बालेन्दु शर्मा दाधीच।
सोशल मीडिया की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह लोगों को जोड़ता है। आप दुनिया में किसी भी व्यक्ति से संपर्क कर सकते हैं। चूंकि वह सभी को बराबर का प्लेटफार्म देता है इसलिए हमें कभी-कभी ऐसे लोगों के साथ भी जोड़ देता है जिनसे हम जुड़ना नहीं चाहते, या नहीं चाहिए। कोई व्यक्ति जो किसी अच्छे मकसद के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है उसके लिए यह सकारात्मक माध्यम है। लेकिन अपराधी प्रवृत्ति या नकारात्मक मानसिकता के लोगों को भी यह उतनी ही सुविधाएं प्रदान करता है। इसलिए कहा जाता है कि सोशल मीडिया के आने के बाद से समस्याएं भी बढ़ी हैं।
पहले नहीं थे इतने ज्यादा मौके
खासकर हमारे समाज में पहले लोगों को अपनी बात कहने के इतने ज्यादा मौके इतनी आसानी से उपलब्ध नहीं थे। तो सोशल मीडिया ने जो हमें अपनी बात हर जन तक पहुंचाने का अवसर दे दिया है उससे हम चमत्कृत हैं। हमें लगा कि हमें ताकत मिल गई। इसने लोगों का आत्मविश्वास भी बढ़ाया है। संवाद को बहुत आसान कर दिया है जो कि पहले संभव नहीं था।
सीमाएं टूटीं
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें जो ऐसे व्यक्ति जो दूसरों से बात करने में काफी शर्माते हैं और सामान्य जीवन में लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं करते, दस लोगों के सामने खड़ा कर दें तो वे बोल नहीं पाते, जिनकी अभिव्यक्ति की सीमाएं हैं, लेकिन वे जब सोशल मीडिया पर आते हैं तो अचानक उनकी सीमाएं टूट जाती हैं और वे मुखर हो उठते हैं। ये जो अपने आप को अभिव्यक्त करने की ताकत मिली है यह पहले कभी उपलब्ध नहीं थी।
जादू है, नशा है
यह प्रवृत्ति नशा भी बनती जा रही है क्योंकि यह ऐसा अनुभव है जिससे हम पहले कभी नहीं गुजरे। यह हमें अपना व्यक्तित्व निर्मित करने और ऐसे अंतरंग मित्र बनाने का मौका दे रही है जो हमारे जितने ही हमारे निकट और विश्वासपात्र हैं।
जैसे सामाजिक जीवन या वास्तविकता में मैं इतना अनुभव या योग्यता नहीं रखता हूं कि लोगों को प्रभावित कर सकूं। लेकिन सोशल मीडिया पर मैंने अपनी ऐसी शख्सियत बना ली कि लोगों को मैं प्रभावित कर पा रहा हूं। तो वह मेरी एक झूठी या आभासी पर्सनैलिटी है। उसे मैं लंबे समय तक जीता हूं और उसके माध्यम से लोगों तक पहुंचता हूं। अब ये नशे में तब्दील हो रही है। हम न केवल इससे दूसरों को प्रभावित कर रहे हैं बल्कि अब वह हमारे वास्तविक जीवन में भी भ्रम ला रही है। हम खुद भी अपने से चमत्कृत हैं कि हमने यह क्या कमाल कर दिया। ऐसा डायलॉग डाला कि दो सौ लाइक मिल गए। यह हमें यह अनुभूति कराता है कि अचानक ही हम काफी लोकप्रिय हो गए। तो संपर्क बढ़ाना और सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा समय काटना अब एक लत और नशा बनता जा रहा है। एक बहुत लोकप्रिय उपन्यास लेखिका ने कहा था हर व्यक्ति पंद्रह मिनट की प्रसिद्धि चाहता है। यह बात हमारे सोशल मीडिया पर बिल्कुल सटीक बैठती है। सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को पंद्रह मिनट की प्रसिद्धि पाने का मौका दे दिया है। और यह लगभग हर व्यक्ति की आकांक्षा है। हर व्यक्ति अपनी एक पहचान बनाना चाहता है और सोशल मीडिया इसका सबसे आसान माध्यम है।
आप बड़े बड़े लोगों जैसे अमिताभ बच्चन को भी संदेश भेज सकते हैं, पहले यह शक्ति आम आदमी के पास नहीं थी। यह नशा अब हमें भ्रमित कर रहा है।
हम असली दुनिया से कटते जा रहे हैं। असली दुनिया में हमारे मित्र सीमित होते जा रहे हैं। हमने खेल के मैदानों में जाना बंद कर दिया है। और इस नकली या आभासी दुनिया में हम खूब रमे हैं।
असल दुनिया से ज्यादा अपराधी नकली दुनिया में
अपराध भी बढ़े हैं और अलग-अलग किस्म के बढ़े हैं। भी एक लड़की की एक लड़के से फेसबुक के माध्यम से दोस्ती हुई। दोस्ती रिलेशनशिप में बदल गई। फिर कुछ दिनों बाद उनकी रिलेशनशिप टूट गई। तो उस लड़के ने लड़की को परेशान करना शुरू किया और फेसबुक पर एक नकली आईडी के साथ उस लड़की की तस्वीर को दूसरी तस्वीरों के साथ जोड़कर उसकी नग्न फोटो डाल दी और उस पर लिख दिया कि मैं किसी से भी रिलेशनशिप बनाने के लिए प्रस्तुत हूं। इससे वह लड़की इतनी प्रताड़ित हुई कि उसने आत्महत्या कर ली। तो यह अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी आ गए हैं और हम उन्हें पहले से पहचान नहीं सकते।
सोशल मीडिया अपनी पहचान छिपाने का भी बहुत आसान माध्यम है। आप अपना नाम, पता, फोटो कोई भी असली पहचान बताए बिना अपराध करके आसानी से निकल सकते हैं। यह अपराध करने, लोगों को परेशान करने या उनकी मानहानि करने का एक बेहतरीन प्लेटफॉर्म भी बन गया है। अपराधी प्रवृत्ति के लोग ही नहीं सामान्य आदमी के भी मन में भाव उठता है कि वह दूसरों को परेशान करे। मनोरंजन करने या दूसरों को परेशान करने की नीयत से साइबर बुलिंग, साइबर स्टाकिंग या इंटरनेट ट्रॉलिंग जैसे काम अब आम लोग भी करने लगे हैं। हालांकि यह भी एक अपराध ही है। एक व्यक्ति कोई टिप्पणी करता है और उसके विरोध में लाखों की संख्या में टिप्पणियां आने लगती है जिनमें कई बहुत ही अभद्र और अश्लील होती हैं।
बदल रहा सोचने का तरीका
एक किताब आई है जिसमें कहा गया है कि इंटरनेट हमारे सोचने का तरीका बदल रहा है। यह हमें सोशल मीडिया के अनुरूप ही सोचने के लिए प्रेरित करने लगा है। हम कहीं जाते हैं या किसी के साथ होते हैं तो तुरंत दिमाग में आता है कि यह सेल्फी अगर मैं ट्विटर पर डाल दूंगा तो इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। हम कोई टिप्पणी या बात कहीं सुनते या देखते हैं तो तुरंत लिख लेते हैं कि बाद में फेसबुक पर डाल देंगे। तो हमारे लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट इतना प्रमुख बन गया है जिसका कोई औचित्य नहीं है।
खेल दूसरे खेल रहे, हम खामखां के खिलाड़ी
सोशल मीडिया एक निरंतर चल रहा गेम है जिसमें हम भी अपने आपको एक खिलाड़ी मान बैठे हैं और दिन-रात सक्रिय है। एक संदेश कहीं से आया और हमने उसे आगे बढ़ा दिया। किसी ने बच्चे के डांस का फोटो भेजा हमने दूसरों को भेजा। हम उस गेम का हिस्सा बन चुके हैं जिससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है। यह गेम खेला जा रहा है कंपनियों की तरफ से। हम सोशल नेटवर्किंग कराने वाली कंपनियों को लाभ पहुंचाने का जरिया भर बनकर रह गए हैं, उन्हें क्लिक दिलवा रहे हैं। हम टेलीकॉम कंपनियों का डेटा कंज्यूम कर रहे हैं और सोशल नेटवर्किंग कंपनियों की विज्ञापन आय बढ़ाने का माध्यम बन रहे हैं। दोनों को फायदा पहुंचा रहे हैं।
निवेदन
अगर आप अपने किसी उद्देश्य के लिए इन माध्यमों का उपयोग कर रहे हैं तो ठीक है लेकिन यदि केवल आनंद के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं तो एक समय निश्चित कर लें कि दिन भर में केवल आधा घंटा फेसबुक, व्हाट्सएप के लिए दूंगा। और उसका पालन करें। वरना यह बुरी तरह हावी होकर आपको तमाम मनोवैज्ञानिक समस्याओं में डाल देगा।
(लेखक जाने माने तकनीकविद् हैं)
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