जल्द ही लगवाएंगे इमरती और लड्डू की फैक्ट्री!
प्रदीप सिंह।
भारतीय राजनीति में हास्य का पुट लगातार कम होता जा रहा है और ऐसा लगता है कि नेताओं को हास्य शायद पसंद नहीं आता। लेकिन कहते हैं कि प्रकृति का एक नियम है। प्रकृति कहीं भी निर्वात या शून्य नहीं रहने देती। जब भी कोई जगह खाली होती है तो उसको भरने का कोई न कोई इंतजाम कर देती है। विज्ञान भी यही कहता है। खैर शून्य की थ्योरी पर जाने की जरूरत नहीं है। विज्ञान के विशेषज्ञ उसके बारे में ज्यादा बताएंगे। बात केवल राजनीति और सामाजिक जीवन की हो रही है। हमारे सामाजिक जीवन में भी हास्य कम होता जा रहा है।
अब सवाल यह है कि राजनीति में उस हास्य की कमी को पूरा कौन कर रहा है? इसके साथ ही एक और सवाल है कि देश में पिछले कुछ सालों से स्वदेशी की अलख जगाने का काम कौन कर रहा है? आपका तुरंत जवाब होगा- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। यह बिल्कुल गलत जवाब है। जो भी यह जवाब देगा या तो वह पक्का भाजपाई है या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक है। अगर ईमानदारी से इस बारे में सोचेंगे तो आपको वास्तविकता का पता चलेगा। क्योंकि स्वदेशी की अलख जगाने का काम अगर कोई इस देश में कर रहा है तो उसका नाम सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वदेशी की बातें तो करते हैं, लेकिन असल काम तो राहुल गांधी कर रहे हैं।
अब दीपावली के मौके पर ही देखिए राहुल गांधी ने क्या किया? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कुछ कर सकते हैं? प्रधानमंत्री तो आईएनएस विक्रांत पर नौसैनिकों के साथ दिवाली मनाने के लिए चले गए। मोदी जब से प्रधाानमंत्री बने हैं, वे हर बार सेना के जवानों के बीच में दीपावली मनाते हैं। राष्ट्र के बारे में सोचते हैं। संस्कृति के बारे में सोचते हैं। दीपावली हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्योहार है। मां लक्ष्मी की पूजा होती है। लेकिन राहुल गांधी ने पूजा करने का यह उपक्रम नहीं किया। शायद उन्होंने यह कभी नहीं किया। क्योकि कभी अगर किया होता तो उनके रणनीतिकारों या इमेज बनाने वालों ने कभी लक्ष्मी पूजन करते हुए राहुल गांधी की फोटो जरूर डाली होती।

पर ऐसा भी नहीं है कि राहुल कुछ नहीं करते हैं। इस दीपावली पर उन्होंने कमाल किया। दिल्ली के चांदनी चौक में आजादी के बहुत पहले से ही एक मशहूर मिठाई की दुकान है घंटेवाला। कहा जाता है कि इनकी मिठाइयां देसी घी में बनती हैं। बड़े-बड़े नेता, बड़े-बड़े लोग शादी समारोहो या घर में यहां से मिठाई मंगवाते हैं। तो राहुल गांधी ने इसी स्थल को चुना। कहा जाता है कि यह दुकान कभी उनके परिवार से जुड़ी रही है। घंटेवाला मिठाई की दुकान के मालिक ने बताया कि उनके नाना जवाहरलाल नेहरू यहां आते थे। अब यह भी एक गलत धारणा है। कैसे प्रचार से झूठ सच बन जाता है। सब जवाहरलाल नेहरू का संदर्भ आने पर उन्हें राहुल गांधी का नाना बताते हैं। जवाहरलाल नेहरू कैसे राहुल के नाना हो गए। जवाहरलाल नेहरू तो राजीव गांधी और संजय गांधी के नाना थे। राहुल गांधी के नाना तो इटली में हैं। ये मिथ्या धारणा तोड़ देनी या अपने मन में बदल लेनी चाहिए कि जवाहरलाल नेहरू राहुल गांधी के नाना थे। उनके नाना इटली के तानाशाह मुसोलिनी की पार्टी के सदस्य थे।
लेकिन यह सब अलग बात है। आज बात केवल दीपावली, मिठाई और घंटेवाला मिष्ठान भंडार की है। राहुल गांधी वहां इमरती छानने गए थे। यह जानने गए थे-इमरती कैसे बनती है? लड्डू कैसे बनता है? राहुल गांधी का इटली से बड़ा गहरा नाता है। उस बारे में भी एक कहावत है- जब रोम जल रहा था तो नीरो बंसी बजा रहा था। कुछ ऐसा ही हाल राहुल का भी है। बिहार में चुनाव चल रहा है और कांग्रेस पार्टी में आग लगी हुई है। कांग्रेस पार्टी के नेता एयरपोर्ट के बाहर पिट रहे हैं। महागठबंधन के उनके साथी तेजस्वी याादव पिछले 15 दिन से घर बैठे हुए थे कि जब तक मुझे मुख्यमंत्री के पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित नहीं किया जाएगा, प्रचार करने नहीं जाऊंगा। और कांग्रेस पार्टी को करना पड़ा। राहुल गांधी इतना नैतिक साहस नहीं जुटा पाए कि उस कार्यक्रम में आएं। बिहार में राहुल गांधी का बड़ा स्टेक लगा हुआ है। वोट चोरी की बात कहकर उन्होंने 16 दिन की यात्रा निकाली थी लेकिन आजकल वह वोट चोरी की बात नहीं कर रहे हैं। एसआईआर का मुद्दा नहीं उठा रहे हैं। वोट अधिकार यात्रा की भी बात नहीं कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि जैसे राहुल गांधी के लिए वो पिछली शताब्दी की बात हो। तो अब देखिए कि राहुल गांधी स्वदेशी को किस तरह से बढ़ावा दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो कभी इमरती और लड्डू की बात नहीं की। दूसरी ओर राहुल गांधी को देखिए। हरियाणा चुनाव में उन्होंने जलेबी की फैक्ट्री लगवाने की घोषणा कर दी थी।
इस तरह के विचार केवल विजनरी लोगों के मन में आ सकते हैं। अब जल्दी ही सुनने को मिल सकता है कि इमरती की फैक्ट्री लगेगी। राहुल गांधी स्वदेशीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा दे रहे हैं। एंटरप्रेन्योरशिप को बढ़ावा दे रहे हैं। आज तक भारत में किसी नेता ने ऐसा सोचा नहीं है। उनके तथाकथित नाना और वास्तव में उनके पिता के नाना जवाहरलाल नेहरू भी यह नहीं सोच पाए। उनकी दादी इंदिरा गांधी भी नहीं सोच पाईं। उनके पिता राजीव गांधी भी नहीं सोच पाए। राहुल गांधी को देखिए। कभी मोची के साथ बैठकर जूता बनाने लगते हैं तो कभी मोटरसाइकिल मैकेनिक के यहां जाकर मोटरसाइकिल रिपेयर करने लगते हैं। कुली बनकर बोझा भी उठाने लगते हैं। अब ऐसा नेता कहां मिलेगा? लोगों को सोचना चाहिए कि ऐसे नेता की उपेक्षा क्यों कर रहे हैं। अब ऐसे विजनरी नेता को इस देश ने पप्पू बना दिया है। और तो और उनकी पार्टी के लोग तक उन्हें पप्पू कहने लगे हैं। राहुल गांधी इसे अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझते हैं कि जो छवि बन गई है, उसको और मजबूत करें। उन्हें इस समय यह चिंता नहीं है कि दुनिया में क्या हो रहा है? वर्ल्ड ऑर्डर कैसे बदल रहा है? अंतरराष्ट्रीय आर्थिक स्थिति क्या है? जो टैरिफ वॉर चल रहा है, इसका क्या असर होगा? टैरिफ वॉर की बात कर दीजिए, युद्ध की बात कर कीजिए, उनके मुंह से दो शब्द निकलेंगे, दो नाम निकलेंगे अडानी और अंबानी।

इसके अलावा अर्थव्यवस्था के बारे में वह कुछ नहीं जानते। अगर जानते हैं तो डोनाल्ड ट्रंप से उनको पता चलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था मृत अर्थव्यवस्था है। और बड़े खुश होकर बताते हैं कि अरे आपको नहीं मालूम। सबको मालूम है। अब आप इस समझदारी पर अगर कुर्बान न हो जाएं तो फिर जीना व्यर्थ है। वे ऐसे गुणी, समझदार और जमीन से जुड़े नेता हैं जो धान रोपने चला जाता है। उसके लिए यह सब एडवेंचर है। जीवन में कभी देखा नहीं, कभी किया नहीं। तो उनको लगता है कि यह सब करना ही राजनीति है। समाज सेवा है। अब समाज सेवा शब्द उन्होंने शायद पढ़ा होगा या कुछ लोगों से सुना भी होगा। समाज सेवा का मतलब क्या होता है, यह जानते नहीं। वह इस अहंकार के साथ पैदा हुए कि हमारा तो जन्म ही इस देश पर राज करने के लिए हुआ है। अब एक चाय वाला आ गया है और उनको उस गद्दी पर बैठने नहीं दे रहा है। तो उनकी सारी नाराजगी, सारा गुस्सा, सारी घृणा उस चाय वाले के प्रति है। और उसके बाद उनका जो गुस्सा है, वो इस देश के मतदाताओं पर है कि कितने नासमझ लोग हैं। मेरे जैसे इतने गुणी और प्रतिभा के धनी व्यक्ति को छोड़कर एक चाय वाले को प्रधानमंत्री बना दिया। 11 साल से बनाए हुए हैं।
कैसे रोजगार का सृजन किया जा सकता है, यह राहुल गांधी बता रहे हैं। जल्द ही इमरती की फैक्ट्री लगने वाली है। उसमें लोगों को रोजगार मिलेगा। यह उनका आर्थिक विज़न है। इस देश में कुछ पत्रकार भी हैं जो राहुल गांधी को विज़नरी मानते हैं। ऐसे में राहुल गांधी खुद को विजनरी मानें तो इसमें फिर क्या गलती है। आखिर वो गांधी परिवार के चश्मो चिराग हैं। यह जो वंशवाद की बेल है, यह गांधी परिवार की देन है। तो आजकल उनका ध्यान देश में कहीं और फैक्ट्री लगाने पर है। औद्योगिक या टेक्नोलॉजी के विकास पर या दुनिया में क्या हो रहा है? भारत की स्थिति क्या है? भारत किस तरह से लगातार आत्मनिर्भर हो रहा है। इस सबसे उनको क्या मतलब? वे तो समाज के निचले तबके के बारे में सोचते हैं। लड्डू कौन बनाएगा? गरीब आदमी बनाएगा। इमरती कौन छानेगा? गरीब आदमी छानता है तो राहुल गांधी उसके साथ खड़े हैं। अब यह हमारी आपकी नासमझी है कि ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति का हम तिरस्कार कर रहे हैं। बिहार में चुनाव है तो होता रहे। चुनाव तो हर 5 साल पर होता है। लेकिन इमरती की फैक्ट्री लगने में समय नहीं लगना चाहिए।
बिहार में जो बेरोजगारी और पलायन की समस्या है, उसका हल राहुल गांधी खोज रहे हैं। कुछ दिनों में वह कह सकते हैं कि अगर बिहार में इमरती और लड्डू की फैक्ट्री लग जाए तो वहां से पलायन रुक जाएगा। तेजस्वी का फार्मूला नौकरी चाहिए तो जमीन दो उनको पसंद नहीं है। वो कह रहे हैं कि इमरती की फैक्ट्री लगाओ, लड्डू की फैक्ट्री लगाओ। देखो हरियाणा में हम लगवा रहे हैं जलेबी की फैक्ट्री। उस फैक्ट्री की जलेबी खाने का हम भी इंतजार कर रहे हैं। कभी फैक्ट्री वाली इमरती खाने का भी सौभाग्य मिलेगा। तो ऐसे नेता को सिर माथे पर बिठाना चाहिए। आज से आप राहुल गांधी को पप्पू कहना बंद कर दीजिए। उनको स्वदेशी का सबसे बड़ा रोल मॉडल बताइए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



