डॉ. सैयद रिजवान अहमद।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उद्योगपति एलन मस्क की लड़ाई शायद वो मुद्दा था जिसका आप में से काफी लोग पहले से अनुमान लगाए बैठे होंगे। उम्मीद तो ये थी कि ये झगड़ा 2026 तक शुरू होगा लेकिन उससे पहले ही इन्होने एक दूसरे की कॉलर पकड़ ली।
ट्रम्प बुरे व्यक्ति नहीं है, वे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे ही हैं। बस समस्या ये है कि मोदी की तरह व्यापारी तो हैं मगर राजनेता नहीं। अमेरिका एक देश है, कोई कम्पनी नहीं। आजकल तो कॉर्पोरेट में भी हम सोच समझकर अपनी बातें सामने रखते है और खुलकर कहने से बचते हैं।
ट्रंप की गलती
इंदौर के पूर्व महाराज मल्हार राव होल्कर का प्रसिद्द कथन है कि “राजनीति में मैं जब भी बोलता हु तो थोड़े शब्द दबा जाता हूं ताकि समय आने पर बात से पलट जाऊं तो कोई आरोप ना लगाए।
ट्रम्प ने यही गलती की। इतना ज्यादा बोले कि कहीं कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी। आज आप एक भारतीय के रूप में मत सोचिये। आप जापानी या कोरियन बनकर सोचिये। आपका देश सैन्य रूप से अमेरिका पर निर्भर है। रूस, चीन और नार्थ कोरिया निगलने को बेताब हैं। और ऐसे में ट्रम्प कहते हैं कि अमेरिका को ज्यादा पैसे दो, नहीं तो सुरक्षा नहीं देंगे।
उस डर की अनुभूति करके देखिये जो यूरोप के भी मन में है। यूक्रेन को चाबी लगाने वाला बाइडन का अमेरिका था। अब ट्रम्प का अमेरिका उसी यूक्रेन को फटकार लगा रहा है। मानो या ना मानो, बाइडन और ट्रम्प दोनों ही बंटाधार साबित हुए हैं। अमेरिका के पत्ते बहुत जल्दी खोल कर रख दिए।
डोनाल्ड ट्रम्प ने तो फरवरी में एक रिपोर्ट भी दे दी थी कि किस तरह अमेरिका ने अरबो डॉलर भारत के चुनाव को प्रभावित करने के लिए खर्च किये थे। शुक्र है इराक और सीरिया से जुड़े कागज सार्वजानिक नहीं किये। लेकिन इतना समझ आया कि डोनाल्ड ट्रम्प राजनीतिक रूप से परिपक्व नहीं हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प राजनीति के राहुल गाँधी जैसे है, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर कैसे बोलना है और उसके प्रभाव दुष्प्रभाव क्या हैं, ये उन्हें पता नहीं है बस बराक ओबामा द्वारा किये उपहास की गाँठ बांधकर राजनीति में उतर गए।
मोदी का शत्रुहंता योग
यहीं मोदीजी के शत्रुहंता योग भी दिखाई देते हैं।जो भी रास्ते में आता है स्वतः ठिकाने लग जाता है। शंकर वाघेला और केशु भाई पटेल तो बहुत छोटे नाम हैं। खुद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी अछूते नहीं रहे। राष्ट्रीय छोड़ो आप मुइज्जु, महातिर मोहम्मद, शी जिनपिंग, जो बाइडन और जस्टिन ट्रुडो के हाल देख लो।
विपक्ष भी मोदी जी को ही सबसे कमजोर अवस्था में मिला जब मुलायम मर गए, लालू की राजनीति खत्म हो गयी, करूणानिधि भी खिसक लिये। गाँधी परिवार की भी सबसे कमजोर पीढ़ी से उन्हें लड़ना पड़ रहा है। इनमें से मुलायम ने तो 2019 की लोकसभा में मोदीजी की ही जीत की प्रार्थना कर डाली थी।
जो मोदीजी से भिड़ा वो या तो काल के गाल में समा गया या फिर इसी तरह उनका ही फैन हो गया।
नीतीश कुमार को थक हारकर मोदी शरण में लौटना ही पड़ा, गुलाम नबी आजाद तो मानो कभी राजनीति में जन्मे ही नहीं। दिग्विजय सिंह ने कहा था कि मोदी को गुजरात के बाहर कौन जानता है, आज मोदी तो सर्वत्र हैं मगर यही बात दिग्विजय के संदर्भ में जरूर कही जाती है।
मोदी जहाँ हैं वहाँ होने के लिए इस शत्रुहंता योग की अपनी भूमिका रही है बाकि कर्म का महत्व तो गीता में भी वर्णित है ही।
(लेखक सामाजिक, धार्मिक, कानूनी, और राजनीतिक टिप्पणीकार और फेस टू फेस यूट्यूब चैनल के संचालक हैं)