आपका अखबार ब्यूरो।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ‘भगवद्गीता’ और भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ को ‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ के इंटरनेशनल रजिस्टर में सूचीबद्ध किए जाने पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है। इसका उद्घाटन सत्र 30 जुलाई, बुधवार को अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित किया गया। संगोष्ठी का विषय है- “कालातीत ग्रंथ और सार्वभौमिक शिक्षाएं : भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड के अंतरराष्ट्रीय रजिस्टर में अंकन”। इस अवसर पर केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रह। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए न्यास के अध्यक्ष ‘पद्म भूषण’ राम बहादुर राय ने किया। सम्मानित अतिथियों के रूप में जी.आई.ई.ओ. गीता और गीता ज्ञान संस्थानम, कुरुक्षेत्र के संस्थापक स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज और पद्म विभूषण एवं पूर्व राज्यसभा सांसद डॉ. सोनल मानसिंह भी शामिल हुईं। आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने उद्घाटन भाषण दिया और यूनेस्को मेमोरी ऑफ वर्ल्ड के नोडल केंद्र के प्रभारी एवं आईजीएनसीए के डीन (प्रशासन) व कला निधि के विभागाध्यक्ष प्रो. रमेश चन्द्र गौड़ ने स्वागत भाषण और अतिथियों का परिचय दिया। गौरतलब है कि दोनों ग्रंथों- ‘भगवद्गीता’ और भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ को ‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ के इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल कराने में आईजीएनसीए की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। इस अवसर पर एक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया और एक पुस्तक ‘फ्रॉम मैन्युस्क्रिप्ट टू मेमोरी’ का लोकार्पण भी किया गया।
इस अवसर गजेंद्र सिंह शेखावत ने अपने सम्बोधन में कहा, “निश्चित रूप से गीता का ज्ञान 5,000 वर्ष से ज्यादा पहले का और भरतमुनि का नाट्यशास्त्र 2,500 पहले का ग्रंथ है। जो देश अपने आपको दुनिया का महारथी होने की बात करते हैं और ट्वीट लिखकर दुनिया का प्रणेता होने की बात करते हैं, वो शायद अस्तित्व में नहीं थे। लेकिन उस समय भी भारत में परफॉर्मिंग आर्ट को लेकर नाट्यशास्त्र में इतना विस्तार से, एक-एक बारीकी के साथ लिखा गया। कल्पना करके देखिए, उस समय हमारी संस्कृति कितने उत्कर्ष पर थी। आज यह सब जानना बहुत आवश्यक है। गीता का ज्ञान ‘सर्वभूत’ यानी हर प्राणी के लिए है। गीता के ज्ञान को विश्व ने मान्यता दी है, तो वह निश्चित रूप से विश्व के लिए उपयोगी होगा। मैं ये मानता हूं कि हमारे लिए वर्ल्ड मेमोरी में दर्ज होना इसलिए और भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि शायद दुर्भाग्य से गुलामी की मानसिकता के कारण हमने स्वीकार कर लिया कि जो पश्चिम से आता है, वो श्रेष्ठ है। पश्चिम जिसको मान्यता देता है, वही श्रेष्ठ है। पश्चिम ने जो इसको मान्यता दी है, तो मैं ये मानता हूं कि ये जो वर्तमान पीढ़ी है, जो अंग्रेजों के कुत्सित षडयंत्र के चलते, गुलामी के उस दंश के चलते अपनी जड़ों से कट गई है, तो पश्चिम ने अगर मान्यता दे दी है, तो शायद ये पीढ़ी अपनी विरासत को सम्मान के साथ देखेगी।” उन्होंने कहा कि गीता 5,000 वर्ष से प्रसंगिक है और आगे भी हज़ारों वर्षों तक प्रासंगिक रहेगी। उन्होंने इस उपलब्धि के लिए आईजीएनसीए और भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट (बोरी) को बधाई भी दी।
स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा, “आज डिजिटल का समय है। अगर डिजिटल (DIGITAL) से शुरू के दो अक्षर डी और आई हटा दें तथा अंतिम अक्षर एल हटा दें तो यह गीता हो जाता है। जब दिल में गीता होती है, तो डिजिटल भी सही दिशा में चलने लगता है। गीता मूल्यों की शिक्षा देती है। इसमें पारिवारिक मूल्य भी हैं और सामाजिक मूल्य भी। आज के युग में, जब तकनीक तेजी से बढ़ रही है, गीता की भावना हमें विवेकपूर्ण निर्णय और समरसता का मार्ग दिखाती है।”
डॉ. सोनल मानसिंह ने कहा कि दोनों ग्रंथों- भदवद्गीता और नाट्यशास्त्र को ‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ के इंटरनेशनल रजिस्टर में शामिल कर स्वयं अपना ही सम्मान किया है। दोनों ग्रंथों में समानता की बात करते हुए उन्होंने कहा कि दोनों ही कर्मयोग के सिद्धांत को प्रतिपादित करते हैं। जहां गीता ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ के माध्यम से निष्काम कर्मयोग की शिक्षा देती है, वहीं नाट्यशास्त्र कलाकार को अपने सर्वोत्तम प्रदर्शन के लिए प्रेरित करता है और कहता है कि उसका फल दर्शकों की अनुभूति में निहित है, तुम बस अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दो। दरअसल, दोनों ही ग्रंथ कर्म को साधना मानते हैं, जहां श्रीकृष्ण का उपदेश और नाट्य की आत्मा, दोनों योग और समर्पण में परिणत होते हैं।
रामबहादुर राय ने कहा कि श्रीमद्भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र का यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में शामिल होना मात्र एक सम्मानजनक घटना नहीं, बल्कि एक व्यापक सांस्कृतिक प्रक्रिया की शुभ शुरुआत है, जो वैश्विक समाज को धर्म, लोकतंत्र और आत्मबोध की ओर ले जाने की क्षमता रखती है। यह उस परंपरा का पुनर्स्मरण है, जहां श्रीकृष्ण संवाद के माध्यम से मूढ़ता को मिटाते हैं और भरतमुनि कला को साधना का स्वरूप प्रदान करते हैं।
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा, गीता को प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं है। लेकिन जब इसे ‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ के इंटरनेशनल रजिस्टर में सूचीबद्ध किया जाता है, तो इसकी महत्ता पूरे विश्व को पता चलता है। इसी तरह, नाट्यशास्त्र की भी वैश्विक महत्ता प्रमाणित होती है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ में नामांकन डोजियर आईजीएनसीए के विद्वानों ने बहुत परिश्रम से तैयार किया है। अगर आज कोई पांडुलिपि पढ़ पा रहे हैं, तो सैकड़ों वर्ष पहले किसी विद्वान ने उसे पूरा जी-जान लगाकर संरक्षित किया होगा। उसी तरह, आज जो काम हो रहा है, उसे दो सौ- तीन सौ वर्ष बाद लोग पढ़ेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि भारत सरकार एक और बेहद महत्त्वूर्ण मिशन शुरू किया है, जिसका नाम ‘ज्ञान भारतम्’ है।
इस अवसर पर यूनेस्को, पेरिस में भारत के एम्बेसडर और स्थायी प्रतिनिधि विशाल वी. शर्मा का वीडियो संदेश भी प्रसारित किया गया। उन्होंने ‘यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड’ के नेशनल रजिस्टर बनाने पर ज़ोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि अपनी विरासत का स्मरण करना चाहिए और उस पर निष्ठा से काम करना चाहिए।
प्रो. रमेश चंद्र गौड़ ने कहा कि यूनेस्को की ‘मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड इंटरनेशनल रजिस्टर’ में श्रीमद्भगवद्गीता और भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का अंकन केवल एक उत्सव का क्षण नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की सभ्यतागत ज्ञान परम्पराओं की ऐतिहासिक पुष्टि है। श्री रामबहादुर राय और डॉ. सच्चिदानंद जोशी के नेतृत्व में, आईजीएनसीए ने नोडल एजेंसी के रूप में इन नामांकनों की तैयारी और प्रस्तुति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो देश की दस्तावेज़ी धरोहर के संरक्षण के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। धन्यवाद ज्ञापन आईजीएनसीए के नेशनल मिशन ऑन कल्चरल मिशन विभाग के निदेशक डॉ. मयंक शेखर ने किया।
गौरतलब है कि यह संगोष्ठी दो आधारभूत भारतीय ग्रंथों- भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र को प्रतिष्ठित यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड अंतरराष्ट्रीय रजिस्टर में शामिल किए जाने के उपलक्ष्य में आयोजित की जा रही है, ताकि उनके वैश्विक महत्व और स्थायी प्रासंगिकता को रेखांकित किया जा सके।
संगोष्ठी का समापन सत्र 31 जुलाई 2025 को शाम जनपथ स्थित आईजीएनसीए के समवेत सभागार में सायं 5 बजे आयोजित किया जाएगा। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री विवेक अग्रवाल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे, जबकि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वाराखेड़ी विशिष्ट अतिथि होंगे। सत्र की अध्यक्षता डॉ. सच्चिदानंद जोशी करेंगे और प्रो. रमेश चन्द्र गौड़ स्वागत भाषण और विचार-विमर्श का संक्षिप्त सारांश प्रस्तुत करेंगे। पूरे दिन में कई सत्र आयोजित किए जाएंगे। इस संगोष्ठी के माध्यम से आईजीएनसीए का उद्देश्य विद्वानों, सांस्कृतिक विचारकों और विरासत विशेषज्ञों को एक साथ लाना है, ताकि वे भगवद्गीता और नाट्यशास्त्र में निहित कालातीत ज्ञान पर विचार कर सकें और समकालीन वैश्विक संवाद में जीवंत ग्रंथों के रूप में उनकी प्रासंगिकता की पुनः पुष्टि कर सकें।