31 जुलाई 1986 प्रातः सुमिला, जुहू, बंबई
जीसस को सूली लगी। जरा एक ऐसे व्यक्ति के विषय में सोचो, जो लोगों को उनकी मृत्यु के चार दिन बाद पुनर्जीवित कर देता है। और ये उसी के निजी व्यक्ति हैं, क्योंकि जीसस यहूदी थे। याद रखो, जीसस कभी ईसाई नहीं थे। उन्होंने ईसाई शब्द भी नहीं सुना था। अपने जीवन-काल में वह क्राइस्ट नाम से कभी नहीं जाने गए। क्योंकि क्राइस्ट शब्द ग्रीक भाषा का शब्द है। हिब्रू भाषा में क्राइस्ट या क्रिश्चियन, ऐसा कोई शब्द नहीं है। और जीसस पूरी तरह से अशिक्षित थे। यहां तक कि उन्हें हिब्रू भाषा का कोई ज्ञान न था। वह एक स्थानीय ग्रामीण भाषा अरेमैक बोलते थे। वे जन्म से यहूदी थे। एक यहूदी की तरह ही वे जीए। और एक यहूदी की तरह ही उनकी मृत्यु हुई। उस समय उनकी उम्र केवल 33 वर्ष थी।
यदि वे मुर्दों को जिलाते थे तो यहूदियों ने उनका ईश्वर की तरह स्वागत किया होता। अगर तुम सत्य साई बाबा की इसलिए प्रशंसा कर सकते हो कि वह व्यर्थ की वस्तुएं निकाल सकते हैं, जैसे कि स्विस घड़ियां या पवित्र राख और तुम उनकी ईश्वर की भांति पूजा कर सकते हो, तो इस तुलना में जीसस ने सच में ही चमत्कार किए हैं। यदि उन्होंने सच में ही ऐसा किया है तो यहूदियों ने उन्हें हमेशा हमेशा के लिए आदर दिया होता। लेकिन उन्होंने जीसस को सूली दी।
उस दिन तीन लोगों को सूली दी जाने वाली थी। यहूदी परंपरा के अनुसार प्रतिवर्ष यहूदी त्योहार सबाथ के शुरू होने के पहले सूली दी जाने वाली थी। और यहूदियों को एक मौका दिया गया था कि वे एक व्यक्ति को क्षमा कर सकते हैं। उन दिनों जूडिया रोम शासन का गुलाम था। जूडिया का वायसराय एक रोमन व्यक्ति पान्टियस पायलट था। उसको यह उम्मीद थी कि लोग जीसस को क्षमादान देंगे, क्योंकि वे निर्दोष थे। उन्होंने कभी किसी को कोई हानि नहीं पहुंचाई थी। हालांकि वे निरर्थक बात करते थे। वे एक मसखरे जैसे दिखते थे। वे पागलों की भांति बातें करते थे कि केवल वह ही परमात्मा के इकलौते पुत्र हैं। लेकिन इन बातों से किसी का कुछ बुरा नहीं हो पाता। और यह अपराध नहीं था। अधिक से अधिक उन्हें मनोचिकित्सा की आवश्यकता थी, लेकिन सूली की नहीं।
पायलट सोचता था कि यहूदी जीसस को क्षमादान देंगे क्योंकि यह पुष्ट हो चुका था कि अन्य दोनों व्यक्ति निस्संदिग्ध रूप से अपराधी थे। लेकिन यहूदियों ने मांग की कि बाराबास को छोड़ दिया जाए। बाराबास ने सात व्यक्तियों की हत्या की थी। उसने वे सारे अपराध किए थे, जो किसी भी मनुष्य के लिए कर सकना संभव था। पाटिन्यस पायलट भरोसा नहीं कर सका कि वे लोग बाराबास के लिए क्षमादान मांग सकते हैं, जीसस के लिए नहीं।
क्या तुम भरोसा कर सकते हो कि एक ऐसा व्यक्ति जिसने सिर्फ शुभ ही कार्य किए हों, लोगों को रोगमुक्त किया हो, मुर्दों को जीवित कर दिया हो, जहां तक कि जिस पर तेज गति से भी चलने का अपराध न हो, क्योंकि पूरे जीवन भर वे एक गधे पर ही सवारी करते रहे, उसे…!
मैं सोच ही नहीं सकता कि जीसस के विषय में जिन चमत्कारों की बातें की जाती हैं, वे सही हैं। वे सब के सब झूठ हैं, कोरी कहानियां हैं और मनगढंत हैं। यहां तक कि अब तो ईसाइयत के जो बड़े-बड़े ईसाई धर्मशास्त्री हैं, वे दुनिया भर में गोष्ठियां कर रहे हैं कि यदि हम इन चमत्कारों से छुटकारा पा सकें तो अच्छा होगा। क्योंकि भविष्य में बुद्धिमान लोगों के लिए यह चमत्कारों की गाथा बाधा बनेगी। अतीत में इन्होंने जीसस को परमात्मा सिद्ध किया था, भविष्य में यह बातें उन्हें अधिक से अधिक एक जादूगर साबित करेंगी। लेकिन यदि तुम जीसस के सभी चमत्कार हटा लो तो फिर कुछ नहीं बच रहेगा।
हमने गौतम बुद्ध को जाना है, महावीर को जाना है। हमने उपनिषदों के ऋषियों को जाना है, जिन्होंने उड़ानें भरीं मानव चेतना के आकाश में- परम उड़ानें भरीं। लेकिन तुम जिनके नामों की बातें करते हो, उन्होंने तो उपनिषद के ऋषियों को, गौतम बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य को उसी श्रेणी में रखा है, जिसमें जीसस हैं। जीसस तो सत्य साईं बाबा की श्रेणी के हैं। उससे अधिक नहीं। और वे दोनों ही झूठे हैं। और जीसस के जीवन में रिसरेक्शन या पुनर्जीवन जैसी कोई घटना नहीं हुई। कारण?
मैंने कश्मीर में जीसस की कब्र देखी है। वे सूली पर नहीं मरे थे। यह एक षड़यंत्र था, जिसमें जानबूझकर देर की गई। जीसस को शुक्रवार के दिन सूली दी गई थी। शुक्रवार के बाद तीन दिन तक यहूदी कोई कार्य नहीं करते थे, इसलिए पान्टियस पायलट ने शुक्रवार का दिन चुना था और जीसस को सूली देने में जितना विलंब किया जा सकता था, उतना विलंब किया गया। और तुमको पता होना चाहिए कि यहूदियों का सूली देने का ढंग ऐसा है कि इसमें किसी भी व्यक्ति को मरने में 48 घंटे का समय लगता है। क्योंकि जिस व्यक्ति को सूली दी जाती है, उसे वे गरदन से नहीं लटकाते हैं। व्यक्ति के हाथों व पैरों पर कीलें ठोंक दी जाती हैं, जिस कारण बूंद-बूंद कर खून टपकता रहता है। इस प्रकार एक स्वस्थ व्यक्ति को मरने में 48 घंटे का समय लग जाता है। और जीसस की आयु मात्र 33 वर्ष थी… पूर्णतया स्वस्थ। वे छह घंटों में नहीं मर सकते थे। कभी कोई छह घंटों में नहीं मरा।
लेकिन शुक्रवार का सूरज डूबने लगा था, अतः उनके शरीर को नीचे उतारा गया। क्योंकि नियमानुसार 3 दिन तक कोई कार्य नहीं होना था। और यही षड़यंत्र था। उन्हें एक गुफा में रखा गया, जहां से उन्हें चुरा लिया गया और वह बच निकले। इसके पश्चात जीसस कश्मीर (भारत) में ही रहे। यह कोई खास बात नहीं है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू की नाक, इंदिरा गांधी की नाक यहूदियों जैसी है। हजरत मूसा की मृत्यु कश्मीर में हुई। और जीसस भी कश्मीर में मरे। जीसस बहुत लंबे समय तक जीए। 112 वर्ष की आयु में उन्होंने शरीर छोड़ा।
मैं उनकी कब्र पर गया हूं। आज भी इस कब्र की देखभाल एक यहूदी परिवार करता है। कश्मीर में यही एकमात्र ऐसी कब्र है, जो मक्का की दिशा में नहीं पड़ती है। अन्य सभी कब्रें वहां मुसलमानों की हैं। मुसलमान मृतकों के लिए कब्र इस तरह बनाते हैं कि कब्र में मृतक का सिर मक्का की दिशा में हो। कश्मीर में केवल दो कब्रें ऐसी हैं, एक जीसस की और दूसरी मूसा की, जिनका सिरहाना मक्का की ओर नहीं। और कब्र पर जो लिखा है वह स्पष्ट है। यह हिब्रू भाषा में है। और जिस “जीसस’ नाम के तुम अभ्यस्त हो गए हो, वह उनका नाम नहीं था। यह नाम ग्रीक भाषा से रूपांतरित होकर आया है। उसका नाम जोसुआ था। और अभी भी उस कब्र पर यह सुस्पष्ट रूप से लिखा हुआ है कि महान धर्म शिक्षक जोसुआ जूडिया से यात्रा कर यहां आए। वे वहां 112 वर्ष की आयु में मरे, तथा दफनाए गए।
अजीब बात है कि सारे पश्चिमी जगत को मैंने यह बताया है, फिर भी पश्चिम से एक भी ईसाई यहां आकर इस कब्र को नहीं देखना चाहता है। क्योंकि यह उनके पुनर्जीवन के सिद्धांत को बिलकुल गलत सिद्ध कर देगा। मैंने उनसे पूछा कि यदि वे फिर से जीवित हो उठे थे तो वे कब मरे? तुम साबित करो, तुम्हें साबित करना होगा। निश्चय ही बाद में उनकी मृत्यु हुई होगी, अन्यथा वे अभी भी यहीं कहीं घूमते होते। उनके पास जीसस की मृत्यु का कोई विवरण नहीं है।
मेरी निंदा की गई क्योंकि जो मैं कह रहा था, वह पूर्णतया तर्कसम्मत, वैज्ञानिक व बुद्धिपूर्ण बात थी। और तुम जिन लोगों के विषय में बात कर रहे हो, उनकी रुचि सत्य में नहीं थी। उनकी रुचि उन्हीं बातों में थी, जिन्हें तुम पसंद करते हो। राजनीति और मेरे देखे राजनेता का मन इसी तरह काम करता है। और यह राजनीति एकदम आरंभ से ही आरंभ हो जाती है। बच्चा जन्म के साथ ही राजनेता बन जाता है। वह मां को देखकर मुस्कराना चाहता नहीं है, लेकिन वह मुस्कराता है। उसके हृदय में कोई मुस्कराहट नहीं है, फिर भी वह जानता है मुस्कराहट से कुछ मिलेगा। वह पिता को देख कर मुस्कराता है। यद्यपि उसके पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि वही उसके पिता हैं। आदमी उसी क्षण से राजनीति सीखना आरंभ कर देता है: वही करो, जो लोगों को अच्छा लगे।
यह एक बड़ी विचित्र दुनिया है। यहां नेता अपने अनुयायियों के पीछे चलते हैं। मैं नेता नहीं हूं। मैं केवल एक विचारक हूं। और अपने जीवन के अंतिम क्षण तक मैं एक विचारक की तरह ही जीऊंगा। मैंने रोनाल्ड रीगन को संदेश भेजा है कि मुझे जान से मारने के लिए 5 लाख डालर व्यर्थ न गंवाओ। बस वे 5 लाख डालर आप मेरे कार्य के लिए दे दें और मैं अपना शरीर खुद ही छोड़ दूंगा। क्योंकि अपने शरीर के लिए तो मैंने एक पैसा भी कीमत नहीं चुकाई है। और एक दिन मैं मरूंगा, तब भी कोई इसके लिए एक पैसा भी कीमत नहीं देगा। 5 लाख डालर इसका समुचित मूल्य है। लेकिन क्यों इसे किसी दूसरे व्यक्ति को दिया जाए और उसको दिक्कत में डाला जाए। मैं मरने के लिए तैयार हूं। बस 5 लाख डालर मेरे कार्य के लिए दे दें… और इस बात पर सौदा हो सकता है।
(‘मैं स्वतंत्र आदमी हूं’- पहला प्रवचन से)
जीसस बोले ‘गरीबी धन्यता है’… तो हमें गरीबी को और फैलाना चाहिए : ओशो