आशीष कुमार ‘अंशु’।
गोदी मीडिया क्या है? गूगल पर जाइए तो वह विकिपीडिया के माध्यम से जो जानकारी देता है, उसके अनुसार गोदी मीडिया शब्द अनुभवी पत्रकार श्री रवीश कुमार ने गढ़ा और लोकप्रिय किया है। वो लम्बे समय एनडीटीवी के स्टार एंकर रहे और अब यूट्यूब पर अपना चैनल चलाते हैं। उनके और उनके जैसे अन्य सेक्युलर मीडिया के ध्वाहवाहकों की नजर में गोदी मीडिया का मतलब है सरकार की गोद में बैठा मीडिया। वह मीडिया, जो उनके जैसे तमाम स्वनामधन्य प्रिंट, टीवी या सोशल मीडिया की तरह राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी का अंध विरोध नहीं करता, वह गोदी मीडिया है। जिसने 2014 से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सरकार का खुलकर समर्थन किया है। मोदी विरोध और सनातन विरोध के मॉडल पर काम कर रहे तथाकथित सेक्युलर मीडिया के प्रवर्तकों की मानें तो ‘गोदी मीडिया’ 2014 से पहले नहीं था। यह शब्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करने के लिए ही प्रचलन में लाया गया है। वे इसे “सत्तारूढ़ दल यानी भाजपा के मुखपत्र” के रूप में प्रचारित करते हैं। सवाल यह भी है कि गोदी मीडिया या गोदी चैनल की शुरुआत कहाँ से होती है। क्या 2014 यानी मोदी के राष्ट्रीय सत्ता में आगमन के पहले गोदी मीडिया अस्तित्व में नहीं था।
भारतीय मीडिया के इतिहास में एनडीटीवी को अक्सर ‘पहले गोदी चैनल’ के रूप में देखा जाता है, जिसने विशेष रूप से यूपीए शासन (2004-2014) के दौरान कांग्रेस पार्टी के प्रचार तंत्र की तरह काम किया। 1988 में प्रणय रॉय और राधिका रॉय द्वारा स्थापित, यह चैनल शुरू में दूरदर्शन के लिए सामग्री उत्पादन करता था, लेकिन 2003 में स्वतंत्र ब्रॉडकास्टर बनने के बाद इसने कांग्रेस की नीतियों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आलोचकों का दावा है कि एनडीटीवी ने कांग्रेस की ‘सेक्युलर’ छवि को ग्लैमराइज किया, विपक्षी दलों, खासकर भाजपा, को निशाना बनाया और पार्टी लाइन को मजबूत किया।
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कवरेज और पक्षपात के उदाहरण

2004 का लोकसभा चुनाव: एनडीटीवी ने यूपीए की जीत को ‘लोकतंत्र की विजय’ के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि भाजपा की हार को ‘सांप्रदायिकता की असफलता’ बताया। यह कवरेज कांग्रेस के नैरेटिव को मजबूत करने का एक स्पष्ट उदाहरण माना जाता है।

2जी घोटाला (2010): इस घोटाले में एनडीटीवी ने जांच एजेंसियों पर हमला बोलकर कांग्रेस को बचाने की कोशिश की। यूपीए-2 के अन्य भ्रष्टाचार कांडों को भी चैनल ने न्यूनतम कवरेज दी, जिससे इसकी निष्पक्षता पर सवाल उठे।

26/11 आतंकी हमला (2008): एनडीटीवी के एंकरों, जैसे विपल मेहता और सोनाली भंसजी, ने कवरेज में पाकिस्तान पर फोकस रखकर कांग्रेस की ‘सॉफ्ट’ इमेज को बनाए रखने की कोशिश की। बरखा दत्त के ‘वी द पीपल’ जैसे कार्यक्रमों में विपक्ष को ‘अराजक’ ठहराया गया, जबकि रविश कुमार के ‘प्राइम टाइम’ ने यूपीए की नीतियों की खुलकर तारीफ की।

विशेष पहुंच और प्रभाव

एनडीटीवी को यूपीए सरकार में विशेष सुविधाएं प्राप्त थीं। एएनआई की स्मिता प्रकाश ने अपने एक पॉडकास्ट में खुलासा किया कि कैसे यूपीए सरकार में एनडीटीवी को विशेष तरह की सुविधाएं प्राप्त थीं। उनके संबंध में दूसरे पत्रकारों को पता होता था कि यह चैनल कांग्रेस पार्टी का लाडला चैनल है। जिससे एनडीटीवी की विशेष स्थिति स्पष्ट होती है।

प्रणॉय जेम्स राय का चैनल एनडीटीवी कांग्रेस पार्टी के लिए आईटी सेल की तरह काम करता था, यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए। जब सोनिया गांधी को लेकर यह तय हो गया कि वह प्रधानमंत्री नहीं बन सकती। उसके बाद हाथों में माइक लेकर प्रणॉय खुद जमीन पर उतर कर रिपोर्टिंग करते हुए दिखाई दिए थे। उन्होंने अपनी रिपोर्टिंग में सोनिया गांधी को त्याग की मूर्ति साबित करने की कोशिश की। उन दिनों गोदी के मीडिया के लिए सत्ता के विपक्ष में खड़ा होने वाला फॉर्मूला लागू नहीं हुआ था। लागू तो यह फार्मूला उस समय भी नहीं हुआ था, जब गांधी की हत्या हुई। हत्यारा गिरफ्तार हुआ लेकिन किसी ने सत्ता से यह नहीं पूछा कि देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति की सुरक्षा के लिए सरकार ने क्या इंतजाम किए थे? जबकि गांधी की हत्या की पहले कई बार कोशिश हो चुकी थी?

संजय बारू की किताब द एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर (2014) में उल्लेख है कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के युग में एनडीटीवी को विशेष पहुंच मिली थी, क्योंकि प्रणय रॉय को ‘विश्वसनीय’ माना जाता था। पत्रकार स्वपन दासगुप्ता ने एक साक्षात्कार में कहा कि सोनिया की वेलफेयर योजनाओं के लिए बजट सुनिश्चित करने में एनडीटीवी जैसे मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मार्गरेट अल्वा की आत्मकथा कौरेज एंड कमिटमेंट (2022) में भी सोनिया के मीडिया पर नियंत्रण का जिक्र है, जिसमें प्रणय रॉय को उनके ‘अंदरूनी सर्कल’ का हिस्सा बताया गया।

मनमोहन सिंह और प्रणय रॉय का विवाद

एनडीटीवी के एक पूर्व पत्रकार ने खुलासा किया कि एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रणय रॉय (जिन्हें कभी-कभी ‘जेम्स प्रणय रॉय’ कहा जाता था) को फोन पर डांट लगाई थी। इसके परिणामस्वरूप, एक पूरे शो को, जिसका प्रोमो पहले ही प्रसारित हो चुका था, रद्द करना पड़ा। यह घटना एनडीटीवी पर यूपीए सरकार के प्रभाव को दर्शाती है।
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प्रणय रॉय और सोनिया गांधी के संबंध

प्रणय रॉय के ईसाई होने की बात जाहिर है, जो सोनिया गांधी की ईसाई पृष्ठभूमि से मेल खाता था। आलोचकों का मानना है कि इस वजह से सोनिया ,रॉय पर अधिक भरोसा करती थीं। यह संबंध एनडीटीवी की कवरेज में कांग्रेस के प्रति पक्षपात का एक कारण माना जाता है।

‘गोदी एंकर’ की भूमिका

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एनडीटीवी ने कई ऐसे पत्रकार दिए, जिन्हें ‘गोदी एंकर’ कहा गया। रविश कुमार, बरखा दत्त जैसे एंकरों ने यूपीए के पक्ष में कवरेज को आकार दिया। ये पत्रकार उस समय ‘सेक्युलर वारियर’ के रूप में जाने जाते थे, जो कांग्रेस की नीतियों को बढ़ावा देते थे।

सीबीआई छापे और अडानी अधिग्रहण

2017 में एनडीटीवी पर सीबीआई छापे पड़े, जिन्हें चैनल ने ‘विच हंट’ करार दिया।  यह उस ‘गोदी’ युग का अंतिम अध्याय था। 2022 में अडानी समूह द्वारा एनडीटीवी के अधिग्रहण के बाद चैनल का स्वरूप बदल गया, लेकिन इसकी पुरानी ‘गोदी’ छवि आज भी चर्चा का विषय है।

एनडीटीवी को भारतीय मीडिया के इतिहास में ‘पहले गोदी चैनल’ के रूप में याद किया जाता है, जिसने यूपीए युग में कांग्रेस के प्रचार तंत्र की तरह काम किया। विशेष सुविधाओं, प्रभावशाली नेताओं के साथ निकटता और पक्षपातपूर्ण कवरेज ने इसकी छवि को विवादास्पद बनाया। हालांकि, आज इसका स्वामित्व और स्वरूप बदल चुका है, लेकिन इसकी ऐतिहासिक भूमिका भारतीय मीडिया के अध्ययन में एक महत्वपूर्ण अध्याय बनी हुई है।

(लेखक ‘मीडिया स्कैन के संस्थापक ट्रस्टी हैं)