वित्तीय सहायता में देरी पत्नी, बच्चे की गरिमा का अपमान।

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जब पति अपनी निर्भर पत्नी और बच्चे को वित्तीय सहायता देने में देरी करता है तो उनकी गरिमा का हनन होता है। ‘लाइव लॉ’ की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने यह भी कहा कि भरण-पोषण का उद्देश्य तभी पूरा होता है जब यह समय पर दिया जाए, क्योंकि एक दिन की देरी भी इस अधिकार को व्यर्थ कर देती है।

जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, “वित्तीय सहायता में देरी का मतलब है गरिमा से इनकार। यह कोर्ट इस सच्चाई से अवगत है कि समय पर भरण-पोषण न केवल जीविका बल्कि उन लोगों की बुनियादी गरिमा की रक्षा के लिए अनिवार्य है जो इसके कानूनी रूप से हकदार हैं।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि भरण-पोषण केवल मौद्रिक जिम्मेदारी नहीं बल्कि एक कानूनी और नैतिक कर्तव्य है जो निर्भर पत्नी और बच्चे की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए है। कोर्ट ने कहा, “भरण-पोषण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि निर्भर पत्नी और बच्चे को वित्तीय स्थिरता और सुरक्षा का अहसास हो। यह कोई दया या कृपा नहीं है, जिसे कमाने वाले पति की सुविधा पर टाला जा सके।”

यह टिप्पणी न्यायालय ने उस याचिका पर की, जिसमें पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। इसमें उसे अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे को प्रति माह 45,000 देने का निर्देश दिया गया था।