आपका अखबार ब्यूरो।

संस्कृति मंत्रालय के स्वायत्त संस्थान इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने ‘सत्यार्थी मूवमेंट फॉर ग्लोबल कम्पैशन’ के सहयोग से 28 फरवरी को नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’ पर एक विशेष चर्चा का आयोजन किया। इस अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम में आईजीएनसीए के अध्यक्ष ‘पद्म भूषण’ श्री राम बहादुर राय, आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, श्री कैलाश सत्यार्थी और श्रीमती सुमेधा कैलाश की भी गरिमामय उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन आईजीएनसीए के मीडिया सेंटर के नियंत्रक श्री अनुराग पुनेठा ने किया।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने कहा कि सत्यार्थी की आत्मकथा ‘दियासलाई’ बच्चों के मौलिक अधिकारों के प्रति समर्पित एक आंदोलन है। ‘दियासलाई’ केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक प्रेरक यात्रा का दस्तावेज़ है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को पढ़ते हुए उनकी अपने बचपन की यादें ताजा हो गईं। उनकी और सत्यार्थी जी की यात्रा एक जैसी रही है। वह कानपुर देहात के एक छोटे से गांव से निकलकर राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे और सत्यार्थी जी विदिशा के एक छोटे से गांव से निकलकर नोबल पुरस्कार के मंच तक पहुंचे। पूर्व राष्ट्रपति ने कैलाश सत्यार्थी के संघर्ष की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने न केवल भारत, बल्कि पूरे विश्व में बाल अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उनका संघर्ष आसान नहीं था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। रामनाथ कोविन्द ने यह भी उल्लेख किया कि कैलाश सत्यार्थी ने अपना नोबेल पुरस्कार व्यक्तिगत रूप से न रखकर राष्ट्र को समर्पित किया, जिससे उनकी देशभक्ति स्पष्ट होती है। उन्होंने कहा, “जब मैं राष्ट्रपति भवन में था, तब भी कैलाश जी मुझसे मिलने आते थे और उनके विचार मुझे हमेशा प्रेरित करते थे। उनकी आत्मकथा भी लाखों लोगों को प्रेरित करेगी।”

आईजीएनसीए के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार पद्मभूषण राम बहादुर राय ने कहा कि जब उनको यह पुस्तक मिली, तो वे काफी देर तक इसके कवर पृष्ठ को देखते रहे और महसूस किया कि पूरी किताब का सार उसी में समाहित है। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति (कैलाश सत्यार्थी) आगे बढ़ रहा है, क्योंकि उसके पास करुणा की शक्ति है। उन्होंने कैलाश सत्यार्थी की आत्मकथा के एक वाक्य – “दियासलाई बनने की प्रक्रिया में मेरा जीवन भी आक्रोश के ताने-बाने से बुना रहा है” को उद्धृत करते हुए कहा कि इस आत्मकथा के अंश हम सभी के जीवन का हिस्सा बनने चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईजीएनसीए के सदस्य सचिव सच्चिदानंद जोशी ने ‘दियासलाई’ की तारीफ करते हुए कहा कि कैलाश सत्यार्थी जगत बंधु हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘दियासलाई’ का अगला भाग ‘अखंड ज्योति’ होना चाहिए। कैलाश सत्यार्थी ने परिचर्चा में शामिल सभी विद्वानों का आभार व्यक्त करते हुए कहा, “हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, वह पहले से कहीं अधिक समृद्ध है, लेकिन हम समस्याओं का समाधान नहीं कर पा रहे हैं। एक समस्या का समाधान करने में कई समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।” उन्होंने कहा कि करुणा से ही संसार की समस्याओं का समाधान होगा। दियासलाई के 24 अध्यायों में कैलाश सत्यार्थी ने विदिशा के एक साधारण पुलिस कांस्टेबल के परिवार में जन्म से लेकर जीवन संघर्ष, दुनिया भर के बच्चों को शोषण से मुक्त कराने और नोबेल शांति पुरस्कार तक की अपनी यात्रा के बारे में बताया है।

यह महत्वपूर्ण कार्यक्रम सामाजिक न्याय, बाल अधिकारों और वैश्विक करुणा के प्रति श्री कैलाश सत्यार्थी की आजीवन प्रतिबद्धता और उनकी असाधारण यात्रा से परिचित होने का एक विशिष्ट अवसर सिद्ध हुआ।