आपका अखबार ब्यूरो।

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने मंगलवार, 12 अगस्त 2025 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू कर दी। उन्होंने 146 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है, जो न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करेगी।

अध्यक्ष बिड़ला ने लोकसभा में जानकारी दी कि यह समिति यथाशीघ्र अपनी रिपोर्ट सौंपेगी और रिपोर्ट मिलने तक हटाने के प्रस्ताव पर कोई अंतिम निर्णय नहीं होगा। उन्होंने बताया कि उन्हें 21 जुलाई को 146 सांसदों से यह प्रस्ताव प्राप्त हुआ था, जिनमें पूर्व कानून मंत्री और भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद तथा विपक्ष के नेता राहुल गांधी भी शामिल हैं।

ओम बिड़ला ने कहा कि न्यायपालिका में आम जनता का भरोसा अटूट चरित्र, वित्तीय और बौद्धिक ईमानदारी पर आधारित होता है। वर्तमान मामले से जुड़े तथ्य भ्रष्टाचार की ओर संकेत करते हैं और ये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत कार्रवाई योग्य हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस मुद्दे पर संसद को एक स्वर में बोलना चाहिए और देश के प्रत्येक नागरिक को यह स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि भ्रष्टाचार के प्रति ‘जीरो टॉलरेंस’ ही हमारी नीति है।

लोकसभा अध्यक्ष ने बताया कि न्यायमूर्ति वर्मा को पद से हटाने के लिए जजेस (इंक्वायरी) एक्ट, 1968 की धारा 3(2) के तहत तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की गई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरविंद कुमार, मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मनींद्र मोहन श्रीवास्तव और कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बी. वी. आचार्य शामिल हैं।

इससे पहले, तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों की ‘इन-हाउस जांच’ शुरू की थी और मार्च 2025 में तीन सदस्यीय समिति गठित की थी। समिति की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद सीजेआई खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा से इस्तीफा देने या महाभियोग की कार्यवाही का सामना करने को कहा था।

हालांकि, न्यायमूर्ति वर्मा ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया। इसके बाद सीजेआई खन्ना ने रिपोर्ट और उस पर न्यायमूर्ति वर्मा की प्रतिक्रिया राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी, ताकि उनके पद से हटाने की संवैधानिक प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सके।

उधर, न्यायमूर्ति वर्मा ने सीजेआई की सिफारिश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी। इस तरह, अब उनके खिलाफ औपचारिक महाभियोग की प्रक्रिया संसद में शुरू होने की राह पर है।

गौरतलब है कि 14 मार्च को न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास पर जले हुए नोटों की गड्डियां मिलने के बाद उनको दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भेज दिया गया था। इसके बाद, सर्वोच्च न्यायालय की आंतरिक जांच में न्यायमूर्ति वर्मा को दोषी ठहराया गया था।