#pramodjoshiप्रमोद जोशी।
अमेरिका के दंडात्मक ‘पारस्परिक टैरिफ’ से बचने की 9जुलाई की समय-सीमा जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, भारत-अमेरिका व्यापार-समझौते की संभावनाएँ बढ़ रही हैं। इसमें सबसे बड़ी बाधा भारत के किसानों और पशुपालकों के हितों की लक्ष्मण रेखा है।

पिछले सप्ताह राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के इस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कि नई दिल्ली के साथ होने वाला अंतरिम द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) अमेरिका के लिए भारतीय बाजार को ‘खोल देगा’, वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है, हाँ, हम समझौता करना चाहेंगे।
ट्रंप की टिप्पणी ऐसे समय में आई, जब मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक भारतीय दल 26जून को ही अमेरिका के साथ अगले दौर की व्यापार वार्ता के लिए वाशिंगटन पहुँचा। अग्रवाल वाणिज्य विभाग में विशेष सचिव हैं।

पहला चरण

अमेरिका ने 2अप्रैल को घोषित उच्च टैरिफ को 9 जुलाई तक निलंबित कर दिया था। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भारत के साथ समझौता उसके पहले हो जाएगा। यह दीर्घकालीन व्यापार-समझौते का पहला चरण होगा।

इस समझौते से भारतीय अर्थव्यवस्था की बदलती दिशा का पता लगेगा। नब्बे के दशक के आर्थिक-उदारीकरण, के बाद आंतरिक-राजनीति में फिर से नई लहरें पैदा होंगी। अमेरिका के सस्ते कृषि-उत्पादों के भारत आने का मतलब है, खेतों और गाँवों में हलचल।

भारत चाहता है कि अमेरिकी कृषि-उत्पादों की सब्सिडी पर भी बात हो। अब लगता है कि दोनों देश, व्यापार-समझौते के पहले चरण पर जल्द ही पहुँचेंगे, शायद काफी हद तक अमेरिकी शर्तों पर, लेकिन भविष्य में भारतीय चिंताओं को संबोधित करते हुए संभावित समायोजन के साथ।

भारतीय विदेश-नीति के लिहाज से यह हफ्ता काफी महत्वपूर्ण होगा। अगले कुछ समय में अमेरिका के साथ व्यापार-समझौते के अलावा यूरोप और चीन के साथ रिश्तों को लेकर भी महत्वपूर्ण गतिविधियाँ होने वाली हैं।

वैश्विक-समीकरण

ब्राज़ील में ब्रिक्स का शिखर सम्मेलन है, जिसमें भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए हैं। ब्रिक्स इस समय विस्तार की प्रक्रिया से गुज़र रहा, पर इसके साथ ही यह विकसित देशों के जी-7समूह के समांतर खड़ा होने की कोशिश भी कर रहा है। इसपर चीन और रूस का दबदबा बढ़ रहा है।

इसके सदस्य देशों में भारत, दो धाराओं के बीच में है। इस सम्मेलन में रूस और चीन दोनों देशों के राष्ट्रपति भाग नहीं लेने वाले हैं। हाल में एससीओ रक्षामंत्रियों के सम्मेलन में पहलगाम हमले को लेकर संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं होने के बाद से तल्खी बढ़ी है।

इस साल के अंत में चीन में एससीओ का शिखर सम्मेलन होगा, उसमें पीएम मोदी भी भाग ले सकते हैं। ज़ाहिर है कि पहलगाम और सीमा-पार आतंकवाद की बात वहाँ फिर से एकबार उठेगी।

भारत और चीन के बीच 2020के गलवान प्रकरण के बाद से रिश्ते खराब चल रहे हैं, पर हाल में दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हुई है, जिसमें व्यापार भी शामिल है। भारत की दिलचस्पी चीन के साथ व्यापार में असंतुलन को कम करने में है।

अमेरिका से रिश्ते

भारतीय नीति-निर्माता अमेरिका को चीन की तुलना में बेहतर साझेदार मानते हैं, लेकिन वैश्विक-राजनीति में भारत, अपनी नीतिगत स्वतंत्रता से समझौता नहीं कर सकता। हाल में पाकिस्तान के साथ हुए संघर्ष के दौरान ट्रंप के पाकिस्तानी-झुकाव के बाद, भारत में अमेरिकी विश्वसनीयता को लेकर संदेह हैं।

अमेरिका की सत्ता पर चाहे कोई भी पार्टी रही हो, अमेरिकी प्रशासन मानता है कि अमेरिका के नेतृत्व वाली विश्व-व्यवस्था के लिए चीन सबसे बड़ा खतरा है। नतीजतन, अमेरिका ने न केवल अपने औपचारिक सहयोगियों की ओर, बल्कि दूसरे भागीदारों की ओर भी देखा है। भारत के साथ उसकी साझेदारी इस रणनीति का हिस्सा है।

एक बात यह भी स्पष्ट है कि अमेरिका को भारत के हितों की समझ बहुत कम है। वैश्विक-व्यवस्था के विभिन्न मानदंडों में भारत की वही नीति नहीं हो सकती, जो अमेरिका की है। वह अमेरिका के पिछलग्गू जैसी भूमिका नहीं अपना सकता।

इस समझ के बिना, यह उम्मीद व्यर्थ है कि चीन के मुकाबले भारत, सच्चा प्रति-संतुलन बनाएगा। रक्षा संबंधों के तेजी से विकास से कई बार लगता है कि भारत-अमेरिका रिश्ते अच्छे हैं, पर वस्तुतः दोनों के व्यापार संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। भारत के संरक्षणवाद पर अमेरिका को आपत्ति है, जबकि भारत मानता है कि अमेरिका ने विकासशील देश के रूप में हमें ठीक से समायोजित नहीं किया है।

संतुलनकारी-नीति

हाल में इसराइल और ईरान के बीच हुए फौजी टकराव ने भारत की विदेश-नीति के संतुलन से जुड़े सवाल पूछे हैं। भारत के लिए पश्चिम एशिया महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहाँ हम आई2यू2जैसे समूहों में शामिल हुए हैं और पश्चिम एशिया कॉरिडोर बनाना चाहते हैं। यह हमारी ‘लुक वैस्ट पॉलिसी’ का हिस्सा है।

यह नज़रिया जटिल भू-राजनीतिक तनावों को दूर करते हुए ऊर्जा सुरक्षा, प्रवासी भारतीयों के हितों और क्षेत्रीय संपर्क को संतुलित करने के लिए है। यह यूएई और सऊदी अरब के साथ मज़बूत साझेदारी पर आधारित है, जिनके साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023-24में क्रमशः 84अरब अमेरिकी डॉलर और 43अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। दूसरी तरफ यह ईरान के साथ परंपरागत रिश्तों पर भी आधारित है।

भारत की नीतिगत पहलों में खाड़ी के माध्यम से भारत को यूरोप से जोड़ने वाला ‘इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर’ इसराइल के साथ रक्षा सहयोग मज़बूत करना और ‘इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर’ के माध्यम से ईरान के चाबहार बंदरगाह का विकास शामिल है।

व्यापार-समझौता

विशेषज्ञ संकेत कर रहे हैं कि डेयरी और कृषि भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में बाधा बन रहे हैं। भारत ने अब तक किसी भी मुक्त व्यापार समझौते में डेयरी को शामिल नहीं किया है।
इस बीच रायटर्स ने खबर दी है कि भारत सरकार के सूत्रों के अनुसार ऑटो कंपोनेंट, स्टील और कृषि उत्पादों पर शुल्कों को लेकर असहमति के कारण व्यापार-वार्ता में रुकावट आ गई है। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि ट्रंप की अनिश्चित व्यापार नीतियों के बीच अभी वॉशिंगटन से ठोस प्रस्तावों की प्रतीक्षा है।

भारत प्रस्तावित 26प्रतिशत पारस्परिक टैरिफ को वापस लेने पर जोर दे रहा है, जो 9जुलाई से लागू होने वाला है, साथ ही स्टील और ऑटो पार्ट्स पर मौजूदा अमेरिकी टैरिफ में रियायत भी चाहता है। लेकिन कुछ भारतीय अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि अमेरिकी वार्ताकार अभी इन बातों पर सहमत नहीं हैं। (आवाज़ द वॉयस)