छठ पर राहुल का बयान तेजस्वी को पहुंचा सकता है नुकसान।
प्रदीप सिंह।
1950 में भारत का संविधान बना। देश को जनतांत्रिक गणराज्य बने 75 साल हो गए हैं, लेकिन अभी भी कुछ नेता और पार्टियां ऐसी हैं, जिनकी मानसिकता सामंतवादी है। वैसे इस तरह की देश में कई पार्टियां हैं लेकिन अभी बात सिर्फ उन दो युवराजों की हो रही है, जिनके बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जिक्र किया। गृह मंत्री अमित शाह ने अभी दो दिन पहले बिहार में कहा कि सोनिया गांधी चाहती हैं कि उनका बेटा राहुल गांधी देश का प्रधानमंत्री बने और लालू प्रसाद यादव चाहते हैं कि उनका बेटा तेजस्वी यादव बिहार का मुख्यमंत्री बने। आगे उन्होंने कहा कि यह दोनों पद अभी खाली नहीं हैं तो इसलिए ऐसा होने वाला नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गुरुवार को बिहार में कांग्रेस और आरजेडी पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा, ये जो दो युवराज हैं, वे सत्ता को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। ये नामदार लोग हैं इसलिए इनको लगता है कि कामदारों को गाली दिए बिना इनका खाना पचेगा नहीं। बिहार दौरे पर ही राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के बारे में ऐसे अपशब्द कहे थे, जिनको दोहराना भी अच्छा नहीं लगता। इस देश के जनतंत्र का दुर्भाग्य है कि उसको ऐसा नेता प्रतिपक्ष मिला है, जिसको भाषा की मर्यादा का ज्ञान नहीं है। दरअसल वे मानते हैं कि सब मुझसे नीचे हैं। सब मुझसे हीन हैं। एक गरीब आदमी देश का प्रधानमंत्री बन गया और एक गरीब आदमी बिहार का मुख्यमंत्री बन गया, यह उनको मंजूर नहीं है। इन चुनावों में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जिस भाषा में बोल रहे हैं और जिन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं, भारत की राजनीति में इससे पहले देखने को नहीं मिला। ये दोनों अपनी-अपनी पार्टियों के एक तरह से सर्वेसर्वा हैं। उनकी पार्टी में उन्हीं की चलती है, जो उनको विरासत में मिली है। उनको लगता है कि वे सत्ता के स्वाभाविक दावेदार हैं। राहुल गांधी को लगता है कि उन्हें प्रधानमंत्री होना चाहिए। तेजस्वी को लगता है कि उन्हें मुख्यमंत्री होना चाहिए। बिहार में लगभग पांच दशक तक आरजेडी और कांग्रेस पार्टी का राज रहा है, लेकिन बिहार में जो कुछ कमी है उस सबके लिए राहुल और तेजस्वी न तो कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हैं न आरजेडी को। दोनों जिम्मेदार ठहराते हैं 20 साल के नीतीश कुमार के शासन को। हालांकि बीच में उसमें भी आरजेडी शामिल रही है।

इस समय बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार से बड़ा और उनसे ज्यादा ईमानदार छवि वाला नेता नहीं है। बिहार में राहुल गांधी ने जिस तरह छठ को लेकर बयान दिया, इसमें कोई नई बात तो नहीं है। राहुल गांधी प्रधानमंत्री और बीजेपी का विरोध करते-करते जब देश विरोध में चले जाते हैं तो उनके लिए छठ मैया का अपमान करना कोई बड़ी बात नहीं है। दरअसल वे जानते ही नहीं कि छठ क्या है? छठ मैया क्या हैं? उनकी महत्ता क्या है? दरअसल उनके पूरे परिवार तक का हिंदू धर्म, सनातन धर्म, उसके देवी देवताओं, उसके तीज त्यहारों, उसकी संस्कृति से कोई नाता नहीं रहा है। बल्कि एक तरह की घृणा या विद्वेष रहा है। राहुल गांधी में तो यह कूट-कूट कर भरा हुआ है। उनका बस चले या हाथ में सत्ता हो तो इस देश में हिंदू धर्म पर प्रतिबंध लगा दें। केवल 10 साल के शासन के यूपीए के शासन में सोनिया गांधी ने पूरी कोशिश की कि किस तरह से सनातन धर्म को खत्म किया जाए। लेकिन उनको मालूम नहीं है कि यह ऐसी संस्कृति है, यह ऐसा धर्म है जो 1000 साल की लड़ाई लड़ चुका है और आज भी जीवित है। दुनिया में कितनी ऐसी संस्कृतियां हैं। सनातन धर्म मजबूती से न केवल खड़ा है बल्कि पहले की तुलना में और ज्यादा मजबूत हुआ है। दुनिया के दूसरे देशों का सनातन धर्म की ओर झुकाव बढ़ रहा है। वे सनातन को बड़े सम्मान की नजर से देखते हैं। लेकिन राहुल व तेजस्वी को अपने धर्म, अपनी संस्कृति से किसी तरह का कोई लगाव नहीं है।
प्रधानमंत्री ने बिहार दौरे में कहा कि इस देश का सबसे भ्रष्ट परिवार एक युवराज का परिवार है यानी गांधी परिवार। और बिहार का सबसे भ्रष्ट परिवार लालू यादव का परिवार है। राहुल और तेजस्वी दोनों इन सबसे भ्रष्ट परिवारों के युवराज हैं। राहुल गांधी और सोनिया गांधी जमानत पर बाहर हैं। तेजस्वी यादव और उनका परिवार भी कब जेल चला जाएगा कोई भरोसा नहीं है। लैंड फॉर जॉब मामले की राउस रेवेन्यू कोर्ट में रोज सुनवाई होने लगी है। फैसला भी जल्दी आ जाएगा और उसमें पूरे परिवार का जेल जाना लगभग तय लग रहा है। इसी तरह राहुल गांधी, सोनिया गांधी और उनके दूसरे साथी नेशनल हेरल्ड घोटाले में कब जेल चले जाएंगे कुछ नहीं मालूम। बिहार विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद यह दोनों मामले तेज होंगे।
जब सामंत शाही थी और राजाओं का राज था, उस समय जिसको युवराज घोषित किया जाता था वही अगला राजा होता था। राहुल और तेजस्वी ऐसे युवराज हैं, जो जनतंत्र में भी युवराज की प्रथा लेकर आए हैं, लेकिन ये ऐसे युवराज हैं जो कभी राजा नहीं बनने वाले। अब मतदाता तय करता है कि कौन राजा होगा, मतदाता बार-बार इनको संदेश दे रहा है कि आप दोनों को सत्ता हम सौंपने वाले नहीं हैं। पिछले 20 साल से लालू परिवार के लोग कोशिश कर रहे हैं। बिहार का मतदाता सुनने को तैयार नहीं है। 2015 में नीतीश कुमार साथ न आए होते तो आज शायद आरजेडी हाशिए की पार्टी बन गई होती। देश की बात करें तो जिस परिवार के लोगों ने 55-60 साल राज किया, उन्हें 2014 के बाद तीसरे चुनाव में जाकर नेता प्रतिपक्ष का पद मिला। अगर इस गति से आगे बढ़ते रहे तो उम्मीद कर सकते हैं शायद 100 साल में उनका नंबर आए। 2029 का लोकसभा चुनाव निर्णायक रूप से तय करेगा कि गांधी परिवार की राजनीति का अब कोई भविष्य नहीं बचा है। बिहार में 20 साल की सरकार के खिलाफ कोई एंटी इनकंबेंसी, कोई विरोध, कोई विद्रोह, कोई असंतोष दिखाई नहीं दे रहा है। बिहार में ऐसा कोई वातावरण नहीं दिख रहा है कि लोग एनडीए की सरकार या नीतीश कुमार को उखाड़ फेंकना चाहते हों। नीतीश कुमार से जो लोग नाराज हैं उनको भी नीतीश कुमार से ही उम्मीद है। इस बार जिस तरह से बीजेपी और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं, वह 2010 के चुनाव की याद दिलाता है। इसीलिए लगता है कि 14 नवंबर को जो नतीजा आएगा, वह 2000 चुनाव के नतीजे से मिलता जुलता होगा और यह असंभव नहीं है कि एनडीए की यह बिहार के विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी जीत साबित हो। इस चुनाव में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव दोनों एक-दूसरे को निपटाना भी चाहते हैं। उस चक्कर में दोनों जिस नाव में बैठे हैं, उसी में छेद कर रहे हैं। देश में कांग्रेस और गांधी परिवार के राज का लगातार पतन हो रहा है। केवल तीन राज्यों में उसकी सरकार है और मानकर चलिए कि 2028 में कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर होने जा रही है। 2027 में हिमाचल प्रदेश में भी बाहर हो जाएगी। केवल तेलंगाना एक राज्य है, जिसमें कांग्रेस को उम्मीद हो सकती है। कांग्रेस की कुछ अन्य उम्मीदें पंजाब और केरल में हैं। केरल में 2026 और पंजाब में 2027 में चुनाव हैं। पंजाब में बाय डिफॉल्ट कांग्रेस आ सकती है क्योंकि अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी लगातार रसातल की ओर जा रहे है।

राहुल और तेजस्वी ऐसे दो युवराज हैं, जो करप्शन के बादशाह हैं। करप्शन का कोई भी मौका इनके परिवार ने कभी छोड़ा नहीं। तेजस्वी भ्रष्टचार के खिलाफ बोल रहे हैं जबकि उनके पिता को भ्रष्टाचार में 32 साल की जेल हो चुकी है। उनके खिलाफ भी चार्जशीट फाइल हो चुकी है और अदालत ने उसका कॉग्निजेंस ले लिया है। राहुल और तेजस्वी ऐसे दो युवराज हैं, जिन्होंने जीवन में कभी कोई नौकरी नहीं की, कोई व्यवसाय नहीं किया लेकिन करोड़पति हैं और अरबपति भी हों तो कोई आश्चर्य नहीं है। गरीब का जीवन कैसा होता है? गरीबी से बाहर निकलने का अनुभव कैसा होता है? इसके बारे में इनको कोई जानकारी नहीं है। इनको लगता है कि जो सत्ता में शीर्ष पर बैठा है, उसको गाली देने से इनका रुतबा बढ़ जाएगा। इसीलिए राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार में तेजस्वी नीतीश कुमार को गाली देते हैं। नीतीश कुमार पर 20 सत्ता में रहने के बावजूद भ्रष्टाचार का एक जरा सा भी छींटा नहीं है। उनसे मुकाबला किसका? तेजस्वी यादव का। जो बालिग होने से पहले ही करोड़पति बन गया। राहुल और तेजस्वी करप्शन की बात करें तो सुनकर हंसी ही आ सकती है।
राहुल गांधी अभी तक हिंदुत्व का मजाक उड़ाते थे। भारतीय संस्कृति का मजाक उड़ाते थे। बिहार के लोगों के मन में छठ मैया की क्या छवि है, क्या प्रतिष्ठा है इसका जरा भी अंदाजा होता तो राहुल गांधी छठ मैया का मजाक न उड़ाते, लेकिन राहुल गांधी तो राहुल गांधी है। वे कुछ भी बोल सकते हैं। उनको इस देश की संस्कृति से कोई मतलब नहीं है, लेकिन अपने को ब्राह्मण बताते हैं। बहुत से लोग उनकी जाति और धर्म के बारे में पूछते हैं। सबको मालूम है कि क्या है, लेकिन छठ मैया का जिस तरह का उन्होंने अपमान किया है उसे बिहार का कोई मतदाता स्वीकार नहीं करेगा। इसीलिए राहुल का बयान आरजेडी के लिए बड़ा खतरा है। आरजेडी का जो कोर वोटर यादव है, वहां मतभेद हो सकता है। छठ को लेकर राहुल गांधी का बयान यादव वोटों पर असर डाल सकता है। इसका तेजस्वी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



