प्रमोद जोशी।
अमेरिका के लिए, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत, महत्वपूर्ण साझेदार है और क्वॉड समूह (ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका) का अभिन्न सदस्य, जो उभरते चीन के लिए क्षेत्रीय-प्रतिपक्ष का कार्य करता है। अमेरिका-भारत व्यापार सौदा उनके द्विपक्षीय संबंधों के नीतिगत आयाम को बढ़ाएगा।
अमेरिकी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भी भारत, महत्वपूर्ण योगदानकर्ता है, जिसमें महत्वपूर्ण और उभरते प्रौद्योगिकी उत्पादों के संयुक्त विकास और उत्पादन के लिए पूरक क्षमताएँ हैं। इसके अलावा, भारत लगभग 2,000 अमेरिकी कंपनियों की मेज़बानी करता है और अमेरिकी ऊर्जा और रक्षा उपकरणों का एक महत्वपूर्ण खरीदार है, जिसमें विस्तार की अपार संभावनाएँ हैं।
भारत के लिए अमेरिका के साथ समझौता करने वाले देशों के शुरुआती समूह में शामिल होने के कई आकर्षक कारण हैं। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत की दिलचस्पी भी अमेरिका के बाज़ार में है। भारत में विश्व स्तरीय कंपनियाँ हैं, जो अमेरिका में सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा कर सकती हैं, बशर्ते कि वह भी टैरिफ कम करे।
समझौतों की जटिलताएँ
भारत सरकार मानने लगी है कि द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से पश्चिम के साथ व्यापार संबंधों का विस्तार करना उसके अपने आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। उसने पिछले साल यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए और हाल में यूनाइटेड किंगडम के साथ समझौता किया।
अमेरिका के साथ कई देशों की बातें चल रही हैं, पर सभी में सफलता मिल नहीं रही है। पिछले हफ्ते ही कनाडा के साथ व्यापार-वार्ता टूटी है, पर चीन के साथ प्रारंभिक समझौते पर दस्तखत हुए भी हैं।
दूसरे देशों के विपरीत, यदि भारत समझौते के पहले चरण के लिए सहमत हुआ, तो वह अमेरिका से कुछ छूटें भी हासिल कर सकता है। आगामी शरद ऋतु में संभवतः ट्रंप क्वॉड शिखर सम्मेलन के लिए दिल्ली आएँगे। अभी डील हुए बिना यह स्पष्ट नहीं है कि आएँगे या नहीं, लेकिन 9 जुलाई तक डील हुई, तो माहौल बदलने की उम्मीदें हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)