प्रमोद जोशी।
पहलगाम के हमले को लेकर पूरे देश में गुस्से की लहर है। खासतौर से घाटी के नागरिकों ने बंद आयोजित करके पाकिस्तान को पहला जवाब दे दिया है। अभी कुछ भी कहना मुश्किल है, पर यदि सैनिक-कार्रवाई हुई तो यकीनन उड़ी के सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट अभियान से ज्यादा बड़ी होगी, क्योंकि उन दोनों से पाकिस्तान ने कुछ सीखा नहीं।
पाकिस्तान अब लंबा सबक चाहता है. खासतौर से जनरल आसिम मुनीर के नाम कड़ा संदेश जाना चाहिए, जो जहरीली बातें कर रहे हैं. आतंकवादियों को घेरकर ठिकाने लगाना एक रणनीति है, पर असली ज़रूरत है, उन लोगों के सफाए की, जो पर्दे के पीछे हैं.
कश्मीर में पिछले सात दशकों में पाकिस्तान ने कई बार कब्ज़ा करने का प्रयास किया, पर शुरूआती वर्षों में उसे सफलता नहीं मिली। बावज़ूद इसके कि इस्लाम का सहारा उसके पास था। अस्सी के उत्तरार्ध में पाकिस्तानियों ने काफी ताकत के साथ प्रवेश किया और पंडितों को बाहर निकाला। इसी दौर में धार्मिक कट्टरता अपने चरम पर पहुँची। जो काम अरब देशों में संभव नहीं था, वह यहाँ होने लगा। सिनेमाघर बंद हो गए। यहाँ तक कि संगीत की मंडलियों पर रोक लगा दी गई, स्त्रियों को परदे के पीछे कैद कर दिया गया। नौजवानों को धर्म की इतनी गाढ़ी अफीम पिला दी गई कि वे किसी भी हद तक जाने लगे।
बहरहाल 2019 के बाद से स्थितियों में कुछ तो बदलाव हुआ है। बेशक पाकिस्तान परस्तों और कट्टरपंथियों के प्रति हमदर्दी किसी न किसी स्तर पर आज भी होगी, पर मेरी जिज्ञासा इस बात को लेकर है कि क्या जनता का छोटा सा तबका भी भारतीय व्यवस्था के साथ जुड़ नहीं पाया है? कल के बंद से इतना तो लगता है कि कश्मीरियों ने इस हिंसा को पसंद नहीं किया है। बहुत सी बातें अभी स्पष्ट होनी हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
यही पहलगाम… दो साल पहले
अनिल भास्कर।
पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर में बड़ा बदलाव आया है। तरक्की की तेज रफ़्तार ने कश्मीरियों का मन-मिज़ाज बदला है।
दो साल पहले इसी पहलगाम और उसके आसपास के इलाकों की मैंने अपनी कार से यात्रा की थी और अपनी दो दशक पुरानी यात्रा के अनुभवों से तुलना की थी। इस बार दुकानदार, होटल व्यवसायी, ट्रांसपोर्टर, मज़दूर सभी नई उम्मीद से लबरेज दिखे थे। वे खुद को भारतीय मानने लगे थे और अपने व अपनी आगामी पीढ़ियों के भविष्य को लेकर खासा आशान्वित नज़र आए।
जाहिर है इस बदलाव ने पाक आकाओं की पेशानी के बल गहरे कर दिए थे। उनका कश्मीर कार्ड ख़ारिज होने लगा था। ताज़ा हमला बेशक हिन्दू पर्यटकों पर हुआ, लेकिन असल में यह हमला कश्मीर में हो रहे बदलाव पर है। कश्मीरियों का विरोध इसी की तस्दीक है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)