डॉ. मयंक चतुर्वेदी।
दिल्ली और भोपाल से गिरफ्तार दो शिक्षित मुसलमान युवाओं ने भारत के सामाजिक ढांचे और सुरक्षा व्यवस्था को गहरी चिंता में डाल दिया है। दोनों युवक मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं, जिन्होंने सामान्य शिक्षा व्यवस्था में पढ़ाई की, परंतु उनकी सोच पर आईएसआईएस जैसी घातक विचारधारा ने कब्जा कर लिया। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और मध्य प्रदेश एटीएस की संयुक्त कार्रवाई में दिल्ली के मोहम्मद अदनान खान उर्फ अबू मुहरिब और भोपाल के सैयद अदनान खान उर्फ अबू मोहम्मद को गिरफ्तार किया गया। पुलिस के अनुसार, दोनों दिल्ली के मॉल और पार्कों में त्योहारों के समय बम विस्फोट की योजना बना रहे थे।

गिरफ्तारी के बाद सामने आया कि सादिक नगर (दिल्ली) के एक मकान से प्लास्टिक बम, मोलोटोव कॉकटेल, आईईडी टाइमर क्लॉक, रिमोट डेटोनेशन सिस्टम व आईएसआईएस का झंडा बरामद हुआ! दोनों घरों से सोशल मीडिया हैंडल-ड्राइव्स, हार्ड डिस्क, बेअत-वीडियो, विदेशी हैंडलरों के चैट लॉग मिले जिनसे वे सीधे संपर्क में थे। सामने आया है कि ये कई महीनों से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर जिहादी सामग्री देख रहे थे। टेलीग्राम चैनल, इंस्टाग्राम अकाउंट्स के माध्यम से आईएसआईएस-समर्थक प्रचार को उन्होंने लगातार देखा और प्रेरित हुए।
अब इसे हम क्या ही कहें! व्यवस्था की चूक या कुछ ओर? दिल्ली का अदनान पहले भी एटीएस द्वारा पकड़ा जा चुका है, लेकिन जमानत पर रिहा होकर वापस आतंकी कार्यों में लग गया। वह सीरिया-तुर्की बॉर्डर पर सक्रिय एक आईएसआईएस हैंडलर से जुड़ा था। भोपाल का अदनान चार्टर्ड अकाउंटेंसी की पढ़ाई कर रहा था, पिछली परीक्षा में 88 प्रतिशत अंक लाया था। परिवार व पड़ोसी उसे सामान्य, पढ़ने-लिखने वाला, शांत युवक मानते रहे। कहना होगा कि आज यह विरोधाभास इस तथ्य को उजागर करता है कि आतंकवाद गरीबी या अशिक्षा का मामला नहीं है, जैसा कि कई बार यह प्रचारित करने का प्रयास होता है, यह तो एक खास इस्लामिक सोच का नतीजा है, जिसमें हर गैर मुस्लिम इनके लिए दुश्मन है।
कहना होगा कि ये उस सोच का उद्घाटन है जो वैश्विक इस्लामी राजनीति से उपजी है, जिसमें उम्मा का विचार है, जिहाद है और गैर मसलमानों को हर हाल में या तो इस्लाम में लाने का प्रयास करना है, नहीं तो उन्हें हर तरीके से समाप्त कर देना है। इसलिए ही आज इस्लाम के दो गहरे राजनीतिक-मजहबी सिद्धांत उम्मा और राजनीतिक इस्लाम की चर्चा ज्यादा हो रही है। ये दोनों विचार ‘इस्लाम’ को मजहबी विश्वास प्रणाली से अधिक एक राजनीतिक व्यवस्था के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

उम्मा की अवधारणा में इस शब्द का अर्थ ही है “समुदाय” या “राज्य” । इस्लामी परंपरा में यह “विश्वासियों के समुदाय” (उम्मा-अल-मोमिन) का द्योतक है, अर्थात समस्त मुस्लिम जगत। कुरान की आयत (3:110) में यह कहा गया है; “तुम मानव जाति के लिए सर्वश्रेष्ठ समुदाय हो…।” इससे स्पष्ट होता है कि उम्मा की अवधारणा समस्त मानव समाज को इस्लामी नैतिक दृष्टिकोण के अधीन लाने की आकांक्षा रखती है। ऐतिहासिक रूप से भी उम्मा की धारणा राजनीतिक रूप में अभिव्यक्त हुई, जैसे पैगंबर मुहम्मद द्वारा 622 ईस्वी में मदीना चार्टर (Constitution of Medina) की घोषणा की गई थी। आज “इस्लामी सहयोग संगठन” (ओआईसी) इसी वैश्विक उम्मा का प्रतिनिधि निकाय माना जाता है। दूसरी ओर राजनीतिक इस्लाम का उद्भव और उद्देश्य देखें तो यह धारणा इस सिद्धांत पर आधारित है कि राज्य और समाज को शरिया (इस्लामी कानून) के
राजनीतिक इस्लाम के सिद्धांतकार जैसे हसन अल बन्ना, अबुल आला मौदूदी
इसलिए उम्मा की एकता और राजनीतिक इस्लाम का अंतिम लक्ष्य विश्व भर में इस्लामी मू
यदि आज हम दुनिया भर के देशों की चिंता न भी करें; यदि भारत के संदर्भ में इसे समझें तो ये जो युवा पकड़े गए ऐसे न जाने कितने लोग भारत में हैं, जो यह मानकार ही चल रहे हैं कि एक न एक दिन दुनिया में सिर्फ उम्मा होगा और शरिया का राज होगा। तभी तो तमाम सरकारी योजनाओं, छात्रवृत्तियों, रोजगार कार्यक्रमों द्वारा अनेक अवसर मिलने के बाद भी ये भारत में इस तरह से आतंकवादी प्रयास करते नजर आते हैं। इनके लिए गैर मुस्लिम सब काफिर हैं और आईएसआईएस एवं इस तरह की सोच रखनेवाले सभी उम्माह के रक्षक, “काफ़िरों” के विरुद्ध लड़ने वाले योद्धा हैं। (संदर्भ उल्लेखित है, इससे जुड़े कई इंटरनेट पर उपलब्ध वीडियो तथा सोशल मीडिया पोस्ट मौजूद हैं, जो यहां कहा जा रहा है, उसकी सच्चाई आसानी से स्वयं के प्रयासों से जान सकते हैं।)

भारत में पिछले एक दशक में ऐसे कई उदाहरण मिले हैं जहाँ पढ़े-लिखे मुसलमान युवाओं ने आतंकवादी संगठनों के संपर्क में आने की कोशिश की। केरल, महाराष्ट्र, तेलंगाना, कर्नाटक और मध्य प्रदेश से कई युवाओं ने सीरिया या अफगानिस्तान जाकर जिहाद में शामिल होने की कोशिश की। अधिकतर मामलों में उन्हें ऑनलाइन प्रचार माध्यम से प्रभावित किया गया। दिल्ली-भोपाल की ये गिरफ्तारी सामाजिक आईना है जो दिखा रहा है कि कितनी तेजी से शिक्षा-प्राप्त, इंटरनेट-सक्षम युवा मानसिक रूप से इस्लामिक जिहादी कट्टरता की ओर फिसल रहे हैं। 2022 से अब तक अकेले भोपाल में 22 आतंकी गिरफ्तार हो चुके हैं। पिछले दो वर्षों (2024–2025) के दौरान पूरे भारत में गिरफ्तार किए गए इस्लामिक आतंकवादियों की संख्या 100 से अधिक है। इन गिरफ्तारियों में एनआईए, दिल्ली पुलिस, राज्य एटीएस समेत तमाम जांच एजेंसियों ने सक्रिय भूमिका निभाई है।
वस्तुत: यदि समाज ने इस आइने में खुद को नहीं देखा, तो आने वाले समय में यह समस्या सिर्फ सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि अस्तित्व का सवाल बन जाएगी। दर्जनों अभियुक्तों की गिरफ्तारी और आतंक-कार्रवाइयों का होना ये बता रहा है कि यह विचार-क्षेत्र का (नैरेटिव वॉर) युद्ध है। जिसे एक सीमा के बाद कानून-बल के सहारे नहीं लड़ा जा सकता है, इसके लिए आवश्यक सामाजिक-मानसिक बदलाव की है। जिसका आरंभ हर स्तर पर करने की आवश्यकता है, अन्यथा ‘जिहादी’ सोच का ये सिलसिला भारत में थमनेवाला नहीं है।
इस हकीकत को हम जितना जल्दी स्वीकारें उतना अच्छा है कि उम्मा और पॉलिटिकल इस्लाम अभी दुनिया के 57 देशों के रूप में सफल हो चुका है, आगे सफलता के लिए इसके प्रयास जारी हैं, ऐसे में आप अपने को बहुत वक्त तक सुरक्षित नहीं मान सकते हैं। अत: हमारे सामने सभ्यता का संकट महा-घना है; यदि अभी नहीं समझें तो भविष्य बहुत अंधकारमय दिखता है!
(लेखक ‘हिन्दुस्थान समाचार’ के मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान के क्षेत्रीय संपादक हैं)



