श्री श्री रवि शंकर।
‘नव’ के दो अर्थ हैं- ‘नया’ एवं ‘नौ’। रात्रि का अर्थ है रात, जो हमें आराम और शांति देती है। यह नौ दिन समय है स्वयं के स्वरूप को पहचानने का और अपने स्रोत की ओर वापस जाने का। इस परिवर्तन के काल में प्रकृति पुराने को त्याग कर फिर से नया रूप सृजन करती है।

तीन स्तरों पर राहत

Wisdom By Gurudev Sri Sri Ravi Shankar

जैसे एक नवजात जन्म लेने से पहले अपनी मां के गर्भ में नौ महीने व्यतीत करता है, उसी तरह एक साधक भी इन नौ दिनों और रातों मे उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के द्वारा अपने सच्चे स्रोत की ओर वापस आता है। रात को रात्रि भी कहा जाता है, क्योंकि ये जीवन को फिर से उर्जित करती है। नवरात्रि तीनों स्तर पर राहत देती है- स्थूल, सूक्ष्म और कारण। उपवास शरीर को पवित्र करता है, जबकि मौन वाणी को पवित्र करते हुए बेचैन मन को शांत करती है; ध्यान एक साधक को अपने अस्तित्व की ओर ले जाता है।

 दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती

Durga, Lakshmi and Saraswati | Chaitra navratri, Durga, Navratri festival

नवरात्रि के इन नौ दिनों के दौरान मन को दिव्य चेतना में लिप्त रखना चाहिए। अपने अंदर ये जिज्ञासा जगाइए, ‘मेरा जन्म कैसे हुआ? मेरा स्रोत क्या है?’ तब हम सृजनात्मक और विजयी बनते हैं। जब नकारात्मक शक्तियां तुम्हारे मन को घेरती हैं तो मन विचलित रहता है और तुम शिकायत करते हो। राग, द्वेष, अनिश्चितता और भय नकारात्मक शक्तियां हैं। इन सब से राहत पाने के लिए अपने अंदर ऊर्जा के स्रोत में वापस जाएं। यही शक्ति है। इन नौ रात और दस दिनों के दौरान शक्ति/देवी- दैवी चेतना की आराधना होती है। नवरात्रि के पहले तीन दिन दुर्गा देवी की अराधना होती है, जो वीर्य और आत्मविश्वास का प्रतीक हैं। उसके बाद के तीन दिन लक्ष्मी देवी के लिए हैं, जो धन- धान्य का प्रतीक हैं। अंत के तीन दिन सरस्वती देवी के लिए हैं, जो ज्ञान का प्रतीक हैं।

शांति व सत्य की स्थापना

ऐसी बहुत सी कथाएं हैं कि कैसे मां दिव्य रूप में अवतरित होकर मधु-कैटभ, शुम्भ-निशुम्भ और महिषासुर जैसे असुरों का वध कर शांति और सत्य की स्थापना करती हैं। देवी ने इन असुरों पर विजय प्राप्त की। ये असुर नकारात्मक शक्तियों के प्रतीक हैं, जो कभी भी और किसी को भी अपने वश में कर सकती हैं।

मधु राग है, कैटभ द्वेष

What is the story of the goddess Durga after she killed Mahishasura? - Quora

ये असुर कौन है? मधु राग है और कैटभ का अर्थ है द्वेष। ये सबसे प्रथम असुर हैं। कई बार हमारा व्यवहार हमारे नियंत्रण में नहीं रहता। वह अनुवांशिक (जेनेटिक) है। रक्तबीजासुर का अर्थ है, गहरी समाई हुई नकारात्मकता और वासनाएं। महिषासुर का अर्थ है जड़ता- एक भैंस की तरह। महिषासुर भारीपन और जड़त्व का प्रतीक है। दैवी शक्ति ऊर्जा लेकर आती है और जड़ता को उखाड़ फेकती है। शुम्भ-निशुम्भ का अर्थ है सब पर संशय। खुद पर संशय ‘शुम्भ’ है। कुछ लोग खुद पर संशय करते हैं- ‘क्या मैं सही हूं? क्या मैं सच में समर्पित हूं? क्या मुझमें बुद्धिमत्ता है? क्या मैं यह कर सकता हूं?’ निशुम्भ का अर्थ है- अपने आसपास सब पर संशय करना। नवरात्रि आत्मा और प्राण का उत्सव है। यही असुरों का नाश कर सकती है।

तमस, रजस और सत्व

नवरात्रि के नौ दिनों मे तीन-तीन दिन तीन गुणों के अनुरूप हैं- तमस, रजस और सत्व। हमारा जीवन इन तीन गुणों पर ही चलता है फिर भी हम इसके बारे में सजग नहीं रहते और इस पर विचार भी नहीं करते।
हमारी चेतना तमस और रजस के बीच बहते हुए अंत के तीन दिनों में सत्व गुण में प्रस्फुटित होती है। इन तीन आदि गुणों को इस दैदीप्यमान ब्रह्मांड की नारी शक्ति माना गया है। नवरात्रि के दौरान मातृ रूपी दिव्यता की आराधना से हम तीनों गुणों को संतुलित करके वातावरण में सत्व की वृद्धि करते हैं। जब सत्व गुण बढ़ता है, तब विजय की प्राप्ति होती है।

इन तरंगों को महसूस करें

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इन नौ पवित्र दिनों में बहुत सारे यज्ञ किए जाते हैं। यद्यपि हम इन यज्ञों और समारोह के मतलब नहीं भी समझे, फिर भी हम आंखें बंद रखते हुए बैठ कर अपने हृदय और मन को खुला रख कर इन तरंगों को महसूस करें। अनुष्ठानों के साथ मंत्रोच्चारण और रीति-रिवाज पवित्रता लाते हैं और चेतना का विकास करते हैं। पूरी सृष्टि जीवित हो उठती है और तुम्हें भी बच्चों की तरह सब चीजें जीवंत दिखने लगती हैं। मातृ रूपी दिव्यता या पवित्र चेतना ही सभी रूपों में समाई हुई है। एक दिव्यता को सब रूप और नाम में पहचानना ही नवरात्रि का उत्सव है। यह जागी हुई दिव्य चेतना में परिणत होने का उत्सव है। पुन: अपने आप को धन्य महसूस करें और जीवन में जो कुछ भी मिला है, उसके लिए और भी कृतज्ञता महसूस करें।
(लेखक आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक हैं)

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