डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
शिक्षा केवल सूचनाओं का संग्रह नहीं होती, बल्कि वह एक ऐसा माध्यम होती है जिसके ज़रिए एक देश अपनी भावी पीढ़ी को मूल्यों, संस्कारों और इतिहास से परिचित कराता है। यह प्रक्रिया न केवल ज्ञान के विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि एक सशक्त, संवेदनशील और जागरूक नागरिक के निर्माण में भी सहायक होती है। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश में यह और भी आवश्यक हो जाता है कि विद्यार्थियों को केवल वैज्ञानिक या भाषाई ज्ञान ही नहीं, बल्कि देश के उन वीर सपूतों के बारे में भी पढ़ाया जाए, जिन्होंने अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान देकर राष्ट्र की रक्षा की।

इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए शैक्षणिक सत्र 2025-26 से राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी), रक्षा मंत्रालय और शिक्षा मंत्रालय के संयुक्त प्रयास से भारतीय सैन्य इतिहास से जुड़े तीन महान नायकों की गाथाओं को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ा गया है।

Courtesy: SSBCrack

यह एक ऐतिहासिक और स्वागत योग्य निर्णय है जिसमें फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान और मेजर सोमनाथ शर्मा की जीवन गाथाओं को कक्षा 7 (उर्दू), कक्षा 8 (उर्दू एवं अंग्रेजी) के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों में देशभक्ति, कर्तव्यबोध, साहस और सहानुभूति जैसे मानवीय मूल्यों का विकास करना है। इन नायकों की कहानियाँ केवल युद्ध के किस्से नहीं हैं, बल्कि यह जीवन की उन शिक्षाओं से भरपूर हैं जो बच्चों को एक अच्छे नागरिक और ज़िम्मेदार इंसान बनने की दिशा में प्रेरित कर सकती हैं।

फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के पहले और अब तक के एकमात्र अधिकारी हैं जिन्हें ‘फील्ड मार्शल’ की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया गया। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनके नेतृत्व में भारत ने न केवल निर्णायक विजय प्राप्त की, बल्कि एक नया देश, बांग्लादेश भी अस्तित्व में आया। मानेकशॉ अपने साहस, व्यावसायिकता और मानवीय नेतृत्व शैली के लिए जाने जाते थे। उनके निर्णयों में रणनीति की गहराई होती थी, और उनके सैनिकों के प्रति स्नेह ने उन्हें एक प्रिय सेनानायक बना दिया था। उनका जीवन नेतृत्व, निडरता और कर्तव्यपरायणता का आदर्श उदाहरण है, जिसे आज की युवा पीढ़ी से साझा किया जाना बेहद जरूरी है।

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाता है। 1947-48 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने घुसपैठियों और कबायलियों से नौशेरा की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी। विभाजन के समय उन्हें पाकिस्तान सेना का प्रमुख बनने का प्रस्ताव मिला, लेकिन उन्होंने अपने मजहब के ऊपर राष्ट्र को चुना और भारत के प्रति निष्ठा बनाए रखी। वे स्वतंत्र भारत के पहले वरिष्ठ अधिकारी थे जो युद्ध में हुतात्‍मा हुए। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी कहानी भारत की पंथनिरपेक्ष परंपरा, सैन्य नैतिकता और राष्ट्रभक्ति की अद्भुत मिसाल है, जो आज के संदर्भ में और भी अधिक प्रासंगिक है।

Courtesy: Jammu Kashmir Now

मेजर सोमनाथ शर्मा, भारतीय सेना के पहले परमवीर चक्र विजेता हैं। 1947 के कश्मीर युद्ध में उन्होंने बडगाम सेक्टर में दुश्मनों के भारी हमले के सामने डटकर मुकाबला किया, जबकि उनका एक हाथ पहले से ही घायल था। उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ दुश्मनों को पीछे हटने पर मजबूर किया लेकिन स्वयं वीरगति को प्राप्त हुए। उनका अंतिम संदेश जिसमें उन्होंने लिखा, “दुश्मन हमसे मात्र 50 गज की दूरी पर है, हम संख्या में बहुत कम हैं लेकिन हम पीछे नहीं हटेंगे।” यह शब्द केवल एक सैनिक की भावना नहीं, बल्कि भारत के सैन्य इतिहास की आत्मा को दर्शाते हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि साहस, संकल्प और बलिदान की कोई सीमा नहीं होती।

इन वीरों की गाथाओं को स्कूली किताबों में शामिल करना केवल इतिहास पढ़ाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह नई पीढ़ी को यह समझाने का प्रयास है कि राष्ट्र निर्माण केवल नेताओं या योजनाओं से नहीं होता, बल्कि उन अनाम और अमर नायकों से होता है, जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। यह पहल विद्यार्थियों को प्रेरित करेगी कि वे भी अपने जीवन में देश के प्रति कुछ विशेष करें, फिर चाहे वह सेवा हो, ईमानदारी हो, या सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करना ही क्‍यों न हो।

इस पहल के केंद्र में है राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, जिसे 25 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया था। नई दिल्ली के इंडिया गेट परिसर में स्थित यह स्मारक भारत के उन 25,000 से अधिक वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दी। इस स्मारक का उद्देश्य केवल स्मरण करना नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक में देशभक्ति, आत्मबलिदान और राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करना है। कहना होगा कि जब छात्र इस स्मारक और उससे जुड़ी कहानियों को पढ़ेंगे, तो वे देश के इतिहास से न केवल बौद्धिक रूप से जुड़ेंगे, बल्कि भावनात्मक रूप से भी उसका हिस्सा बनेंगे।

फिर इस निर्णय के दूरगामी प्रभाव भी हैं। पहला, यह समझना कि देशभक्ति की भावना केवल नारों या झंडों तक सीमित नहीं, बल्कि यह व्यवहारिक जीवन का हिस्सा है। दूसरा, यह कि बच्चों में नैतिक शिक्षा, जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का विकास होगा, जो कि आज के समय में सबसे अधिक जरूरी है। तीसरा, यह कि शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि यह व्यक्तित्व निर्माण और राष्ट्र निर्माण का भी माध्यम है।

Courtesy: ABP News

ब्रिगेडियर उस्मान की कहानी धार्मिक सहिष्णुता और कर्तव्य के अद्वितीय समन्वय को दर्शाती है। यह कहानी उस सांप्रदायिक सौहार्द की गवाही देती है जिसे भारतीय सेना और संविधान समान रूप से महत्व देते हैं। मानेकशॉ जैसे नेता यह सिखाते हैं कि नेतृत्व केवल आदेश देना नहीं होता, बल्कि समय पर सही निर्णय लेकर पूरे राष्ट्र को विजय की ओर ले जाना होता है। और सोमनाथ शर्मा का जीवन यह बताता है कि कर्तव्य जब सर्वोच्च हो, तो प्राणों की आहुति भी एक गर्व बन जाती है।

कहना होगा कि एनसीईआरटी द्वारा इन गाथाओं को कक्षा 7 और 8 की उर्दू और अंग्रेजी की किताबों में सम्मिलित किया जाना शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी परिवर्तन का संकेत है। यह केवल एक पाठ्य सामग्री नहीं, बल्कि विद्यार्थियों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता, सहानुभूति और सामाजिक चेतना के विकास की दिशा में उठाया गया कदम है। इन पाठों को इस प्रकार से तैयार किया गया है कि वे छात्रों को केवल जानकारी नहीं, बल्कि गहन चिंतन और संवाद के लिए प्रेरित करें। यह शिक्षा की एक ऐसी शैली है जो विद्यार्थियों को केवल अच्छा छात्र नहीं, बल्कि बेहतर नागरिक बनाने में सहायक होगी।

आज जब पूरा विश्व नैतिक और सामाजिक मूल्यों के संकट से जूझ रहा है, तब भारत यदि अपनी नई पीढ़ी को वीरता, समर्पण और निष्ठा की कहानियाँ पढ़ाकर बड़ा करता है, तो यह उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। यह केवल बच्चों को महान नायकों से जोड़ने का प्रयास नहीं होगा, बल्कि एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण भी करेगा जिसकी आत्मा अपने इतिहास से जुड़ी होगी, वर्तमान में जागरूक होगी और भविष्य के लिए प्रतिबद्ध होगी। हम आशा करें कि जब भारत की पाठशालाओं में सैम मानेकशॉ, उस्मान और सोमनाथ शर्मा जैसे नायकों की गाथाएं पढ़ाई जाएंगी, तो निश्चित ही एक ऐसी पीढ़ी तैयार होगी जो न केवल बुद्धिमान और शिक्षित होगी, बल्कि संवेदनशील, साहसी और राष्ट्रभक्त भी होगी। यही वह शिक्षा है जो किसी राष्ट्र को महान बनाती है, और यही वह उद्देश्य है जिसे आज की भारतीय शिक्षा प्रणाली को अपनाने की चहुंओर आवश्‍यकता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)