दादर नगर हवेली क्षेत्र पुर्तगीज सत्ता से मुक्त हुए।

रमेश शर्मा।

15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी सत्ता से मुक्त हो गया था लेकिन दादर नगर हवेली और गोवा क्षेत्र में तिरंगा नहीं फहराया जा सका। यहाँ पुर्तगालियों के हाथ में सत्ता थी। इसलिए अंग्रेजों द्वारा किया गया सत्ता हस्तांतरण यहाँ लागू न हो सका। इसकी स्वतंत्रता के लिये नये सिरे से संघर्ष हुआ। अनेक बलिदान हुये। असंख्य सेनानियों ने जेल की प्रताड़ना सही तब दादर नगर हवेली क्षेत्र को पुर्तगीज सत्ता से मुक्ति मिली। यह संघर्ष गोमांतक दल ने आरंभ किया जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ और हिन्दु महासभा ने राष्ट्रव्यापी बनाया।
1946 में केबिनेट मिशन के भारत आने के साथ ही भारत में अंग्रेजों से मुक्ति का वातावरण बनते लगा था। इसका प्रभाव कोंकण क्षेत्र पर भी पड़ा और पुर्तगाली सत्ता से मुक्ति का ज्वार उठने लगा था। 1947 में “आजाद गोमांतक दल” अस्तित्व में आया। विश्वनाथ नारायण लवांडे इसके अध्यक्ष बने। संस्थापक सदस्यों में मोहन रानाडे, विश्वनाथ लवांडे, नारायण हरि नाइक, दत्तात्रय देशपांडे और प्रभाकर सिनारी थे। सभी सदस्यों ने काँग्रेस, हिन्दु महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियों से संपर्क किया। जिन प्रमुख विभूतियों से उनकी भेंट हुई उनमें स्वातंत्र्यवीर सावरकर और सरसंघचालक गोलवलकरजी भी थे। संघ ने मुक्ति अभियान केलिये मुम्बई और नासिक में दो कार्यालय स्थापित किये गये और कुछ प्रचारकों को इस आँदोलन में सहभागिता का दायित्व सौंपा। दादर नगर हवेली क्षेत्र में मुक्ति आँदोलन आरंभ होते ही पुर्तगीज सरकार ने दमन तेज कर दिया था। गिरफ्तारियों और पुलिस द्वारा प्रताड़ित करने का क्रम आरंभ हो गया था। लेकिन गिरफ्तारियों और दमन के बावजूद आँदोलन निरंतर रहा। संगठन से जुड़े क्राँतिकारियों ने सरकारी कार्यालयों, पुलिस चौकियों, सरकारी कोषागारों आदि पर धावा बोलना आरंभ किया। दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिन्दु महासभा के कार्यकर्ताओं ने देश के अन्य भागों में भी जाग्रति अभियान आरंभ किया। इससे आसपास के क्षेत्रों  से भी आँदोलनकारी दादर नगर हवेली क्षेत्र में आने लगे। लेकिन गाँधी जी की हत्या के बाद देश में बनी परिस्थिति से इस क्षेत्र के मुक्ति आँदोलन में गतिरोध आया।

समय के साथ परिस्थिति बदली। संघ गतिशील हुआ और 1950 से आँदोलन ने पुनः गति पकड़ी। सभा सम्मेलन, संगोष्ठियों और प्रभातफेरियों का क्रम आरंभ हो गया। महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी सभाएँ होने लगीं। इस आँदोलन को दबाने केलिये पुर्तगाल सरकार ने 1951 में अपने संविधान में एक संशोधन करके दादरा नगर हवेली से लेकर गोवा तक के अपने पूरे क्षेत्र को अपना “विदेशी प्रांत” घोषित कर दिया। अब तक यह क्षेत्र “औपनिवेशिक अधिकार” के रूप में था। नये संशोधन का आशय इस क्षेत्र में आँदोलन का दमन करने केलिये एक स्वतंत्र सेना गठित करना था। इसके साथ स्थानीय प्रशासन नीति विषयक कुछ स्वतंत्र निर्णय भी ले सकता था। इससे पहले नीति विषयक निर्णयों केलिये पुर्तगाल सरकार से अनुमति लेना पड़ती थी। इस निर्णय से यह स्पष्ट है कि पुर्तगीज का इरादा यह क्षेत्र छोड़ने का कतई नहीं था। पुर्तगाल सरकार के इस निर्णय की व्यापक प्रतिक्रिया हुई। आँदोलन तेज हो गया। आँदोलन में भाग लेने केलिये भारत के विभिन्न स्थानों से कार्यकर्ता दादरा नगर हवेली क्षेत्र आने लगे। इसके साथ देश के विभिन्न स्थानों में भी प्रदर्शन आरंभ हुये। दिल्ली में भी सभा हुई। लेकिन भारत सरकार तटस्थ रही। प्रदर्शन का नेतृत्व तो आजाद गोमांतक दल के हाथ में था लेकिन समन्वय का पूरा काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने किया था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपनी कार्यशैली है। अपनी स्थापना के साथ संघ की यह नीति रही है कि  स्वयंसेवक आँदोलनों में भाग तो लेते हैं पर संघ का नाम या बैनर का उपयोग नहीं करते। स्वतंत्रता के पूर्व देशभर में हुये विभिन्न आँदोलनों में यही नीति रही । संघ के संस्थापक डाॅक्टर हेडगेवार स्वतंत्रता आँदोलन में जेल गये लेकिन संघ के बैनर से नहीं अपितु काँग्रेस के बैनर से गये थे। उनके आव्हान और उनका अनुशरण करते हुये स्वयंसेवकों ने भी बढ़ चढ़ कर स्वतंत्रता आँदोलन में भाग लिया। लेकिन अपने बैनर से नहीं। संघ की यही नीति दादर नगर हवेली मुक्ति आँदोलन में भी रही।

1951 में एक नया राजनैतिक दल भारतीय जनसंघ अस्तित्व में आया। जनसंघ ने भी अपनी स्थापना के पहले दिन से दादर नगर हवेली और गोवा की मुक्ति का संकल्प लिया। और जनसंघ के कार्यकर्ता भी दादर नगर हवेली आँदोलन से जुड़ गये। इसके बाद देशभर में होने वाले प्रदर्शनों में तेजी आई। इसका प्रभाव भारत सरकार पर भी पड़ा। जनसंघ ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु से सेना भेजने की माँग की। भारत सरकार सेना भेजने केलिये तो तैयार नहीं हुई लेकिन पुर्तगाल सरकार से बातचीत शुरु की। पुर्तगीज सरकार ने भारतीय क्षेत्र को छोड़ने से साफ इंकार कर दिया। तब भारत सरकार ने लिस्वन में अपना दूतावास बंद कर दिया। पुर्तगाल में भारतीय दूतावास बंद होने से कार्यकर्ताओं में उत्साह आ गया एवं आँदोलन और तेज हो गया।

1953 से दादरा नगर हवेली से लेकर गोवा तक की पूरे क्षेत्र को पुर्तगीज सत्ता से मुक्त कराने का निर्णायक संघर्ष  आरंभ हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ और हिन्दु महासभा के कार्यकर्ताओं ने देशभर में बैठकें कीं और सभाएँ करके वातावरण बनाया। इन सभाओं में दादरा नगर हवेली जाकर आँदोलन में भाग लेने का भी आव्हान हुआ और स्थानीय स्तर पर ज्ञापन सौंपकर भारत सरकार से सेना भेजने का आग्रह भी किया गया।

अंततः निर्णायक आँदोलन और मुक्त हुआ दादर नगर हवेली

 गोमांतक दल के बैनर मुक्ति केलिये निर्णायक आँदोलन की रणनीति बनी। कार्यकर्ताओं के समन्वय का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों ने संभाला जिसमें भारतीय जनसंघ, हिन्दू महासभा भी सहभागी बने।संघ की ओर से बाबाराव भिड़े व विनायक राव आप्टे ने महाराष्ट्र, विधर्व, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि विभिन्न स्थानों में संपर्क करके जत्थे तैयार किये। इसके लिये शिवहरि बाबा साहब पुरन्दरे, संगीतकार सुधीर फड़के, खेलकूद प्रसारक राजाभाऊ वाकणकर, शब्दकोश रचयिता विश्वनाथ नरवणे, नाना काजरेकर, श्रीकृष्ण भिड़े, मेजर प्रभाकर कुलकर्णी, माधव जोशी,  श्रीधर गुप्ते जैसे युवा क्राँतिकारी सामने आये। क्राँतिकारी युवाओं की इस टोलियाँ तैयार हुईं। स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर जी ने आँदोलन में धन संग्रह के लिये पुणे के हीरालाल मैदान में एक बड़े संगीत समागम का आयोजन किया। इसके अतिरिक्त आँदोलन में भाग लेने केलिये प्रत्येक कार्यकर्ता स्वयं अपने व्यय पर पुणे पहुँचे। कोई नहीं जानता था कि घर कब लौटेंगे। सब के मन में माँ भारती की सेवा केलिये दादर नगर हवेली क्षेत्र को पुर्तगीज सत्ता से मुक्त कराना था।
दादरा नगर हवेली की मुक्ति केलिये घरों से निकले इन युवाओं का एकत्रीकरण पुणे में हुआ। यह जून 1954 के द्वितीय सप्ताह की बात है। विचार विमर्श के बाद तीन टोलियाँ बनीं। एक समूह 22 जुलाई 1954 को दादरा नगर हवेली पहुँचा। समूह ने सीधा पुलिस चौकी पर धावा बोला। आमने सामने गोलियाँ चलीं इस हमले में वहाँ तैनात पुर्तगीज पुलिस अधिकारी अनिसेतो रोसारियो मारा गया। चार क्राँतिकारी भी घायल हुये। आगे चलकर इनमें दो का बलिदान हो गया। आँदोलनकारी युवाओं ने पुलिस चौकी पर अधिकार करके भारतीय तिरंगा लहरा दिया। 28 जुलाई को नारोली पुलिस चौकी पर धावा बोला गया। उस समय चौकी में केवल तीन सिपाही थे। अतएव सरलता से अधिकार हो गया। 29 जुलाई को स्वतंत्र नारौली ग्राम पंचायत का गठन करके पुर्तगीज मुक्त स्वतंत्र व्यवस्था संचालन आरंभ हुआ। और तीसरा समूह सिलवासा रवाना हुआ । यह समूह 31 जुलाई 1954 को सिलवासा पहुँचा। प्रकृति भी मानों युवाओं के संकल्प की परीक्षा ले रही थी। मूसलाधार वर्षा आरंभ हो गई। लेकिन किसी नौजवान का उत्साह कम न हुआ। उन्होंने दादरा नगर हवेली की राजधानी सिलवासा की ओर प्रस्थान किया। इस समूह की संख्या दौ सौ से ऊपर थी। आप्टे जी ने इस समूह का नेतृत्व वाकणकर जी को सौंपा और प्रस्थान करने का आदेश दे दिया। आदेश मिलते ही सब अपने लक्ष्य की ओर चल दिये। समूह की आंतरिक व्यवस्था में गट बनाये गये थे । विभिन्न गटनायकों में विष्णु भोपले, धनाजी बुरुंगुले, पिलाजी जाधव, मनोहर निरगुड़े, शान्ताराम वैद्य, प्रभाकर सिनारी, बालकोबा साने, नाना सोमण, गोविन्द मालेश, वसंत प्रसाद, वासुदेव भिड़े आदि प्रमुख थे। यह समूह पूरी तैयारी और संकल्प के साथ रवाना हुआ था। किस गट को कहाँ तक जाना है यह सब सुनिश्चित था। राजाभाऊ वाकणकर, सुधीर फड़के, बाबा साहब पुरन्दरे, विश्वनाथ नरवणे, नाना काजरेकर आदि प्रमुख सेनानियों ने कयी दिनों से इस क्षेत्र में डेरा डाला हुआ था। ये सभी एक स्थान पर नहीं रुके थे। सभी अलग अलग कार्यकर्ताओं के घरों पर ठहरे थे। इस योजना के दो लाभ हुये। एक तो पूरे क्षेत्र से परिचित हो गये और उनका उस क्षेत्र निवासियों से भी अच्छा परिचय हो गया । इस परिचय का लाभ पूरे आँदोलन में मिला। एक अगस्त 1954 को अलग अलग समूहों में सभी आँदोलन कारी सिलवासा पहुँच गये थे। यहाँ पुर्तगीज कप्तान फिदाल्गो तैनात था उसकी कमान में डेड़ सौ सैनिक थे। आँदोलन कारियों को लगभग सभी स्थानीय नागरिकों का सहयोग था। कुछ सैनिकों का सद्भाव भी आँदोलन कारियों के साथ था। योजनानुसार दो अगस्त को धावा बोल दिया गया। पुलिस ने पहले तो गोलियाँ चलाई। कुछ क्रान्तिकारियो के पास पिस्तौले थीं। गोली का जबाव गोली से दिया गया। भीड़ देखकर फिदाल्गो भाग गया। कप्तान के भागने से सैनिकों का भी मनोबल टूटा और सभी ने समर्पण कर दिया। दोपहर तक दादरा नगर हवेली क्षेत्र की राजधानी सिलवासा पर आँदोलन कारियों का अधिकार हो गया और पुर्तगीज झंडा उतारकर तिरंगा फहरा दिया गया। इस प्रकार 2 अगस्त दादर नगर हवेली क्षेत्र का मुक्ति दिवस बना। कप्तान की तलाश हुई वह 11 अगस्त को मिला। उसे पकड़ कर पुर्तगाल भेज दिया गया। 15 अगस्त को यहाँ भी स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय संबंधो के चलते भारत सरकार ने तटस्थता बरती। तब आजाद गोमांतक दल ने स्थानीय स्तर पर दो पंचायतों का गठन किया गया। सिलवासा क्षेत्र की कमान निर्मलकर जी ने संभाली और दादर नगर हवेली क्षेत्र की कमान जयंतिभाई देसाई ने संभाली। 1961 तक यह क्षेत्र स्थानीय शासन द्वारा ही संचालित हुआ। अंत में गोवा मुक्ति के बाद भारत सरकार ने 1961 में संविधान में दसवाँ संशोधन करके इस क्षेत्र को भारतीय गणतंत्र का अंग घोषित कर दिया।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)