनता के सामने रखना चाहिए। प्रायः हम चुनाव के समय तो चुप रहते हैं और बाद में इन मुद्दों को लेकर धरना-प्रदर्शन करते रहते हैं, ऐसे में लोगों को परेशानी होती है। चुनाव के बाद नेता और चुने हुए प्रतिनिधियों का ध्यान इस तरफ नहीं जाता।