श्री राधेश्यामजी खेमका (1935-2021)

शरद अग्रवाल। 

श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार (भाईजी) के बाद भारत की आध्यात्मिक पत्रकारिता को ‘कल्याण’ के माध्यम से सशक्त करने वाले  श्री राधेश्यामजी खेमका अब हमारे बीच नहीं है। वह 3 अप्रैल 2021 को काशी के केदार-खण्ड में शिव-सायुज्य को प्राप्त हो गए। लगभग पंद्रह दिन पहले उनको हृदयाघात हुआ था। 


श्री जयदयालजी गोयन्दका और भाईजी ने सन् 1923 में गीता प्रेस की स्थापना की थी। यह संस्था अब वटवृक्ष  का रूप ले चुकी है। यह संस्था अपने विशिष्ट सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए आज भी उत्तरोत्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर होती जा रही है, तो इसका बहुत कुछ श्रेय पिछले 38 वर्षों से ‘कल्याण’ के प्रधान सम्पादक का गुरुतर दायित्व निभाने वाले श्री राधेश्यामजी खेमका को है। आप ‘कल्याण’ के सम्पादक ही नहीं, अपितु गीता प्रेस ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष भी थे।

मुंगेर (बिहार) में जन्मे

श्री राधेश्यामजी खेमका का जन्म वर्ष 1935 में बिहार के मुंगेर जिले में एक संभ्रांत मारवाड़ी परिवार में हुआ था।आपके पिताजी श्री सीतारामजी खेमका सनातन-धर्म के कट्टर अनुयायी तथा गोरक्षा आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर थे और माताजी एक धर्मपरायणगृहस्थ सती महिला थीं।

उच्च शिक्षा काशी में

Karpatri Swami Jeevan Darshan - Radheshyam Khemka

 

 

किशोरावस्था में आपकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा प्राय: मुंगेर में ही हुई। वर्ष 1956 में आपका परिवार स्थाई रूप से काशी में निवास करने लगा। काशी आने के बाद आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और साहित्य रत्न की उपाधि भी प्राप्त की। कुछ समय आपने कानून की पढ़ाई भी की और कागज का व्यापार भी किया। आपके पिताजी  की धार्मिक प्रवत्ति और सक्रियता के कारण संतों का सत्संग और सानिध्य आपको सदैव  मिलता ही था, परंतु काशी आने पर यह और सुगम हो गया। व्यवसाय के साथ-साथ आपका स्वाध्याय, सत्संग और संत समागम का व्यसन भी चलता रहा। आपका  संस्कृत,हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं पर पूर्ण अधिकार था।

38 वर्षों तक अवैतनिक सेवा

बाद में व्यवसाय पुत्र-पौत्रादि को सौंप कर अपने जीवन के अन्तिम 38 वर्षों तक आपगीता प्रेस और ‘कल्याण’ की अवैतनिक सेवा करते रहे। आप उस संस्था से कोई आर्थिक लाभ नहीं लेते थे।

स्वामी करपात्रीजी का विशेष सानिध्य

गीता प्रेसचे अध्यक्ष राधेश्याम खेमका यांचे निधन, 40 वर्षांपासून 'कल्याण' मासिकाचे होते संपादक । President of Geeta Press Radheshyam Khemka passed away

धर्म सम्राट स्वामी करपात्री महाराज के अंतरंग सानिध्य को आप अपने जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य मानते थे। आपने स्वामीजी से संबन्धित अपने अनुभवों और संस्मरणों पर एक पुस्तक भी लिखी है – करपात्री-स्वामी: एक जीवन दर्शन। सेठजी और भाईजी के बाद गीता प्रेस जब बहुत कठिन दौर से गुजर रहा था, उस समय आपने इस संस्था को संभाला। अपने कार्यकाल के दौरान आपने अन्यान्य महापुराणों तथा कर्मकाण्ड के दुर्लभ ग्रन्थों के प्रामाणिक संस्करणों का सम्पादन कर उन्हें प्रकाशित कराया। अब तो गीता प्रेस के प्रकाशन प्राय: सभी प्रांतीय भाषाओं में प्रकाशित हो रहे हैं जिनकी भारी मांग है। गीता प्रेस गोरखपुर में अत्याधुनिक तकनीक की भव्य मशीनें लगाकर गत वर्षों में प्रेस की क्षमता और गुणवत्ता दोनों में गुणात्मक सुधार किया गया है। ‘कल्याण’ में ज्वलंत मुद्दों पर आपके सारगर्भित विचारों से सभी परिचित हैं।

वेद विद्यालय की स्थापना

आपने सन् 2002 में काशी में एक वेद विद्यालय की स्थापना की। इसमें आठ से बारह वर्ष आयु के बच्चों को प्रवेश दिया जाता है। इसमें छ: वर्षीय पाठ्यक्रम है।

दैनिक जीवन

श्री राधेश्यामजी खेमका अपना नीति नियम करते हुए गंगा स्नान, प्रात:कालीन संध्या वंदन, मंत्र-जप, तर्पण, भगवान का पूजन प्रतिदिन लगभग बारह बजे तक सम्पन्न करते थे। एकादशीव्रत,प्रदोषव्रत, रविवार को लवण रहित भोजन इत्यादि नियमों का पालन आपके जीवन का अभिन्न अंग रहा था। प्रत्येक वर्ष माघमास में आप प्रयागराज में संगम तट  पर कल्पवास भी करते थे। आपने भारत के प्राय: समस्त तीर्थों की यात्रा की है। मुझे भी एक बार आपके साथ नर्मदा-परिक्रमा में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

एक दुर्लभ व्यक्तिव

आप आत्म प्रचार से कोसों दूर थे। आज के युग में आप जैसा व्यक्तित्व मिलना दुर्लभ है।

(लेखक गीता प्रेस वाराणसी के सम्पादकीय विभाग में अधिशासी प्रभारी हैं। वहां वह लगभग पंद्रह वर्ष से कार्यरत हैं।)


गोयन्दकाजी के त्याग और तपस्या का फल है गीता प्रेस