हैरान करने वाली है मुर्शिदाबाद से आयी खबर।
सुरेंद्र किशोर।
21 अप्रैल 2025 के दैनिक जागरण में मुर्शिदाबाद के बारे में एक खबर छपी है। उसका शीर्षक है- ‘‘मुर्शिदाबाद के दंगाइयों ने महिलाओं से कहा कि वे अपनी बेटियों को दुष्कर्म के लिए भेज दें।’’
19 जनवरी, 1990 को कश्मीर में मस्जिदों के लाउड स्पीकरों के जरिए यह एलान किया गया- ‘‘कश्मीरी पंडित काफिर हैं। उन्हें कश्मीर छोड़ना होगा। धर्म परिवर्तन या मरने के लिए तैयार हो जाओ। जिन्हें कश्मीर छोड़ना है, वे अपनी महिलाओं को यहीं छोड़ कर जाएं।’’ ध्यान रहे कि करीब एक लाख हिन्दुओं ने उसके बाद कश्मीर छोड़ दिया।
राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया राहटकर ने मुर्शिदाबाद की ताजा घटना के बारे में हैरान करने वाली जानकारी दी। बताया कि कुछ महिलाओं से तो दंगाइयों ने यहां तक कहा कि वह अपनी बेटियों को दुष्कर्म के लिए भेज दें।
चर्चित और मशहूर यू ट्यूबर मनीष कश्यप ने खबर दी है कि बिहार के किशनगंज और अररिया में यादवों की संख्या घट रही है। किशनगंज में यादव 14 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत रह गये हैं और अररिया में 12 प्रतिशत से घट कर 8 प्रतिशत रह गये। यानी, कश्मीर, मुर्शिदाबाद और किशनगंज होते हुए कब बिहार की मुख्य भूमि में यह मुगलयुगीन महा संकट पहुंच जाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।
किसी दिन कोई आपके घर आए और कहे कि अपनी बेटी दे दो, तो आपको यही इच्छा होगी कि उसे गोली मार दी जाए। लेकिन आप सबके पास हथियार तो है नहीं। फिर क्या होगा?…वही होगा, जैसा कश्मीर, मुर्शिदाबाद और बांग्ला देश में हो रहा है। मध्य युग में भी यही हुआ था।
घातक हमले के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा के लिए हमारे देश में कानून मौजूद है। भारतीय न्याय संहिता की धारा-44 में दृष्टांत के रूप में यह लिखा हुआ है। कृपया ध्यान से पढ़ लें:
‘‘क पर भीड़ द्वारा आक्रमण किया जाता है। जो भीड़ उसकी हत्या करने का प्रयत्न करती है, वह उस भीड़ पर गोली चलाये बिना प्राइवेट प्रतिरक्षा के अपने अधिकार का प्रयोग कार्य साधक के रूप में नहीं कर सकता और वह भीड़ में मिले हुए छोटे-छोटे बालको को अपहानि करने की जोखिम उठाए बिना गोली नहीं चला सकता। यदि वह इस प्रकार गोली चलाने से उन बालकों में से किसी बालक को अपहानि करे तो ‘क’ कोई अपराध नहीं करता।’’
यह तो ठीक है कि आत्मरक्षा के लिए कानूनी प्रावधान उपलब्ध है। पर गोली चलाने के लिए गोली-बंदूक भी तो चाहिए। आज कितने लोगों के पास कारगर हथियार है? सरकार जल्दी राइफल-बंदूक का लाइसेंस देती ही नहीं। नई परिस्थिति में सरकार कम से कम संवदेनशील इलाकों के लोगों को उदारतापूर्वक आग्नेयास्त्र का लाइसेंस दे या फिर कानून की किताब से इस धारा-44 को हटा दे।
सभ्यताओं का संघर्ष तेज
नब्बे के दशक में अमरीकी राजनीतिक वैज्ञानिक सैमुएल पी.हंटिंगटन की एक किताब आई थी जिसका नाम है- ‘‘सभ्यताओं का संघर्ष’’। उस पुस्तक के जरिए लेखक ने यह कहा था कि ‘‘शीत युद्धोत्तर संसार में लोगों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान ही संघर्षों का मुख्य कारण होगी।’’
भारत और यूरोप सहित दुनिया के अनेक देशों में वैसा संघर्ष इन दिनों जारी है जिसकी कल्पना हंटिंगटन ने की थी। हाल के वर्षों में वैसा संघर्ष भारत में तो काफी सघन और तेज हो चुका है।
और अंत में
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को मुर्शिदाबाद जाना चाहिए था। नहीं गये। वहां जाने से उनके एकमात्र मुस्लिम वोट बैंक के भी नाराज हो जाने का उन्हें खतरा महसूस हुआ होगा। उसके बदले कांग्रेस अध्यक्ष कल बक्सर (बिहार) में थे। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने कांग्रेस अध्यक्ष की यात्रा की जो खबर बनाई, उसका शीर्षक है- ‘बक्सर में कांग्रेस अध्यक्ष का खाली कुर्सियों ने स्वागत किया।’
कांग्रेस ही नहीं, किसी भी दल का अब कोई राजनीतिक भविष्य नहीं रहेगा जो मुर्शिदाबाद जैसी जघन्य घटनाओं का विरोध नहीं करेगा। मनीष कश्यप की खबर की सच्चाई की राजद जांच करे, कोई कार्रवाई करे, अन्यथा वोट बैंक खिसकते देर नहीं लगती। कभी कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक ब्राह्मण वोट था। अब क्या हाल है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)