आपका अखबार ब्यूरो।
धम्म के सार को संरक्षित करने और युवाओं को उसकी संवाहक शक्ति के रूप में सशक्त बनाने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (आईबीसी) आगामी 22 अगस्त को युवा बौद्ध विद्वानों का तीसरा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (आईसीवाईबीएस) आयोजित करने जा रहा है। यह सम्मेलन केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय तथा डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र के सहयोग से नई दिल्ली स्थित डॉ. अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र के नालंदा हॉल में सुबह 9:30 बजे से शाम 4:30 बजे तक चलेगा। सम्मेलन के मुख्य अतिथि होंगे गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश के कुलपति प्रो. राणा प्रताप सिंह, जबकि मुख्य भाषण प्रख्यात बौद्ध इतिहासकार प्रो. के.टी.एस. सराओ देंगे।
पिछले दो वर्षों में आईसीवाईबीएस ने जीवंत और महत्त्वपूर्ण विषयों पर चर्चा को मंच प्रदान किया है। 2023 में ‘बौद्ध तीर्थयात्रा’ पर विचार-विमर्श हुआ, वहीं 2024 में ‘शिक्षा, अनुसंधान, स्वास्थ्य सेवा और कल्याण में बुद्ध धम्म’ पर विशेष ज़ोर दिया गया। इस वर्ष का विषय है-  ‘21वीं सदी में बुद्ध धम्म में ज्ञान संचार’, जिसके अंतर्गत ज्ञान के आदान-प्रदान और धम्म के प्रचार-प्रसार के नए आयामों पर चर्चा होगी।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनेक अवसरों पर भारत को ‘धम्म सेतु’ अर्थात् एक ऐसा आध्यात्मिक पुल बताया है, जो न केवल बौद्ध-बहुल देशों, बल्कि पूरी दुनिया को जोड़ता है। भारत ने वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन, एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन और पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने जैसे कदमों के माध्यम से धम्म के संरक्षण और प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री का पंचामृत सिद्धांत — सम्मान, संवाद, समृद्धि, सुरक्षा तथा संस्कृति एवं सभ्यता — में निहित धम्म-आधारित सद्भाव इस दिशा में भारत की सोच को मजबूत करता है।

इस वर्ष का सम्मेलन चार मुख्य विषयों पर केंद्रित होगा —

1. बुद्ध धम्म के प्रसार में अशोक की भूमिका
मौर्य सम्राट अशोक ने करुणा, अहिंसा और सामाजिक सौहार्द को आधार बनाकर समावेशिता का संदेश दिया। उनके शिलालेख, जो पूरे भारत में फैले हैं, भावी पीढ़ियों को धम्म की राह दिखाने का प्रयास थे। इस सत्र में श्रीलंका, हेलेनिस्टिक क्षेत्रों और मध्य एशिया तक फैले उनके प्रचार कार्य और नीतियों का अध्ययन किया जाएगा।
2. गुरु-शिष्य परंपरा: ज्ञान हस्तांतरण के मॉडल
भारतीय परंपरा में गुरु-शिष्य संबंध को ज्ञान के संवहन की नींव माना गया है। बौद्ध धम्म में गुरु न केवल शिक्षाओं की व्याख्या करते हैं, बल्कि अपने आचरण और जीवनशैली में उन्हें जीते भी हैं। शिष्य इन मूल्यों को आत्मसात कर अगली पीढ़ियों तक पहुंचाते हैं। इस सत्र में पारंपरिक ज्ञान हस्तांतरण की इस प्रक्रिया की गहराई से पड़ताल होगी।
3. डिजिटल युग में लैंगिक और पहुंच संबंधी चुनौतियां
आज का बौद्ध धर्म आधुनिक तकनीक को अपनाकर अपनी पहुंच बढ़ा रहा है। युवा पीढ़ी डिजिटल नवाचारों के माध्यम से धम्म से जुड़ रही है, लेकिन डिजिटल माध्यम में लैंगिक असमानता चिंता का विषय है। भारत में केवल 30 प्रतिशत महिलाएं इंटरनेट का उपयोग करती हैं, जबकि पुरुषों में यह अनुपात 57 प्रतिशत है। इस अंतर को पाटने और कृत्रिम बुद्धिमता (एआई), भाषा-समावेशी संसाधन, मोबाइल माइंडफुलनेस ऐप्स, वर्चुअल रिट्रीट जैसे साधनों से धम्म की शिक्षाओं को संरक्षित करने पर चर्चा होगी।
4. बौद्ध शैक्षणिक संस्थान और संघ: भविष्य के संरक्षक
समकालीन आवश्यकताओं के अनुरूप बौद्ध शिक्षाओं को सुलभ और प्रासंगिक बनाए रखने में शैक्षणिक व मठीय संस्थानों की भूमिका अहम है। यह सत्र समुदाय-आधारित शिक्षा और संरक्षण के भविष्य के मॉडल पर केंद्रित होगा।
सम्मेलन में भारत के विभिन्न हिस्सों से आने वाले युवा शोधकर्ता और विद्वान अपने शोधपत्र प्रस्तुत करेंगे। साथ ही वियतनाम, रूस, कंबोडिया और म्यांमार के विद्वान भी भाग लेंगे, जो वर्तमान में भारत में रहकर बौद्ध अध्ययन कर रहे हैं।
तीसरा आईसीवाईबीएस एक ऐसा मंच बनने जा रहा है, जहां बौद्ध धम्म के शाश्वत मूल्यों को आधुनिक संदर्भों में जोड़ते हुए युवाओं को धम्म के भावी संरक्षक के रूप में तैयार किया जाएगा। यह सम्मेलन अशोक की विरासत, गुरु-शिष्य परंपरा के ज्ञान, डिजिटल युग में समावेशिता की आवश्यकता और शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका को साथ लेकर 21वीं सदी और आगे के समय में बौद्ध ज्ञान को जीवंत और सुलभ बनाए रखने की दिशा में एक ठोस पहल सिद्ध होगा।