मोदी ने दी बधाई, गगणयान मिशन की दिशा में मील का पत्थर।
प्रमोद जोशी।
राकेश शर्मा के बाद दूसरे भारतीय अंतरिक्ष-यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर 18 दिन और कुल मिलाकर 20 तक अंतरिक्ष में रहने के बाद मंगलवार को भारतीय समयानुसार दोपहर 3:01 बजे प्रशांत महासागर में कैलिफोर्निया तट पर सकुशल उतर आए हैं। आईएसएस पर जाने वाले वे पहले भारतीय एस्ट्रोनॉट हैं। शुभांशु ने कहा कि अंतरिक्ष में भारत का झंडा लहराना गर्व की बात है। अब नई शुरुआत की तैयारी है।
इसके अलावा वे स्पेस में सबसे लंबे वक़्त तक रहने वाले भारतीय एस्ट्रोनॉट बन गए हैं। ऐसा करते हुए उन्होंने अपने गुरु और पूर्व भारतीय एस्ट्रोनॉट राकेश शर्मा का रिकॉर्ड तोड़ा है। राकेश शर्मा ने 1984 में तत्कालीन सोवियत संघ के सैल्यूट-7 अंतरिक्ष स्टेशन के मिशन के भाग के रूप में अंतरिक्ष यात्रा की थी।
अंतरिक्ष मॉड्यूल को ज़मीनी स्तर पर स्थित पुनर्प्राप्ति टीमों द्वारा अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाने के लिए तैनात एक पुनर्प्राप्ति जहाज तक पहुँचने में सहायता प्रदान की गई। उन्हें हेलीकॉप्टर से मुख्य भूमि पर ले जाने से पहले जहाज पर ही उनका स्वास्थ्य परीक्षण किया गया। पृथ्वी पर लौटने के बाद एक्सओम-4 टीम को 7 दिनों तक पुनर्वास (रिहैबिलिटेशन) में रहना होगा, ताकि उन्हें अंतरिक्ष यात्रा के प्रभावों से उबरने में मदद मिल सके। यह अवधि चिकित्सकों की निगरानी में होगी ताकि वे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के साथ फिर से सामंजस्य बिठा सकें।
उन्हें आईएसएस से धरती तक आने में लगभग साढ़े 22 घंटे लगे। स्पेसएक्स का क्रू ड्रैगन अंतरिक्षयान सोमवार को आईएसएस से अलग हुआ था। यह अनडॉकिंग (आईएसएस से अंतरिक्षयान से अलग होने) सोमवार को भारतीय समयानुसार शाम लगभग 4:45 बजे हुई थी।
चार दिन बढ़े
मूल रूप से, चालक दल को 10 जुलाई को वापस लौटना था, लेकिन वैज्ञानिक गतिविधियों को जारी रखने और कार्यक्रम में बदलाव के कारण उनके प्रवास को चार दिन बढ़ा दिया गया। एक्सिओम-4 मिशन के में शुभांशु के साथ तीन अन्य अंतरिक्षयात्री पैगी ह्विटसन, पोलैंड के स्लावोस्ज उजनांस्की-विस्नीवस्कीऔरहंगरी के टिबोर कापू 26 जून को आईएसएस पर पहुँचे थे। इन अंतरिक्षयात्रियों ने आईएसएस से जुड़ने के बाद से लगभग 76 लाख मील की दूरी तय करते हुए पृथ्वी के चारों ओर लगभग 433 घंटे या 18 दिन तक 288 परिक्रमाएं कीं।
39 साल के शुक्ला एक्सिओम मिशन 4 (एक्स-4) के लिए इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) में मिशन पायलट के तौर पर काम कर रहे थे. यह मिशन नासा, स्पेसएक्स और इसरो का संयुक्त मिशन है। एक्सओम-4 मिशन 25 जून को फ्लोरिडा में कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च हुआ था। ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट 28 घंटे की यात्रा पूरी करके इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर 26 जून को पहुँचा था।
इन अंतरिक्ष यात्रियों ने आईएसएसपर 18 दिन बिताए और 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए. जिनमें से 7 प्रयोग शुभांशु शुक्ला ने किए. अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने सभी सात माइक्रोग्रैविटी प्रयोगों को पूरा कर लिया। शुभांशु का यह अनुभव भारत के समानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम और गगनयान मिशन में मदद करेगा।
प्रधानमंत्री की बधाई
शुभांशु शुक्ला के धरती पर लौटने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “मैं पूरे देश के साथ ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का स्वागत करता हूं, जो अपने ऐतिहासिक अंतरिक्ष मिशन से पृथ्वी पर लौट रहे हैं…अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन का दौरा करने वाले भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री के रूप में उन्होंने अपने समर्पण और साहस से करोड़ों सपनों को प्रेरित किया है. यह हमारे अपने मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन की दिशा में एक और मील का पत्थर है.”केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी एक्सिओम 4 की टीम को बधाई दी।
वैज्ञानिक प्रयोग
अंतरिक्ष स्टेशन में अपने कार्यकाल के दौरान शुक्ला द्वारा किए गए प्रमुख प्रयोगों में से एक, अंतरिक्ष सूक्ष्म शैवालों का अध्ययन था ताकि भोजन, ऑक्सीजन और जैव ईंधन के उत्पादन में उनकी क्षमता को समझा जा सके। उनकी लचीलापन और बहुमुखी प्रतिभा, अंतरिक्ष में लंबी अवधि के मिशनों में मानव जीवन को सहारा देने में उपयोगी हो सकती है। साइनोबैक्टीरिया का अपकेंद्रण करते हुए, शुक्ला ने इन प्रकाश संश्लेषक सूक्ष्मजीवों की दो प्रजातियों की तुलना की, जिसका उद्देश्य यह समझना था कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण उनके विकास, कोशिकीय व्यवहार और जैव रासायनिक गतिविधि को कैसे प्रभावित करता है।
उन्होंने पानी से संबंधित एक शून्य-गुरुत्वाकर्षण प्रयोग का प्रदर्शन किया है, जिससे यह दर्शाया जा सके कि सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण किस प्रकार रोजमर्रा के भौतिकी को बदल देता है।यह प्रयोग, एक्सिओम स्पेस के आउटरीच और वैज्ञानिक मिशन का हिस्सा था, जिसने अंतरिक्ष में पानी के अनोखे व्यवहार पर प्रकाश डाला।
स्प्राउट्स परियोजना: सूक्ष्म गुरुत्व पौधों के अंकुरण और प्रारंभिक विकास को किस प्रकार प्रभावित करता है, इसका अध्ययन किया गया। अब मिशन की वापसी के बाद पृथ्वी पर बीजों की खेती की जाएगी, ताकि आनुवंशिक और पोषण संबंधी परिवर्तनों का विश्लेषण किया जा सके।
सूक्ष्म शैवाल परिनियोजन: भोजन, ऑक्सीजन उत्पादन और जैव ईंधन उत्पादन के लिए सूक्ष्म शैवाल की क्षमता की जाँच करना, जो भविष्य के दीर्घकालिक अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है।
एक्स-4 के चालक दल ने संज्ञानात्मक विज्ञान, अंतरिक्ष स्वास्थ्य और पदार्थ अनुसंधान के क्षेत्र में भी योगदान दिया है। अपने मिशन के दौरान उन्होंने पृथ्वी की 230 से ज़्यादा परिक्रमाएँ पूरी कीं और लगभग 1 करोड़ किलोमीटर की यात्रा की। चालक दल के सभी सदस्य स्वस्थ रहे हैं और उनके मिशन को अंतरिक्ष अन्वेषण में व्यावसायिक और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम बताया गया है।
आउटरीच गतिविधियाँ
आईएसएस पर अपने प्रवास के दौरान, शुक्ला ने आउटरीच गतिविधियों में भाग लिया, जिसमें कर्नाटक के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के छात्रों के साथ हैम रेडियो के माध्यम से बातचीत भी शामिल थी। उन्होंने आईएसएस पर जीवन के बारे में जानकारी साझा की, सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में जीवन की शारीरिक चुनौतियों, अंतरराष्ट्रीय टीम वर्क के उत्साह और अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के चालक दल के सदस्यों के बीच सौहार्द पर चर्चा की।
सांस्कृतिक रूप से, शुक्ला अपने साथी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ आम रस, गाजर का हलवा और मूँग दाल का हलवा जैसे पारंपरिक भारतीय खाद्य पदार्थ साझा करके अंतरिक्ष में भारत के स्वाद लाए, जिन्होंने अनोखे स्वादों की सराहना की। उन्होंने राष्ट्रीयताओं की विविधता और साझा मिशन के कारण जहाज पर मौजूद माहौल को बहुत रोमांचक बताया। उत्साह के बावजूद, उन्होंने अंतरिक्ष में आराम करने की कठिनाई को नोट किया, उन्होंने कहा कि उनके आस-पास लगातार उत्तेजना के कारण नींद सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है।
गगनयान मिशन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को कहा कि भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला का अंतरिक्ष मिशन, गगनयान कार्यक्रम के तहत भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष यान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
इसरो के अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र के निदेशक नीलेश एम देसाई ने कहा, यह शुभांशुके लिए एक अविस्मरणीय अनुभव रहा है। उन्होंने अंतरिक्ष शटल और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर कई प्रयोग किए। अंतरिक्ष और सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करने के बाद, उन्होंने कई वैज्ञानिक परीक्षण किए। यह मिशन हमारे लिए सीखने का एक बड़ा अवसर रहा है। इसरो ने यह मिशन इसलिए शुरू किया ताकि वह अनुभव प्राप्त कर सके जो हमारे गगनयान कार्यक्रम में काम आएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)